वरिष्ठ पत्रकार अनवर चौहान
आजकल टीवी पर एक डिबेट चल रही है कि विपक्ष की एकता होगी या नही। टीवी के पत्रकारों को इस बात की कतई समझ-बूझ नहीं कि इस सवाल का जवाब टीवी पर नहीं बंद कमरे में मिलेगा। देश के जो हालात हैं वो संकेत दे रहे हैं कि इक्का दुक्का को छोड़ कर तमाम दल मोदी के खिलाफ लामबंद हो जाएंगे। लगभग ये बात साफ हो चुकी है कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के खिलाफ विपक्ष का एक ही उम्मीदवार होगा। विपक्ष को अपने मौत दिखाई दे रही है। ऐसा मजबूरी में होगा। जिस तरह से ईडी, सीबीआई और इंकम टैक्स का मौजूदा सरकार इस्तेमाल कर रही है। उससे साफ ज़ाहिर है कि जेल जाने के लिए कब किस का नंबर आ जाए पता नहीं है।
भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके और कई राज्यों के राज्यपाल रह चुके सत्यपाल मलिक के साथ जो हो रहा है वो किसी से ढका छुपा नहीं है। मोदी के खिलाफ बोलने का क्या अंजाम होता है आप इसी बात अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आज सत्यपाल मलिक को काफी पीड़ा से गुज़रना पड़ रहा है। उनकी तमाम सरकारी सुविधाऐं छीन ली गई है। कशमीर में धारा 370 उन्ही के हस्ताक्षर से हटी। और आज उनके पास एक भी सुरक्षा गार्ड नहीं है। उनकी सुरक्षा राम भरोसे छोड़ दी गई है। उनके पास कोई सरकारी आवास नहीं है। वो दो कमरे के किराए के घर में रह रहे हैं। इतना ही नहीं आज कल उनके यहां सीबीआई का लगातार आना जाना लगा हुआ है। सिर्फ इतना ही नहीं उनके नौ करीबी जानकारों के यहां भी सीबीआई ने छापे मारे हैं। लेकिन दाद देने पड़ेगी सत्यपाल मलिक को बुढ़ापे की इस उम्र में भी वो मोदी के सामने सीना तान कर खड़े हें।
किसानों के आंदोलन के दौरान वो राज्यपाल रहते हुए भी केंद्र सरकार के खिलाफ अपनी नाराज़गी का इज़ाहार कर रहे। बिना डरे वो मोदी के खिलाफ लगातार बोलते रहे। और रिटायर होने के बाद जिस निडरता से उन्होंने पुलवामा के शहीदों का जो राज़ फाश किया उससे भाजपा की नींद हराम है। सत्यपाल मलिक ने भाजपा के राष्ट्रवाद के गुब्बारे की हवा निकाल दी है। भले ही इस पर आज चर्चा कम हो रही है। लेकिन 20024 में ये चुनावी मुद्दा होगा।
जंतर मंतर पर धरने पर बैठे पहलवानों की हिमायत में सत्यपाल मलिक खुल कर सामने आ गए है। उन्होंने जाटों की खाप पंचायतों को ही नहीं और दूसरी बिरादरी के लोगों को भी लामबंद कर दिया है। ये सत्यपाल की कोशिश ही है कि भीम आर्मी भी पहलवानों की हिमायत में खड़ी हो गई है। कुल मिलाकर बात ये हैं कि जो जाट खुलकर भाजपा के साथ खड़ा था उसके एक बड़े हिस्से पर सत्यपाल मलिक ने सेंध लगा दी है। हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों का एक बड़ा तबका भाजपा से नाराज़ दिखाई दे रहा है। अगर ससत्यपाल मलिक का यही रवैया रहा तो 20024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
अब बात करते हैं बाकी विपक्ष की। शुरू करते हैं दिल्ली से। केजरीवाल और कांग्रेस के बीच छत्तीस का आंकड़ा था। लेकिन अब दोनों दिल्ली ही नहीं पंजाब में भी मिलकर चुनाव लड़ेगें। ये अलग बात है कि सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों में टसल होगी। मगर अंत में दोनों एक दूसरे की बात पर राज़ी हो जाएंगे। ये बात में अपने सूत्रों के हवाले से लिख रहा हूं। अब बात ममता और अखिलेश यादव की। टीवी की बहस में नहीं दोनों की कांग्रेस के साथ लगभग सहमति बन चुकी है। सिर्फ सीट बंटवारे पर होने वाली गुफ्तगू बाकी है। उड़ीसा के नवीन पटनायक ने ना हां कहा है ना इंकार किया है। नवीन पटनायक से विपक्ष को यदि लाभ भी नहीं पहुंचा तो नुकसान भी नहीं होगा। बात तिलांगाना की। राज्य के चुनाव में कोई समझौते के आसार नहीं दिखते। पर लोकसभा चुनाव में केसीआर विपक्ष के कुनबे में खड़े दिखाई देंगे। इस बार ज़मीनी हक़ीकत ये हैं कि साउथ में भाजपा को बहुत कुछ मिलने वाला नहीं है।
उत्तर प्रदेश में भाजपा मज़बूत नहीं बहुत मज़बूत है। ठीक यहीं आलम गुजरात और आसाम का भी है। इन तीनों राज्यों में भाजपा को अच्छी खासी सीटें मिलेंगी। लेकिन महाराष्ट्र, बिहार और छत्तीस गढ़ में भाजपा का सूपड़ा साफ हो जाएगा। मध्य प्रदेश राजस्थान, हिमाचल, और उत्तरा खंड में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होगा। इसपूरे लेख का लब्बो-लबाब ये हैं कि इस बार 2014 और 2019 की स्थिति कतई रहने वाली नहीं है। दस साल की नाराज़गी केंद्र सरकार के खिलाफ होगी। मंहगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार बडे चुनावी मुद्दा होंगे। भाजपा के राष्ट्रवाद की हवा निकल चुकी है। इस बार कोई पुलवामा नहीं है। कुल मिलाकर भाजपा के लिए मंज़िल आसान नहीं होगी। इतना तय है कि भाजपा को बहुमत मिलने नहीं जा रहा है। इस बार गठबंधन की सरकार बनेगी। इन तमाम हालात के बावजूद अगर भाजपा अपने बूते पर सरकार बनाती है तो फिर मोदी को इस जमाने की सियासत का भगवान ही कहा जा सकता है।