अनवर चौहान

अहमद पटेल को हराने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने जो ताना बाना बुना था उसकी धज्जियां उड़ गई। अहमद पटेल की जीतने ये साबित कर दिया कि गुजरात में कांग्रेस अभी ज़िंदा है। ये जीत गुजरात में होने वाले विधान-सभा चुनाव में कोई नया गुल खिलाएगी। अहमद पटेल का ये पांचवा राज्यसभा चुनाव था. इससे पहले राज्यसभा का चुनाव एक फ़्रेंडली मैच की तरह होता था जिसका परिणाम आमतौर पर मालूम होता था कि अगर इतनी सीटें हैं तो कौन-कौन लोग चुनकर आएंगे. इस बार भी गुजरात का राज्यसभा चुनाव कुछ अलग नहीं था. लेकिन दो बातों की वजह से सारा समीकरण बदल गया. एक तो ये कि शंकरसिंह वाघेला ने नेता विपक्ष के पद से इस्तीफ़ा दिया और दूसरा ये कि बीजेपी ने ये मन बना लिया कि इस चुनाव को वो बहुत ऊंचे स्तर पर ले जाएगी और जीतेगी. इन दो कारकों के होने की वजह से ये एक बहुत हाई वोल्टेज ड्रामा की शक्ल में सामने आया.

घटनाक्रम को देखें तो ये बात समझ में आती है कि बीजेपी ने इस चुनाव को इस स्तर तक ले जाने का काफ़ी पहले ही मन बना लिया था. इस योजना के तहत बीजेपी ने सबसे पहला काम ये किया कि शंकर सिंह वाघेला पर प्रश्न उठाना शुरू किया और ऐसा माहौल तैयार कर दिया जिससे ये लगने लगा कि वाघेला शायद बीजेपी में जा रहे हैं. जबकि हक़ीक़त ये थी कि उस समय तक वाघेला का ऐसा कोई इरादा नज़र नहीं आ रहा था.इससे ऐसा संकेत भी मिला की बीजेपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के स्तर पर बहुत कुछ खिचड़ी पक रही है.

जैसे-जैसे वक्त गुज़रता गया, कांग्रेस में घटनाक्रम बदले, बाग़ी खड़े हुए और हालत ये हो गई कि पार्टी को अपने विधायकों को टूट से बचाने के लिए गुजरात से बाहर ले जाना पड़ा. वहां बेंगलुरु में केंद्र सरकार ने जिस तरह इनकम टैक्स और ईडी की मदद से कथित तौर पर दबाव बनाया उससे ये ज़ाहिर होने लगा कि भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में अपना सब-कुछ झोंक रही है. अब सवाल उठता है कि ऐसा क्या था इस चुनाव में कि भारतीय पार्टी ने अपने समय, रणनीति, ऊर्जा - सबकुछ लगा दिया. मुझे लगता है कि बीजेपी चाहती थी कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में सरकार बनाने के बाद मिले राजनीतिक लाभ को और मज़बूत करे और मनोवैज्ञानिक रूप से कांग्रेस को भरपूर नुकसान पहुंचाए.मनोवैज्ञानिक नुकसान का आशय यहां यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल अगर अपने गढ़ में ये चुनाव हार जाते हैं तो कांग्रेस के काडर के लिए ये एक बहुत बड़ा सदमा होगा और साथ ही बीजेपी के लिए ये एक बहुत बड़ी राजनीतिक जीत वाली स्थिति होगी. दूसरी बात ये है कि सोनिया गांधी भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों के दिमाग़ में एक बगवेयर के रूप में बैठी हुई हैं जिनका  उत्तरोत्तर कमज़ोर होना पार्टी के हित में है.

बीजेपी ये बात नहीं भूल पाती कि सोनिया गांधी ने अकेले अपने दम पर 2004 में न केवल पार्टी को खड़ा किया था बल्कि अटल जी के इंडिया शाइनिंग की भी हवा निकाल दी थी. यही वजह है कि बीजेपी के रणनीतिकार ये कोशिश करते हैं कि सोनिया गांधी और उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस को जितना संभव हो सके नीचे लाया जाए. दूसरी बात, आरएसएस को ये लगता है कि भारत में हर बात कहीं न कहीं कांग्रेस से जुड़ जाती है. इसलिए वो ऐसे भारत की कल्पना करना चाहती है जिसमें कांग्रेस न हो तभी भारत निर्माण हो सकता है. यही वजह है कि बीजेपी ने `कांग्रेस मुक्त भारत` का नारा चलाया हुआ है. हालांकि ये बात अलग है कि कांग्रेस मुक्त भारत बनाने  की कोशिश में खुद बीजेपी कांग्रेस युक्त होती जा रही है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली बीजेपी की रणनीति ये है कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में अगर दक्षिणपंथी विचारधारा को आगे बढ़ाना है तो पुरानी सोच और उसके प्रतीकों को उखाड़ना होगा.

