इंद्र वशिष्ठ
प्रधानमंत्री जी क्या 56 इंच का सीना ठोक कर यह कहना कि " ना खाऊंगा ना खाने दूंगा", भ्रष्टाचार बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करुंगा भी जुमला बन कर रह गया। कोर्ट ने तो सीबीआई को सिर्फ पिंजरे का तोता ही कहा था लेकिन अब तो तोते गिद्ध बन गए हैं।
 खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ और सीबीआई भी भ्रष्ट हो जाए देश की सुरक्षा को तो खतरा होगा ही  बड़े अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई  की बात तो बहुत दूर है निष्पक्ष/ स्वतंत्र /पारदर्शी जांच की बात भी इतिहास बन जाएगी।
सीबीआई में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सीबीआई ने अपने ही स्पेशल डायरेक्टर के खिलाफ करोड़ों रुपए रिश्वत लेने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया है। दूसरी ओर स्पेशल डायरेक्टर ने सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा पर ही करोड़ों रुपए की रिश्वत लेने का आरोप लगाया है। इतने बड़े-बड़े अफसरों द्वारा एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि निचले स्तर पर भ्रष्टाचार का क्या आलम होगा।
सीबीआई के दो पूर्व डायरेक्टरों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार , हवाला, काले धन को सफेद करने के आरोप में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय में मामले दर्ज हैं।
चौंकने वाली बात यह है कि इन अफसरों ने ऐसे मामलों में भ्रष्टाचार किया जिनकी जांच पर  सुप्रीम कोर्ट की भी नज़र हैं। इससे पता चलता है कि इन निरंकुश अफसरों को सुप्रीम कोर्ट का भी बिल्कुल डर नहीं है। इससे यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब ऐसे महत्वपूर्ण मामलों में यह भ्रष्टाचार कर सकते हैं तो सामान्य मामलों में तो भ्रष्टाचार का अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
सीबीआई की इस हालात के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार नेता और आईपीएस अफसर है। सीबीआई का नेताओं द्वारा अपने विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करने के आरोप तो हमेशा से लगते रहे हैं । कोर्ट  ने सीबीआई को पिंजरे का तोता कहा था। लेकिन अब तो लगता है कि तोता नहीं ये गिद्ध हैं।
कांग्रेस हो या बीजेपी अपने चहेतों को ही सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय ,  दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद पर तैनात करते हैं और उनका इस्तेमाल सत्ता के लठैत के रूप में करते हैं। जाहिर सी बात है कि अगर ऐसे आईपीएस जब नेता के लिए काम करेंगे तो अपने निजी स्वार्थ/ फायदे के लिए भी अपने पद का दुरुपयोग / भ्रष्टाचार करना स्वाभाविक है। नेता और  आईपीएस की सांठ-गांठ के कारण ही महत्वपूर्ण मामलों की जांच का भट्ठा बिठा कर अपराधियों को फायदा पहुंचाया जाता है।
कानून या संविधान की बजाए नेताओं के इशारे पर काम करने वाले कई आईपीएस ही ना केवल सर्विस के दौरान महत्वपूर्ण पद पाते हैं बल्कि रिटायरमेंट के बाद भी यूपीएससी सदस्य या राज्यपाल आदि तक बन जाते हैं।
 राकेश अस्थाना गुजरात से मोदी के कृपा पात्र रहे हैं। 
 ईमानदारी, वरिष्ठता और योग्यता को दर किनार कर जब तक नेता अपने चहेतों को महत्वपूर्ण पदों पर तैनात करते रहेंगे तो ऐसे ही भ्रष्टाचार का बोलबाला रहेगा।
दिलचस्प बात यह है कि सीबीआई ने अपने जिन पूर्व डायरेक्टरों के खिलाफ पिछले साल मामला दर्ज किया था। उनको अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। और ना ही गिरफ्तार करने की संभावना है क्योंकि सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे  है।
दूसरी ओर किसी निर्दोष को फंसाने में सीबीआई बिल्कुल भी देर नहीं लगाती। जैसे आरुषि हेमराज हत्या काण्ड में सीबीआई के आईपीएस अफसर अरुण कुमार ने तीनों नौकरों को गिरफ्तार कर दावा किया था कि नार्को टेस्ट में हत्या करना कबूल किया है लेकिन बाद में वह नौकर  बेकसूर निकले।
सीबीआई की भूमिका संदिग्ध--
क्या‌ सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा बता सकते है कि नोटबंदी में एक बैंक द्वारा किए गए घोटाले की जांच से जुड़े एक आईपीएस अफसर को उस मामले की जांच से अचानक हटा कर वापस दिल्ली पुलिस में क्यो भेजा गया था? अगर उस आईपीएस की भूमिका सही नहीं थी तो उसके खिलाफ कार्रवाई करने की बजाए उसे सिर्फ हटा कर बचाया क्यों गया ?
