इंद्र वशिष्ठ

बेशक आईपीएस अपने को  कितना  ही काबिल समझते/मानते हों, लेकिन अगर राज दरबार की उन पर कृपा नहीं है तो सारी काबलियत धरी की धरी रह जाती है वह सब बेकार साबित हो जाती है। काबलियत पर कृपा हावी हो जाती है।

पहले गुजरात काडर के राकेश अस्थाना को और अब तमिलनाडु काडर के संजय अरोड़ा को  दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बना दिए जाने से लगातार दूसरी बार यह बात साबित हो गई है।


सरकार को एजीएमयूटी काडर में क्या एक भी ऐसा काबिल आईपीएस अफसर नहीं मिला, जिसे दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बनाया जा सके। भाजपा द्वारा तीसरी बार ऐसा किया गया है।

नाकाबिल हैं तो नौकरी से भी निकालो-

दिल्ली पुलिस से कुछ दिन पहले ही सेवानिवृत्त हुए एक आईपीएस अफसर का कहना है कि सरकार की नजर में अगर एजीएमयूटी काडर के जो आईपीएस अफसर वरिष्ठ होते हुए और रिकॉर्ड आदि में भी सब कुछ साफ/  सही होते हुए भी कमिश्नर बनाने के काबिल नहीं हैं, तो फिर वह पुलिस सेवा में भी क्यों हैं, सरकार उन्हें  जबरन सेवा से रिटायर  क्यों नहीं कर देती?

ऐसे नाकाबिल अफसरों को स्पेशल कमिश्नर जैसे पदों पर रखना भी तो गलत ही है।

दयनीय हालत-

एजीएमयूटी काडर के आईपीएस की स्थिति तो बड़ी दयनीय हो गई है क्योंकि जब भी

बाहरी कमिश्नर आता है तो आईपीएस को फिर से उसके सामने अपनी काबिलियत साबित करनी पड़ती है। अब संजय अरोड़ा के सामने अपने को साबित/प्रूव करते रहेंगे। फिर हो सकता संजय अरोड़ा के बाद भी किसी दूसरे काडर से लाकर कमिश्नर बना दिया जाए।

आईपीएस को ठेंगा दिखाया-

 एजीएमयूटी काडर के काबिल आईपीएस अफसरों को ठेंगा दिखा कर गुजरात काडर के राकेश अस्थाना को रिटायरमेंट से 4 दिन पहले सेवा विस्तार देकर उनके ऊपर थोप दिया गया था।

अब तमिलनाडु काडर के संजय अरोड़ा (आईपीएस-1988) को कमिश्नर बनाए जाने से  एजीएमयूटी काडर के अफसर हैरान परेशान तो  हैं लेकिन बेचारे कर तो कुछ भी नहीं सकते हैंं।


 जोर का झटका-

30 जून 2021 को  एजीएमयूटी काडर के 1988 बैच के बालाजी श्रीवास्तव ने कमिश्नर का अतिरिक्त कार्यभार संभाला था। तब यह  माना जा रहा था कि बालाजी श्रीवास्तव ही अब कमिश्नर रहेंगे भले  ही कागजी आदेश कार्यवाहक कमिश्नर का रहे।

क्योंकि बालाजी श्रीवास्तव से पहले सच्चिदानंद श्रीवास्तव को भी एक साल से ज्यादा समय तक कार्यवाहक कमिश्नर ही बना के  रखा गया था, रिटायरमेंट से करीब चालीस दिन पहले ही सच्चिदानंद श्रीवास्तव को नियमित कमिश्नर नियुक्त किया गया था।

लेकिन राकेश अस्थाना को कमिश्नर बना कर बालाजी श्रीवास्तव को जोर का झटका दे दिया गया था।


आईपीएस बेचारे सत्ता से हारे  -

वैसे जब बालाजी श्रीवास्तव को कमिश्नर का अतिरिक्त प्रभार दिया गया तो कमिश्नर पद के दावेदार 1987 बैच के आईपीएस अफसर सत्येंद्र गर्ग और ताज हसन को दरकिनार कर दिया गया था। इसके बाद ताज हसन को सिविल डिफेंस, होमगार्ड और फायर सर्विस का महानिदेशक बना दिया गया।

बारी से पहले कमिश्नर बनाने की परंपरा-

सत्ता द्वारा बारी से पहले यानी लाइन तोड़ कर और दूसरे का हक मार कर अपने खास वफादार आईपीएस को कमिश्नर बनाने की परंपरा बन गई है।

