इंद्र वशिष्ठ

दिल्ली, हरियाणा और पंजाब पुलिस की हरकतों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि आईपीएस अफसर सत्ता के लठैतों की तरह काम कर रहे हैं। अपने आका राज नेताओं के इशारे पर आईपीएस द्वारा खाकी वर्दी को खाक में मिलाने का सिलसिला दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। जिसे देखकर लगता है कि आईपीएस जैसी सेवा को ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए। क्योंकि  आईपीएस बन कर भी वह आंख और दिमाग बंद करके गुलामों की तरह ही काम कर रहे हैं। संविधान और कानून की बजाए वह नेताओं के प्रति वफादारी निभा रहे हैं।
सत्ता के लठैत।-
सच्चाई यह है कि सरकार किसी भी राजनैतिक दल की हो, सभी पुलिस का इस्तेमाल सत्ता के लठैत की तरह ही करते है। सेवा के दौरान और रिटायरमेंट के बाद भी महत्त्वपूर्ण पद पाने के लालच में आईपीएस नेताओं के इशारे पर नाचने लग जाते है।
 कमिश्नर बताएं-
दिल्ली पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना क्या बता सकते हैं कि तेजिंदर बग्गा का अगर वाकई अपहरण किया गया था तो पंजाब पुलिस के अफसरों को अपहरण के आरोप में गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया ?
ऐसा तो नहीं होता है कि कथित अपहरणकर्ताओं  के कब्जे से अपहृत व्यक्ति को तो छुड़ा लिया जाए और अपहरणकर्ताओं को दो राज्यों की पुलिस ने आराम से जाने दिया।
 इस कथित अपहरण के मामले में पंजाब पुलिस के अफसरों को गिरफ्तार न करने से दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
इससे तो यह साफ जाहिर होता है कि दिल्ली पुलिस ने अपने राजनैतिक आकाओं के इशारे पर यह सब किया। क्योंकि अगर वाकई में पंजाब पुलिस ने भाजपा के बग्गा का अपहरण किया होता, तो मोदी-शाह की पुलिस मान-केजरीवाल की पंजाब पुलिस के अफसरों को गिरफ्तार करने में जरा भी देर नहीं लगाती। यहीं नहीं, दिल्ली पुलिस बकायदा  ढिंढोरा पीट कर  बताती भी।
 पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना बताएं  कि अपराध के अनेक मामले दर्ज होने पर भी बग्गा को भी अन्य अपराधियों की तरह बैड करेक्टर (बीसी)/ हिस्ट्रीशीटर क्यों नहीं बनाया गया ।
 हरियाणा पुलिस की भूमिका। -
इस मामले में दिल्ली के साथ हरियाणा पुलिस की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग गया है। दिल्ली पुलिस की सूचना पर ही हरियाणा पुलिस ने कुरुक्षेत्र में पंजाब पुलिस को रोका और उनके कब्जे से बग्गा को छुडा कर दिल्ली पुलिस को सौंप दिया।
 पंजाब पुलिस की भूमिका-
क्या पंजाब पुलिस थाने में यह बताने जाएगी कि वह अपहरण करके ले जा रहे हैं।
पंजाब पुलिस द्वारा जनक पुरी थाने जाने से ही, पता चलता है कि कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के लिए ही वह थाने गई थी।
पंजाब पुलिस के एक एएसआई गुरु प्रताप का वीडियो वायरल है जिसमें उसने दिल्ली पुलिस कंट्रोल रुम को फोन करके बताया है कि पंजाब पुलिस के डीएसपी  संधू को जनक पुरी एसएचओ ने  जबरन रोका हुआ है। पंजाब पुलिस की आमद और रवानगी की सूचना जनक पुरी पुलिस दर्ज नहीं कर रही। वह गिरफ्तार किए अभियुक्त बग्गा को छोड़ देने के लिए कह रही है।
 जनक पुरी थाने में एसएचओ के कमरे में पंजाब पुलिस के डीएसपी के बैठे होने के वीडियो, फोटो पूरी दुनिया देख रही है।
इसके बावजूद पंजाब पुलिस के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज करना दिल्ली पुलिस के अफसरों की पेशेवर काबिलियत पर सवालिया निशान लगाता है।