पुलिस सूत्रों के अनुसार संयुक्त पुलिस आयुक्त स्तर के इस अफसर को अमूल्य पटनायक महत्वपूर्ण पद नहीं देना चाहते थे लेकिन यह अफसर भी उस गृहमंत्री की कृपा प्राप्त करने में सफल हो गया जिसकी कृपा से अमूल्य पटनायक भी वरिष्ठता को दर किनार कर पुलिस कमिश्नर बनाए गए।
आईपीएस अफसरों में चर्चा है कि एक आईपीएस के
महरौली इलाके में अवैध कैसिनो वाले से संबंध और अन्य संदिग्ध गतिविधियों के बारे में सीबीआई को पता चला था जिसके बाद उसे  जिला डीसीपी के पद से हटा दिया गया। लेकिन कुछ समय बाद फिर महत्वपूर्ण पद पर तैनात कर दिया गया। सीबीआई ने ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन किया होता वह अफसर बच नहीं सकता था।

सीबीआई ने मेडिकल कॉलेज वालों से दो करोड़ रुपए रिश्वत लेते हुए बाप बेटे को गिरफ्तार किया था लेकिन यह रकम जिस हेमंत शर्मा को दी जानी थी उसे सीबीआई ने गिरफ्तार नहीं किया । हेमंत शर्मा को इस मामले के उजागर होने के बाद रजत शर्मा ने खुद को ईमानदार दिखाने के लिए इंडिया टीवी से निकाल दिया। रजत शर्मा ईमानदार होता तो हेमंत शर्मा की करतूत और उसे  निकालने के बारे में अपने चैनल में ख़बर दिखाता और अपने मित्र मोदी से कहता कि हेमंत को बख्शा नहीं जाना चाहिए।
सीबीआई ने एनडीटीवी के खिलाफ मामला दर्ज किया है लेकिन अब तक प्रणय रॉय को गिरफ्तार नहीं किया गया। इस तरह प्रवर्तन निदेशालय में भी एनडीटीवी के खिलाफ मामला दर्ज हैं। ईडी भी  प्रणय रॉय को पकड़ेंगी या नहीं क्योंकि कई साल से सिर्फ नोटिस भेजने की परंपरा निभा रही हैं। प्रधानमंत्री जी अगर आप की नीयत सही है तो मीडिया के  मठधीशों को गिरफ्तार करवाएं वर्ना तो यह लगेगा कि अपने फ़ायदे के लिए मीडिया पर दबाव बनाने के लिए यह हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। इन मामलों से जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
प्रवर्तन निदेशालय में भी विवादित अफसर--
 प्रवर्तन निदेशालय में भी राजेश्वर सिंह और सीमांचल दाश जैसे अफसर भी है जो  विवादों में रहे
हैं । राजेश्वर सिंह के दुबई में फोन करने के बारे में रॉ ने सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट थी लेकिन ईडी ने यह कह कर उसका बचाव किया कि सूचना/ तफ्तीश के सिलसिले में यह बात हुई थी। दुबई से मिली सूचना ईडी के आपरेशन में काम आई।
सीमांचल दाश अरुण जेटली  का निजी सचिव  था तब टाइम्स आफ इंडिया के संपादक दिवाकर अस्थाना के साथ मिलकर  आईआरएस अफसर अनपुम सुमन को लंदन में तैनात कराने की कोशिश में दाश का नाम भी उजागर हुआ था।
आईआरएस अफसर सीमांचल दाश को प्रवर्तन निदेशालय में तैनात करने के लिए  प्रिसींपल स्पेशल डायरेक्टर का नया पद बनाया गया।
जांच एजेंसी का वरिष्ठ अफसर यदि किसी संदिग्ध व्यक्ति या हवाला कारोबारी से विदेश में फोन पर लगातार संपर्क करें तो भी उसके बचाव में यह तर्क दिया जाता है कि जांच के सिलसिले में या सूचना हासिल करने के लिए संपर्क किया जा रहा था। यह तर्क राकेश अस्थाना भी अपने बचाव में दे सकता है।
 लेकिन दूसरी ओर किसी आम आदमी का संपर्क या  नंबर भी किसी संदिग्ध या आरोपी के पास मिल जाए तो उसे सह अभियुक्त तक मान कर  जांच एजेंसियों द्वारा प्रताड़ित और वसूली तक की जाती है जैसा सतीश सना के साथ भी हुआ। 

कसाई मोईन कुरेशी और सीबीआई के डायरेक्टरों  की कहानी--

सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना और डीएसपी देवेंद्र कुमार के खिलाफ सीबीआई ने भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया है। डीएसपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। दिलचस्प बात यह है कि डीएसपी को भ्रष्टाचार के मामले में नहीं बल्कि सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को फंसाने के लिए सतीश सना का फर्जी बयान बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
 क़साई /मीट कारोबारी मोईन कुरेशी के खिलाफ सीबीआई में मामले दर्ज हैं। इस मामले में हैदराबाद के कारोबारी सतीश सना ने सीबीआई के इन दोनों अफसरों के खिलाफ तीन करोड़ रुपए रिश्वत लेने का मामला दर्ज कराया है। सतीश का आरोप है कि मोईन कुरेशी के मामले में जांच के नाम पर उसे बार बार पूछताछ के नाम पर बुला कर परेशान किया जा रहा था। दुबई के बिजनेसमैन मनोज प्रसाद ने उसे इस मामले से मुक्त कराने के लिए अपने भाई सोमेश से मिलवाया। जिसने उसे बताया कि सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना से उसके संबंध है। सीबीआई से मुक्त कराने के एवज में उसने पांच करोड़ रुपए रिश्वत मांगी। सतीश के अनुसार उसने क़रीब तीन करोड़ रुपए रिश्वत दे दी। एक करोड़ रुपए उसने सोमेश को दुबई में दे दिए। एक करोड़ 95 लाख रुपए उसने अपने कर्मचारी पुनीत के माध्यम से सोमेश के ससुर सुनील मित्तल को 13-12-2017 को दिल्ली में प्रेस क्लब की पार्किंग में दिए।
 सतीश के अनुसार दिसंबर 2017 में एक दिन सोमेश ने उसे फोन किया और बताया कि वह राकेश अस्थाना के दफ्तर में बैठा हुआ है उसने उसके केस के बारे में राकेश अस्थाना से की गई बातें भी उसी समय फोन पर उसे सुनवाई थी। इसके बाद भी उसे परेशान किया जा रहा था। इस पर मनोज ने उसे बकाया दो करोड़ रुपए का भुगतान करने के लिए कहा। सतीश ने पुनीत के माध्यम से करोलबाग बाग में बैंक स्ट्रीट स्थित डायमंड पोलकी पर 25 लाख रुपए पहुंचा दिए। इसके अलावा उसने दो बार में 11 लाख रुपए मनोज को दुबई में मीटिंग और हवाई जहाज की टिकट के लिए दिए थे। सतीश ने शिकायत में खुफिया एजेंसी रॉ के सामंत गोयल और परवेज़ हयात का नाम भी लिखा है।  सतीश ने मैजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज कराया है। सीबीआई ने केस दर्ज कर इस मामले में 16 अक्तूबर को मनोज प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया है।
सीबीआई उसके भाई सोमेश को भी गिरफ्तार करने वाली थी सीबीआई  सोमेश के फोन की रिकॉर्डिंग कर रही थी जिससे उसे पता चला कि रॉ के अफसर सामंत गोयल ने सोमेश को भारत आने से मना कर दिया है। मनोज और सोमेश रॉ के पूर्व डायरेक्टर के बेटे हैं। सोमेश ने सतीश को यह। भी बताया कि राकेश अस्थाना उसके लंदन के घर में ठहर चुके हैं।
दूसरी ओर स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा के खिलाफ  कैबिनेट सचिव/सीवीसी में शिकायत की है आलोक वर्मा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है।
कसाई मोईन कुरेशी के खिलाफ सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और इनकम टैक्स विभाग में  हवाला, काले धन को सफेद करने समेत अनेक मामले दर्ज हैं। मोईन कुरेशी अपने जानकार अफसरों के लिए बिचौलिए का काम करता था। वह लोगों से मोटी रकम लेकर उनको जांच एजेंसियों द्वारा दर्ज मामले से बचाने का काम करता था। प्रवर्तन निदेशालय को मोईन कुरेशी मामले की जांच में सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर अमर प्रताप सिंह के शामिल होने का पता चला। प्रवर्तन निदेशालय ने अमर प्रताप सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया।
