
अनवर चौहान
बिहार कांग्रेस में जान फूकने की क़वायद शुरू हो चुकी है। और इसका ज़िम्मा कन्हैया कुमार को सौंपा गया है। पार्टी 90 के दशक से राजद के सहारे ही राजनीति कर रही है. अब अचानक से RJD से अलग होकर चुनावी मैदान में कूदना खुदकुशी के बराबर होगा. कांग्रेस पार्टी जिस वोटबैंक पर नजरे गढ़ाए है, पीके भी उसी के सहारे राजनीति में कूदे हैं. ऐसे में इस बार का चुनाव दिलचस्प होने वाला है.
बिहार में आठ महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन सियासी दांव और समीकरण अभी से सेट किए जाने लगे हैं. प्रदेश में अपनी खोए जनाधार को वापस पाने के लिए कांग्रेस पार्टी अब किसी पर निर्भर रहने की बजाय आत्मनिर्भर बनने की कवायद में है. इसके लिए पार्टी ने अपनी यूथ बटालियन यानी कन्हैया कुमार और कृष्णा अल्लावुरु को मैदान में उतार दिया है. कन्हैया कुमार ने भी रविवार (16 मार्च) से ‘नौकरी दो, पलायन रोको यात्रा’ शुरू कर दी है. यात्रा का मकसद युवाओं को पार्टी से जोड़ने का है, लेकिन ये पदयात्रा पार्टी को फायदा पहुंचाने के बजाय नुकसान भी पहुंचा सकती है. सियासी जानकारों का तो यह भी कहना है कि कन्हैया कुमार की पदयात्रा कहीं कांग्रेस पार्टी को पैदल ना कर दे.
दरअसल, बिहार में कांग्रेस पार्टी अभी तक राजद के पीछे खड़े होकर राजनीति कर रही थी. लेकिन राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने जब से राहुल गांधी को इंडिया ब्लॉक की कप्तानी से हटाने की सिफारिश की, तभी से दोनों दलों के बीच काफी मनमुटाव देखने को मिल रहा है. इस मुद्दे पर दलों के बीच काफी तीखी बयानबाजी देखने को मिल चुकी है. इस दौरान राहुल गांधी दो बार बिहार आए और दोनों बार लालू परिवार से मुलाकात की, लेकिन दोनों बार राजद को फंसाने वाले बयान देकर वापस गए. अब राजद को जवाब देने के लिए ही कांग्रेस पार्टी ने कन्हैया कुमार को बिहार में उतारा है. वैसे भी लालू परिवार के दबाव में ही कन्हैया कुमार को दिल्ली ट्रांसफर किया गया था.
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कन्हैया कुमार को बिहार में एक्टिव करना पार्टी को फायदा की जगह नुकसान भी पहुंचा सकता है. सियासी जानकारों का कहना है कि कन्हैया कुमार के आने से बिहार कांग्रेस दो खेमो में बंट गई है. कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू, कन्हैया कुमार, पप्पू यादव अभी एक कैंप में हैं और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह दूसरे कैंप में. अखिलेश प्रसाद का गुट राजद से रिश्ता रखने के समर्थन में है, जबकि कन्हैया कुमार का गुट अब एकला चलो की नीति पर काम करना चाहता है. बिहार में कांग्रेस पार्टी 90 के दशक से राजद के सहारे ही राजनीति कर रही है. अब अचानक से RJD से अलग होकर चुनावी मैदान में कूदना खुदकुशी के बराबर होगा.
अगर कांग्रेस और राजद का गठबंधन किसी कारण टूटा तो फिर बिहार में नया समीकरण बनेगा. अकेले अपने दम पर लड़कर जीतना बिहार में किसी दल के लिए आसान नहीं है. प्रशांत किशोर जिस वोट बैंक के आधार पर राजनीति कर रहे हैं. कांग्रेस का आधार भी अकेले होने पर वही होगा. ऐसे में इन दोनों के बीच एक समीकरण पनप सकता है. वहीं दूसरी ओर कन्हैया कुमार तो अपनी पदयात्रा के पहले बयान में ही घिर गए हैं. वह नौकरी-रोजगार पर बोलते-बोलते अचानक से हनीमून की बातें करने लगे. पदयात्रा में एनडीए सरकार पर हमला करते हुए कन्हैया कुमार ने कहा कि यहां की जनता को न केवल शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए बाहर जाना पड़ता है, बल्कि हनीमून मनाने तक के लिए भी दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ता है. चूकिं कांग्रेस पार्टी कन्हैया कुमार को प्रमोट कर रही है तो उनकी हर बात में `बाल की खाल` निकाली जाएगी, इतनी समझ तो कन्हैया कुमार को होनी ही चाहिए.