बिहार की सियासत में आए भूचाल को खत्म करने के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कोशिशें तेज़ हो गई हैं। ताजा विवाद के बाद सत्तारूढ़ महागठबंधन में पड़ रही दरार को पाटने के लिए नीतीश-लालू के शुभचिंतक भी बीच का रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नजदीकी जदयू सूत्रों ने स्वीकार किया है कि उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की ओर से आरोपों पर सफाई न देने के चलते महागठबंधन में तनाव बढ़ा है। तेजस्वी यादव के खिलाफ एफआइआर दर्ज होने के बाद मुख्यमंत्री ने पार्टी के एक सम्मेलन में यह स्पष्ट किया था कि उप मुख्यमंत्री को उन पर लगे आरोपों पर सफाई देनी होगी।
जदयू की ओर से उप मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के लिए दबाव बनाए जाने के बाद राजद नेता लालू यादव और तेजस्वी दोनों ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया था। इसके बाद महागठबंधन के दोनों मुख्य दलों के बीच विवाद बढ़ता चला गया। अब कांग्रेस नेतृत्व के अलावा लालू यादव और नीतीश कुमार के व्यक्तिगत मित्रों की ओर से राजद नेताओं को समझाया गया है कि वह तेजस्वी को नीतीश कुमार के पास भेजें और वे सफाई पेश करें। तेजस्वी यदि ऐसा नहीं करते और राजद की ओर से धमकाने के बयान जारी रहे तो सरकार और गठबंधन खतरे में पड़ सकता है।
सूत्रों का कहना है कि इसके लिए कोई समय-सीमा तय नहीं की गई है, लेकिन यह जितनी जल्दी होगा, आशंकाएं उतनी जल्द समाप्त होंगी। यह पूछे जाने पर कि क्या तेजस्वी से इस्तीफा लिया जाएगा? मुख्यमंत्री के नजदीकी सूत्रों ने बताया कि नीतीश कुमार ने कभी भी यह नहीं कहा कि तेजस्वी इस्तीफा दें। लेकिन तेजस्वी यदि इस्तीफा देते हैं तो उससे नीतीश कुमार की छवि और मजबूत होगी, जिसका फायदा गठबंधन को भी होगा।
नीतीश कुमार भले ही इस्तीफा स्वीकार करें या नहीं। दावा यह भी किया जा रहा है कि अगले एक-दो दिन में इन कोशिशों का नतीजा सामने आ जाएगा। दोनों में से कोई नहीं चाहता कि गठबंधन टूटे और सरकार गिरे। साथ ही सरकार जाने या गठबंधन टूटने से दोनों को नुकसान होगा, जिसका सीधा लाभ भाजपा को होगा।