इसके बाद सीबीआई ने भी भ्रष्टाचार के आरोप में अपने पूर्व डायरेक्टर अमर प्रताप सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने इसके बाद अपने ही पूर्व डायरेक्टर रंजीत सिन्हा के खिलाफ भी भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया। रंजीत सिन्हा पर कोयला खदान मामले के आरोपियों से मिलीभगत और अपने घर में अनेक बार उनसे मिलने का पता चलने पर यह मामला दर्ज किया गया।
सीबीआई और ईडी किसी ने भी इन अफसरों को गिरफ्तार नहीं किया है।
कहीं क़साई तो कहीं हलवाई है आईपीएस के दलाल /बिचौलिए। ---
सीबीआई ने पिछले दिनों चाणक्य पुरी स्थित आईएएस अधिकारियों के क्लब के कैटरर राकेश तिवारी को गिरफ्तार किया है। राकेश सीबीआई के आरोपियों को  संवेदनशील सूचना देकर उनको बचाने में मदद करता था।इस मामले में सीबीआई ने आज तक यह नहीं बताया कि सीबीआई के किन अफसरों के साथ राकेश की सांठ-गांठ थी। और सीबीआई के उन अफसरों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई।

केंद्र सरकार के मातहत दिल्ली पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और निरंकुशता से लोग त्रस्त है।--
दक्षिण जिला के तत्कालीन डीसीपी रोमिल बानिया ने अपने निजी कुत्तों के लिए डीसीपी दफ्तर में कमरे बनवाएं, कूलर लगवाएं और मातहत पुलिस वालों को कुत्तों की सेवा में लगाया।  पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक बताएं कि इस मामले में उन्होंने आईपीएस रोमिल बानिया के खिलाफ क्या कार्रवाई की?  कमरे बनाने में लगा धन सरकारी है या भ्रष्टाचार का ?  क्या यह सब पुलिस कमिश्नर की मंजूरी से किया गया?
पुलिस कमिश्नर बताएं कि आईपीएस मधुर वर्मा को जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटाया क्यो गया था और फिर दोबारा जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर लगाने की वजह क्या है?
पुलिस में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि एक बिजनेस मैन ने आरोप लगाया कि माया पुरी थाने के एस एच ओ सुनील मित्तल  ने उससे दस लाख रुपए रिश्वत मांगी।
सीबीआई की काबिलियत का अंदाजा इस उदाहरण से लगाया जा सकता है। सीबीआई ने मायापुरी थाने के एएसआई सुरेंद्र को एक लाख रुपए रिश्वत लेते हुए पकड़ा। सीबीआई एएसआई के माध्यम से एसएचओ सुनील मित्तल को पकड़ना चाहती थी। सीबीआई ने एएसआई को ही उसकी कार की चाबी दे दी और उसे कार में अकेले बैठने दिया। एएसआई कार ले कर भाग गया। इस तरह एस एच ओ को पकड़ना तो दूर हाथ आया एएसआई भी भाग गया। अनेक आईपीएस अफसरों का चहेता होने के कारण सुनील मित्तल  लगातार एसएचओ के पद पर तैनात हैं
माया पुरी से पहले वह विकास पुरी, राजौरी गार्डन और सनलाइट कालोनी थाने में एस एच ओ रहा है।

आईपीएस अपराध की राह पर--
पुलिस अफसरों  द्वारा भी  शातिर अपराधी की तरह संगीन अपराध करने के मामले बढ़ रहे हैं। भारतीय पुलिस सेवा यानी आईपीएस के 47 पुलिस अफसरों के खिलाफ  आपराधिक मामलों में एफ आई आर दर्ज की गई है।

75 आईपीएस के खिलाफ कार्रवाई- राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि इस समय 75 आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासना