अनवर चौहान
केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की तीसरी  सरकार ने शपथ ले ली है। और मंत्रियों को उनके विभाग भी बांट दिए गए हैं। ओम बिरला नरेंद्र मोदी की दूसरी सरकार में लोक सभा स्पीकर थे। ऐसे में क्या इस बार बिरला को दोबारा यह पद मिल पाएगा....ये सवाल गहराता जा रहा है. क्योंकि, TDP एनडीए गठबंधन की सरकार में यह पद मांग रही है। उसकी वजह साफ है कि भारतीय जनता पार्टी पहले ही उनकी पार्टी को तोड़ चुकी है। जब अमित शाह ने टीडीपी के चार राज्यसभा सांसदों को भाजपा में शामिल करवा दिया था। दूध का जला भी छाच को फूंक-फूंक कर पीता है। क्या चंद्र बाबू नायडू भाजपा को दोबारा पार्टी तोड़ने का मौका देंगे। शायद नहीं।...एनडीए के सभी सहयोगी दल ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी दूसरे दलों को तोड़ने में माहिर है। दल के टूटने का खतरा तो नितीश बाबू को भी है। चूंकि भाजपा जदयू के आरपीएन सिंह को पहले भी तोड़ चुकी है। यदि भाजपा का स्पीकर बना तो एनडीए के दल अपने-अपने दलों को ढूंडते रह जाएगें....कब उनके दल भाजपा में शामिल कर लिए जाऐंगे... ये पता भी नहीं चलेगा। हालात की नब्ज़ को भांपते हुए....उधर इंडिया गठबंधन ने भी ये ऐलान कर दिया है कि यदि टीडीपी स्पीकर पद के लिए अपना उम्मीदवार उतारती है तो वो उसका समर्थन करेंगे।
बता दें कि ओम बिरला का कार्यकाल बेहद विवादास्पद रहा है। उनके लोकसभा अध्यक्ष रहते हुए ही राहुल गांधी की सदस्यता रद्द हुई थी। इसके अलावा करीब 90 सांसदों को निलंबित भी किया गया था। उनके कार्यकाल में लिए गए पक्षपाती फैसलों से सब वाकिफ हैं...ऐसे में गठबंधन के सहयोगी दल उनके नाम पर सहमत नहीं होंगे।
इसी बीच भाजपा की आंध्र प्रदेश की अध्यक्ष डी. पुरंदेश्वरी का नाम भी स्पीकर पद के लिए उछला है। पुरंदेश्वरी चंद्रबाबू नायडू की साली हैं। उन्होंने नायडू का उस वक्त समर्थन किया था, जब उनकी अपने ससुर एनटी रामाराव का तख्ता पलट करने पर आलोचना हो रही थी। ऐसे में उन्हें स्पीकर बनाया जाता है, तो नायडू पर सॉफ्ट प्रेशर रहेगा। उनकी पार्टी पुरंदेश्वरी का खुला विरोध नहीं कर पाएगी।
पुरंदेश्वरी कम्मा समुदाय से हैं। चंद्रबाबू नायडू भी इसी समुदाय के हैं। आंध्र प्रदेश की राजनीति में यह प्रभावशाली समुदाय है। कम्मा समुदाय को TDP का ट्रेडिशनल वोटर माना जाता है। साफ है कि डी पुरंदेश्वरी के बहाने भाजपा नायडू की पार्टी के परंपरागत वोट बैंक में भी सेंध लगाना चाहती है।
मोदी मंत्रिमंडल के गठन के बाद अब यह संभावना भी बनी है कि ओम बिरला एक बार फिर से लोकसभा अध्यक्ष बनेंगे। चुंकी, भाजपा इस बार पूर्ण बहुमत में नहीं है, इसलिए मोदी-शाह भी अपने विश्वासपात्र को ही लोकसभा अध्यक्ष बनाना चाहेंगे। इस चॉइस में भी बिरला खरे उतरते हैं। हालांकि, भाजपा का पूर्ण बहुमत में न आना ही उनके अध्यक्ष बनने में रोड़ा भी साबित हो सकता है, क्योंकि सहयोगी दल स्पीकर पद की मांग कर रहे हैं।