सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, जिन्हें एमबीएस नाम से भी जाना जाता है, ने कहा है कि वो शाही जीवन शैली और ख़ुद पर बेशुमार धन खर्च करने की प्रवृत्ति के लिए माफ़ी नहीं मांगेंगे.अमरीका जाने से पहले सीबीएस को दिए एक विस्तृत इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि उनका व्यक्तिगत खर्च निजी मामला है. 20 मार्च को अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप व्हाइट हाउस में एमबीएस की मेजबानी करने वाले हैं.
सऊदी किंग सलमान के 32 वर्षीय बेटे एमबीएस ने जून 2017 के बाद सत्ता पर तेज़ी से नियंत्रण हासिल किया है. उन्होंने अपने चचेरे भाई को बेदख़ल कर ख़ुद को क्राउन प्रिंस बना लिया था.एमबीएस ने सत्ता की कमान संभालने के बाद से मुल्क में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अभियान छेड़ रखा है. इस अभियान के तहत उन्होंने सऊदी के बड़े कारोबारियों, शाही परिवारों और सरकारी अधिकारियों के ठिकानों से 100 अरब डॉलर की संपत्ति को अपने क़ब्ज़े में किया है. एमबीएस ने इन लोगों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई का भी आदेश दिया है.
हालांकि इस मामले में ख़ुद एमबीएस ही घिरे हुए हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रिंस ने हाल ही में 3200 करोड़ रुपए की यॉर्ट, 2,936 करोड़ रुपए की द विंची की पेंटिंग और 1,957 करोड़ रुपए में फ़्रांसीसी महल ख़रीदे थे. इस पर एमबीएस ने कहा है, ``यह मेरा व्यक्तिगत जीवन है जो कि मैं पसंद करता हूं. मैं इन बातों से ध्यान नहीं भटकाना चाहता हूं. अगर कोई अख़बार इन चीज़ों पर उंगली उठाना चाहता है तो ये उस पर निर्भर करता है.``एमबीएस ने आगे कहा है, ``जहां तक मेरे व्यक्तिगत खर्च की बात है तो मैं अमीर व्यक्ति हूं. मैं ग़रीब नहीं हूं. मैं गांधी या नेल्सन मंडेला नहीं हूं. मैं शासक परिवार से हूं जो सैकड़ों सालों से है.``
क्राउन प्रिंस ने कहा कि अपने ऊपर बेशुमार खर्च उनकी आय का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि वो कम से कम 51 फ़ीसदी लोगों पर खर्च करते हैं और 49 फ़ीसदी ख़ुद पर.एमबीएस उस देश को आधुनिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो कई स्तरों पर बेहद रूढ़िवादी है. उन्होंने सऊदी के लिए विजन 2030 प्रोजेक्ट लॉन्च किया है.क्राउन प्रिंस चाहते हैं कि सऊदी की अर्थव्यवस्था की निर्भरता पेट्रोलियम से कम किया जाए. वो चाहते हैं कि सऊदी में विदेशी निवेश को बढ़ावा मिले इसलिए विविधता को तवज्जो दी जाए. क्राउन प्रिंस कई तरह के सामाजिक सुधारों को अंजाम देना चाहते हैं. वो सिनेमा, महिलाओं के सेना में शामिल होने और उन्हें गाड़ी चलाने की अनुमति देने का काम पहले ही कर चुके हैं. हालांकि सऊदी में अब भी पुरुषों का वर्चस्व बना हुआ है.