 कटघरे में दिल्ली पुलिस- इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस की भूमिका हर मायने में गलत ही दिखाई दे रही है।
इसके दो प्रमुख कारण है पहला, अपहरण का  मामला अगर सच्चा है तो पंजाब पुलिस के अफसरों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया।
दूसरा, अगर अपहरण का मामला सही नहीं है तो क्या दिल्ली पुलिस ने हरियाणा पुलिस की  मदद से पंजाब पुलिस की हिरासत से एक अभियुक्त को छुडाने का गंभीर अपराध नहीं किया है।
दोनों ही सूरत में उंगली दिल्ली पुलिस पर ही उठेगी।  
पंजाब पुलिस का बयान।-
पंजाब पुलिस के अफसरों का कहना है कि बग्गा की गिरफ्तारी में कानूनी प्रक्रिया का पूरा पालन किया गया।
वैसे अगर पंजाब पुलिस सही है तो क्या उसे दिल्ली और हरियाणा पुलिस के अफसरों के खिलाफ जबरन रोकने, सरकारी काम में बाधा डालने और अभियुक्त को हिरासत से छुडाने का मामला दर्ज नहीं कराना चाहिए।
भारतीय जनता पार्टी  के  तेजिंदर बग्गा  पर भड़काऊ भाषण देने, धार्मिक उन्माद फैलाने तथा आपराधिक रूप से डराने-धमकाने के आरोप में पंजाब पुलिस ने मामला दर्ज किया है।
पंजाब पुलिस ने बयान जारी किया था कि तेजिंदर पाल सिंह बग्गा को पांच बार नोटिस भेजकर तफ्तीश में शामिल होने  के लिए कहा गया, लेकिन वह जानबूझकर जांच में शामिल  नहीं हुए, जिसके बाद 6 मई की सुबह पंजाब पुलिस ने जनकपुरी में उनके घर से गिरफ्तार किया।
 अपहरण का आरोप-
तेजिंदर के पिता प्रीत पाल की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने अपहरण, मारपीट,लूट आदि का मामला दर्ज किया है।
 बग्गा को हिस्ट्रीशीटर क्यों नहीं बनाया-
तेजिंदर पाल सिंह बग्गा 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव में हरि नगर सीट से चुनाव लड़ चुका है। अपने चुनावी हलफनामे में उसने खुद पर चार मामले दर्ज होने की बात बताई थी। इससे पता चलता है कि वह कानून का सम्मान करने वाले शरीफ नागरिक नहीं है बल्कि बार बार अपराध करने वाले आदी अपराधी हैं।
इसके बावजूद पुलिस ने बग्गा को भी अन्य अपराधियों की तरह बैड करेक्टर (बीसी)/ हिस्ट्रीशीटर क्यों नहीं बनाया है?
बग्गा की गुंडागर्दी का चिट्ठा -
छाज तो बोले सो बोले, छलनी भी बोले जिसमें बहत्तर छेद,यह कहावत बग्गा पर पूरी तरह लागू होती है।
पंजाब पुलिस पर कानूनी प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप लगाने वाला तेजिंदर बग्गा खुद कानून का कितना  सम्मान करता है। इसका पता उसके द्वारा किए गए अपराधों से लग जाता है।
बग्गा 2011 में पहली बार सुर्खियों में तब आया जब अरुन्धति राय की किताब के विमोचन के कार्यक्रम में पहुंचकर हंगामा किया। बग्गा ने सुप्रीम कोर्ट परिसर में वकील प्रशांत भूषण के चेम्बर में घुसकर उनके साथ मारपीट की।
साल 2014 में दिल्ली के तिलक मार्ग थाने में घर में जबरन घुसने और हमला करने की कोशिश का आरोप लगा। 2018 में धार्मिक द्वेष फैलाने के मामले में दिल्ली में केस दर्ज हुआ। 2019 के लोकसभा चुनाव में बग्गा पर अमित शाह के रोड शो के दौरान हिंसा करने का आरोप लगा। कोलकाता पुलिस ने उसे हिरासत में भी लिया था। 29 नवंबर 2019 को पटियाला हाउस कोर्ट ने दंगा कराने की नीयत से भड़काऊ भाषण देने के लिए दोषी ठहराया। इस मामले में उसके ऊपर छह सौ रुपये का जुर्माना हुआ था।
इतने आपराधिक मामलों में शामिल  बग्गा  दिल्ली भाजपा का प्रवक्ता हैं। इससे भाजपा का भी चाल,चरित्र और चेहरा उजागर हो जाता है।

(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)