उसी उखाड़ने की प्रक्रिया के तहत अहमद पटेल के बहाने एक सांघातिक प्रहार की कोशिश की गई, लेकिन इसे बीजेपी का  दुर्भाग्य कहें या कांग्रेस का सौभाग्य कि बीजेपी का ये पासा उल्टा पड़ गया. कांग्रेस के लिए ये जीत बेहद महत्वपूर्ण साबित होगी क्योंकि कांग्रेस लंबे अरसे से बैकफ़ुट पर चल रही है. अहमद पटेल को हराने के लिए बीजेपी और सरकार दोनों ने मिलकर बेहद आक्रामक रणनीति तैयार की थी. लेकिन अब जबकि अहमद पटेल इस कांटे की टक्कर में विजेता बनकर उभरे हैं तो परसेप्शन के स्तर पर और मनोबल के स्तर पर इसका काफ़ी फ़ायदा कांग्रेस को मिलेगा. इस साल के आखिर में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं. अहमद पटेल की जीत से कांग्रेस पार्टी के पास एक मौका आ गया है चीज़ों को ठीक करने का.

मोदीजी के गुजरात से केंद्र में जाने के बाद गुजरात बीजेपी में वैसी बात नहीं रही है जो पहले होती थी. वैसे भी कहते हैं कि वट वृक्ष के नीचे कुछ नहीं पनपता. तो मोदी जी के समय गुजरात बीजेपी में मोदी ही मोदी नज़र आते थे. दूसरे नंबर के नेता का भरपूर अभाव था. जब मोदी जी केंद्र की राजनीति में चले गए तो उनकी जगह गुजरात में जो नेता उभरे उनमें वो बात नहीं है जो मोदी जी में थी. और सरकार जिस तरीके से चल रही है उसका भी जनता में कोई बहुत अच्छा संदेश नहीं जा रहा. इसका फ़ायदा कांग्रेस को मिल  सकता है. सामाजिक असंतोष भी बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. पाटीदार, दलित और अन्य पिछड़े तबकों में सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर असंतोष है. इसका फ़ायदा कांग्रेस को मिलता नज़र आ रहा था, लेकिन वाघेला के साथ विधायकों के कांग्रेस छोड़कर जाने से पार्टी की चुनाव तैयारियों को एक धक्का लगा था. लेकिन अहमद पटेल की जीत से कांग्रेस को एक संजीवनी बूटी सी मिल गई है.

अगर पार्टी आलस नहीं करती और इस जीत के पैदा हुई ऊर्जा को संजो कर एक नई रणनीति के साथ चुनाव में उतरती है तो सत्ता का खेल बदल भी सकता है क्योंकि कांग्रेस एक इतना विशालकाय प्राण है कि उसको हिलाना मुश्किल होता है और चलाना और और भी मुश्किल. अगर वो अब भी नहीं चेतेगी तो बहुत मुश्किल हो सकती हैबीजेपी इससे कैसे उभरेगी, बीजेपी का नियंत्रण इस समय नरेंद्र मोदी और अमित शाह के पास है. इन दोनों नेताओं की कार्यशैली ये है कि बड़ा धक्का लगने पर ये ऐसा कुछ नया कर डालते हैं जिससे सेटबैक का असर नहीं रह जाता. कांग्रेस अभी तक इस बात को समझ नहीं पाई है.

ब्लैक मनी का इश्यू चला था तो नोटबंदी से आलोचना के पूरे माहौल को बदल दिया गया. कहने का मतलब है कि बीजेपी सदमे को भुलाकर तुरंत खड़ी हो जाने वाली पार्टी हो गई है और गुजरात को पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व बहुत गंभीरता से ले रहा है क्योंकि वो इसी ज़मीन से निकलकर नरेंद्र मोदी केंद्र तक पहुंचे हैं. इसलिए गुजरात का पार्टी के लिए बहुत बड़ा प्रतीकात्मक महत्व है और वो इसे हाथ से निकलता नहीं देख सकते. इसलिए पार्टी ने अभी से ही बूथ लेवल तक अपनी रणनीति बना ली है. जबकि दूसरी ओर कांग्रेस है जो ऊपर-ऊपर की बातों में उलझी पड़ी है. अगर कांग्रेस को आगामी चुनाव में जीत के सपने को साकार करना है तो उसे नींद से जागना होगा और अहमद पटेल की जीत से मिली ऊर्जा को बहुत छोटे स्तर पर कार्य कर रहे पार्टी कार्यकर्ताओं तक पहुंचाना होगा. छोटी-छोटी जीत से ही बड़ी जीत का सपना साकार होता है. आने वाले समय में 2019 में लोकसभा के चुनाव होने हैं और कांग्रेस इस जीत से सबक लेकर एक समग्रता वाली रणनीति के साथ पूरी दमखम से काम करती है तो आज जिस हालत में पड़ी है उसका दूसरा पहलू भी देखने को मिल सकता है. लेकिन बीजेपी भी इन बातों को समझती है और वो अपने गढ़ को कमज़ोर होता नहीं देखना चाहेगी.