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(अनवर चौहान) नई दिल्ली, राजधानी दिल्ली में मिलने वाली लावारिस लाशों के लिए कभी कोई क़ायदे क़ानून नहीं बने। फिर चाहे दिल्ली सरकार हो या दिल्ली नगर निगम। अंतिम संस्कार के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। लावारिस लाश यदि हिंदू की है तो उसी रीती-रिवाज के मुताब उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। यदि मुसलमान की है तो फिर उसे क़ब्रिस्तान में दफनाने का ज़िम्मा भी पुलिस वाले का है। दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल के बाहर आपको एक बूढ़ा अकसर बैठा नज़र आएगा। वो जुम्मा चाचा के नाम से मशहूर हैं। बरसों से अपने रिक्शे में लाशों को लादकर क़ब्रिस्तान में दफनाने का काम करते है। पुलिस वाले ही उनका खर्चा देते हैं।
लावारारिस लाशों के अंतिम संस्कार के लिए पुलिसकर्मियों को अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ते हैं। यह मामला सामने आने पर हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई। कोर्ट ने सभी संबंधित निकायों से इस समस्या का ठोस समाधान करने को कहा है। जस्टिस बीडी अहमद और जयंतनाथ की पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि यह क्या बकवास है। उन्होंने कहा कि बड़ी हैरानी की बात है कि लावारिस शव के अंतिम संस्कार में जांच अधिकारी को अपनी जेब से खर्च करने पड़ते हैं और यह प्रथा साल#2354;ों से चली आ रही है। लावारिस शवों के अंतिम संस्कार के लिए कोई कानून नहीं है तो नगर निगम सहित सभी निकाय बैठक कर इसका समाधान कोर्ट में पेश करें। पीठ ने कहा है कि इसके बाद ही उचित दिशा-निर्देश जारी किए जा सकते हैं। केंद्र सरकार ने पीठ को बताया कि यह तय किया गया है कि अलग से मृत्यु समीक्षक अधिनियम को आगे नहीं बढ़ाएगी।