बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने शरद यादव की तरफ इशारा करते हुए कहा है कि हिम्मत है तो पार्टी तोड़कर दिखाएं। सवालिया लहजे में उन्होंने कहा कि आरजेडी के बल पर ये पार्टी तोड़ेंगे? दरअसल मीडिया में बने रहने के लिए कुछ लोग पार्टी तोड़ने की बात करते हैं। पार्टी के सभी 71 विधायक, सभी 30 विधान पार्षद, दोनों लोकसभा सदस्य और राज्यसभा के नौ में से सात सदस्य एक साथ हैं। आपको बता दें कि शरद ने जदयू के एनडीए में शामिल होने के निर्णय को गलत ठहराया है। मुख्यमंत्री शनिवार को रवींद्र भवन में जदयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक सह खुला अधिवेशन में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि महागठबंधन टूटने से बिहार खुश है। जनमत इसके पक्ष में है। महागठबंधन सरकार बनने के बाद गांव-गांव में भय का माहौल बनने लगा था। डरने लगे थे गरीब-गुरबे। आज सभी प्रसन्न हैं। पिछलग्गू बन कर कुकर्म ङोलें, इसलिए नहीं मिला था जनादेश। जनादेश बिहार की खुशहाली, तरक्की और न्याय के साथ विकास के लिए मिला था। काम करना मुश्किल हो गया था मेरे लिए। राजद के द्वारा निचले स्तर पर प्रशासन में हस्तक्षेप होने लगा था। सत्ता से हटने पर हताशा में हैं। अभी और हताशा में जाएंगे। जितना मुझ पर अपमानजनक शब्द का उपयोग करेंगे, उतना ही मजबूती से विशाल बहुमत हमारे साथ आएगा।

लोकलाज की बात करते हैं : शरद यादव पर निशाना साधा कि कहते थे कि लोकलाज से चलता है लोकतंत्र। आज भूल गये अपनी बात और घूमने लगे पीछे-पीछे। साझी विरासत की बात करने वाले, दरअसल अपने परिवार की विरासत में लगे हैं। 2004 में उनके (शरद) चुनाव हारने के बाद राज्यसभा में उन्हें भेजने के पक्ष में नहीं थे जॉर्ज फर्नांडिस। हमने दो घंटे उनके घर बैठ कर शरद यादव के नाम पर सहमति को राजी किया। आज वे कहते हैं 2013 में एनडीए से अलग होने के पक्ष में नहीं थे, तो उस समय क्यों नहीं कहा था। अली अनवर पर कहा कि उन्हें दो बार रास भेजा, पर आज वे उपदेश देते हैं। लज्जा नहीं आती। मुस्लिम वोट को लेकर लालू को भ्रम : मुख्यमंत्री ने कहा कि खासकर मुस्लिम वोट को लेकर लालू प्रसाद को भ्रम है कि वह उन्हीं का है। हम पूछते हैं कि आखिर उन्होंने क्या काम किया है, मुस्लिमों के लिए।


मुख्यमंत्री ने कहा कि हम वोट नहीं संकल्प के लिए काम करते हैं। सभी जाति, समुदाय और धर्मों के लिए काम करना मेरा फर्ज है। हमने कभी कोई भेदभाव नहीं किया। हम लोगों की खिदमत करते हैं, जबकि वे मालिक बन कर राज करना चाहते हैं। जनता को वोटर समझने वाले कभी भला नहीं कर सकते। बाढ़ पीड़ितों को मिलेगी बड़े पैमाने पर मदद: सीएम ने कहा, इस बार बाढ़ से जो नुकसान हुआ है, वह अभूतपूर्व है। पीड़ितों को बड़े पैमाने पर मदद दी जाएगी। उनके घर बनाने, फसल नुकसान की भरपाई होगी। घर-घर राहत पहुंचाई जाएगी। वे सभी जगह जाकर देखेंगे। केंद्र से भी राशि की मांग की जाएगी। जदयू ने पार्टी में टूट की खबर को निराधार बताया है। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी व परिषद की बैठक के बाद शनिवार को पत्रकारों से बातचीत में प्रवक्ता केसी त्यागी ने दो टूक कहा कि पार्टी के सभी 71 विधायक, 30 विधान पार्षद, दोनों लोकसभा सांसद और 10 में तीन को छोड़ सात राज्यसभा सांसद और 19 में से 16 राष्ट्रीय पदाधिकारी जिसके साथ हों, उसमें टूट कहां है। प्रवक्ता ने कहा कि राजद के साथ सरकार चलाना मुश्किल था।

अगर हम भ्रष्टाचार के साथ रहकर सरकार चलाते तो महागठबंधन की हालात यूपीए-दो की तरह हो जाती। नीतीश कुमार की स्थिति मनमोहन सिंह की तरह हो जाती। किसी काम के नहीं रह जाते। जनादेश किसी परिवार के भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए नहीं मिला था। जदयू के लिए भ्रष्टाचार सबसे अहम मुद्दा है। कोई हमे साम्प्रदायिकता का पाठ न पढ़ाए। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में आईटी, सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय जैसी एजेंसियों से बचने के उपाय किए जा रहे हैं। पार्टी से बागी तेवर अपना रखे शरद यादव पर कहा कि उनसे कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने का अनुरोध किया गया था पर वे नहीं आए। 43 वर्षों के रिश्तों की दुहाई देते हुए कहा कि परिवारवाद, वंशवाद, भ्रष्टाचार के प्रतीक लालू प्रसाद के साथ उनके जैसे अच्छे नेता का जाना दुखद है। अली अनवर या अन्य नेताओं की तुलना में शरद की शख्सियत अलग है। साझी विरासत से हमें कोई ऐतराज नहीं है। नीतीश कुमार के साथ खड़े होने पर शरद यादव का कद बढ़ेगा और लालू के साथ खड़ा होने पर उनकी गरिमा गिरेगी। वैसे उन्होंने स्वेच्छा से दल त्यागा है, लेकिन अगर 27 अगस्त की रैली में लालू प्रसाद के साथ खड़े दिखे तो वह लक्ष्मणरेखा होगी और तकलीफ के साथ पार्टी कठोर निर्णय लेगी। शनिवार को रवींद्र भवन में आयोजित जदयू के खुला अधिवेशन में शामिल पार्टी के विधायक, एमएलसी व अन्य नेतागण। प्रवक्ता ने कहा कि शरद यादव को नेता पद से हटाया जाना इसलिए जरूरी था कि नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक, राष्ट्रपति चुनाव आदि मसलों पर जदयू अध्यक्ष कुछ और कहते और वे कुछ और बयान दे रहे थे। उनकी गतिविधियां लगातार दल विरोधी हो रहीं थी। पार्टी की नीतियों व नेता के विचार सदन तक सही रूप में जाए, इसलिए सांसद आरसीपी सिंह को नेता बनाया गया।