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(अनवर चौहान) नई दिल्ली. बात-बात पर अदालत पहुंचने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आज फिर मुंह की खानी पड़ी। वो पूरी दिल्ली पर अपना अधिकार चाहते हैं और अदालत ने साफ कर दिया है कि दिल्ली के लाट साहब नजीब जंग ही रहेंगे न कि केजरीवाल। दिल्ली हाईकोर्ट में उन्हें बड़ा झटका लगा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ कह दिया "एलजी दिल्ली कैबिनेट की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं है। दिल्ली सरकार एलजी की परमिशन के बिना कोई कानून नहीं बना सकती।" कोर्ट ने साफ कहा कि दिल्ली के एडमिनिस्ट्रेटर एलजी ही रहेंगे।" हाईकोर्ट ने यह कमेंट नौ अलग-अलग पिटीशंस की सुनवाई के दौरान किया। इनमें से एक पिटीशन दिल्ली सरकार के कमीशन बनाने के पावर को लेकर है। हाईकोर्ट ने दिल्ली को लेकर क्या कहा... हाईकोर्ट ने कहा - "सेंट्रल गवर्मेंट ऑफिशियल के खिलाफ एंटी करप्शन ब्रांच (एसीबी) कोई एक्शन नहीं ले सकती है।" "वहीं, आर्टिकल 239 लगातार लागू रहेगा, जो दिल्ली को यूनियन टेरेटरी बनाता है।" "दिल्ली सरकार के सीएनजी फिटनेस स्कैम और डीडीसीए स्कैम में कमिश्ननर ऑफ इन्क्वायरी का आर्डर देना गैरकानूनी है। क्योंकि इस मामले में एलजी की सहमति नहीं ली गç#2312; थी।" "दिल्ली सरकार एलजी के परमिशन के बिना कोई कानून नहीं बना सकती है। सरकार को कोई भी नोटिफिकेशन जारी करने से पहले एलजी की मंजूरी लेनी होगी।"
आगे क्या करेंगे केजरीवाल?
गुरुवार को हाईकोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी खुश है तो आम आदमी पार्टी आगे का रास्ता तलाशने में जुट गई है। आप की ओर से कहा गया कि वह हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी। बीजेपी ने इसे सच्चाई की जीत बताया है। झगड़े की बड़ी वजह क्या हैं? पिछले एक साल में ऐसे कई मौके आए जब केंद्र और `आप` सरकार कई मुद्दों पर आमने-सामने आए। केजरीवाल के कई फैसलों को एलजी ने या तो कैंसल कर दिया या मानने से मना कर दिया। दोनों के बीच एक बड़ा विवाद एसीबी को लेकर भी हुआ। केंद्र के मुताबिक, एंटी करप्शन ब्रांच एलजी के अंडर में है। जबकि, केजरीवाल का कहना है कि एंटी करप्शन ब्रांच दिल्ली सरकार के लिए काम करती है। केजरी सरकार की दलील है कि एलजी कैबिनेट की सलाह मानने को बाध्य है, जबकि केंद्र सरकार इसे संविधान के खिलाफ बताती है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था दिल्ली सरकार से? केजरीवाल इस मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार करते हुए कहा था- " हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है और अब उसे रोका नहीं जा सकता। अगर, हाईकोर्ट के फैसले से संतुष्ट न हों तो आप सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं।"
फैसले की 5 खास बातें
1- दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि उपराज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रशासनिक प्रमुख हैं।
2- हाईकोर्ट ने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार की इस दलील में कोई दम नहीं है कि उपराज्यपाल मंत्रियों की परिषद की सलाह पर काम करने के लिए बाध्य हैं। इस दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
3- कोर्ट ने कहा कि एसीबी को केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई से रोकने की केंद्र की 21 मई 2015 की अधिसूचना न तो अवैध है और न ही अस्थायी।
4- कोर्ट ने कहा कि सेवा मामले दिल्ली विधानसभा के अधिकारक्षेत्र से बाहर हैं और उपराज्यपाल जिन शक्तियों का इस्तेमाल कर रहे हैं, वे असंवैधानिक नहीं हैं।
5- कोर्ट ने सीएनजी फिटनेस घोटाले और डीडीसीए घोटाले में जांच आयोग बनाने के आप सरकार के आदेश को अवैध ठहराया क्योंकि यह आदेश उपराज्यपाल की सहमति के बिना जारी किया गया।
फैसले को देंगे चुनौती
आप सरकार के वकील ने हाईकोर्ट से कहा कि वे तत्काल इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे। दिल्ली सरकार ने जुलाई, 2014 और मई 2015 को केंद्र सरकार की ओर से जारी अधिसूचना को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इन अधिसूचनाओं में दिल्ली में अधिकारियों की नियुक्ति, तबादले, पुलिस, सेवा और भूमि से संबंधित मामलों में उपराज्यपाल के निर्णय को सर्वोपरि बताया गया है। वहीं दिल्ली सरकार का कहना है कि अफसरों की नियुक्ति और तबादल करना उनके अधिकार क्षेत्र में है। केंद्र सरकार का कहना है कि चूंकि दिल्ली का प्रशासक उपराज्यपाल है और नियुक्ति और तबादले में उपराज्यपाल का अधिकार सर्वोपरि है।