किरण बेदी को दरकिनार करके उनसे जूनियर युद्धबीर डडवाल को कमिश्नर बनाया गया था। दीपक मिश्रा,धर्मेंद्र कुमार और कर्नल सिंह को दरकिनार करके उनसे जूनियर अमूल्य पटनायक को कमिश्नर बनाया गया था। ये सभी एजीएमयूटी काडर के ही थे।

 अब फिर इस काडर के ही 1987 और 1988 बैच के आईपीएस अफसरों को दरकिनार करके तमिलनाडु काडर के संजय अरोड़ा को बाहर से लाकर कमिश्नर बना दिया गया।

जब बारी से पहले या बाहर से लाकर किसी को कमिश्नर बनाया जाता है तो जाहिर सी बात है कि उस आईपीएस का नुकसान हो जाता है जो बारी के हिसाब से कमिश्नर बनने का असली हकदार होता है।

वैसे सच्चाई यह है कि सरकार किसी भी दल की हो पुलिस का इस्तेमाल सभी सत्ता के लठैत के रुप में करते हैं। इसलिए वह कमिश्नर ऐसे अफसर को बनाते हैं जो उनके इशारे पर कठपुतली की तरह नाचे।  

आईपीएस के साथ अन्याय-

अगर संजय अरोड़ा दो साल इस पद रहे ,जिसकी पूरी संभावना है, तो एजीएमयूटी काडर के अनेक  दावेदार आईपीएस अफसर कमिश्नर बने बगैर ही सेवानिवृत्त हो जाएंगे। अपनी बारी की बाट जोह रहे उन आईपीएस के साथ यह अन्याय है। क्योंकि अपने-अपने काडर में आईपीएस की  मंजिल/लक्ष्य और सपना पुलिस बल के मुखिया का पद ही होता है। सत्ता ने उनका सपना और दिल तोड़ दिया और उनका हक छीन लिया।

 बाहरी कमिश्नर की परंपरा -

ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब एजीएमयूटी काडर के बाहर से आईपीएस अधिकारी को दिल्ली पुलिस कमिश्नर के रूप में नियुक्त किया गया हो।

साल 1999 में भाजपा के शासन काल में 1966 बैच के उत्तर प्रदेश काडर के आईपीएस अजय राज शर्मा को दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बनाया गया था। काबिल और दबंग अजय राज शर्मा सबसे सफल कमिश्नर रहे हैं।


दिल्ली पुलिस में कमिश्नर व्यवस्था 1978 में शुरु हुई थी, तब उत्तर प्रदेश काडर के जे एन चतुर्वेदी को कमिश्नर नियुक्त किया गया था।

महाराष्ट्र काडर के आईपीएस एस एस जोग,

राजस्थान काडर के बजरंग लाल, सुभाष टंडन और हरियाणा काडर के पीएस भिंडर भी दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनाए गए।

 सरकार किसी भी दल की हो सब नियमों को ताक पर रख कर अपने चहेते को ही लगाते है।


सत्ता के लठैत कमिश्नर? -

पिछले कई सालों से कमिश्नर के पद पर ऐसे नाकाबिल आईपीएस अफसर आए हैं जिन्होंने  सत्ता के लठैत बन खाकी को खाक में मिला दिया। ऐसे कमिश्नरों के कारण ही पुलिस में भ्रष्टाचार व्याप्त है। ये कमिश्नर अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने में भी विफल रहे। पेशेवर रुप से नाकाबिल कमिश्नरों के कारण ही आईपीएस अफसर और मातहत पुलिसकर्मी भी निरंकुश हो जाते हैं। जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता हैं।  हालत यह है कि लूट,झपटमारी आदि अपराध की सही एफआईआर तक दर्ज नहीं की जाती है। अपराध कम दिखाने के लिए अपराध को दर्ज ना करने या हल्की धारा में दर्ज किए जाने की परंपरा जारी है। थानों में लोगों से पुलिस सीधे मुंह बात तक नहीं करती। डीसीपी या अन्य वरिष्ठ अफसरों से मिलने के लिए भी लोगों को सिफारिश तक करानी पड़ती है।


अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि संजय अरोड़ा अपनी पेशेवर काबिलियत दिखा कर कमिश्नर पद का सम्मान,गरिमा बहाल करेंगे या वह अपने पूर्ववर्ती कमिश्नरों की तरह सत्ता के लठैत बन पद की गरिमा को मटियामेट करेंगे।


हालांकि दिल्ली पुलिस के कमिश्नर पद पर पहले अनेक ऐसे आईपीएस अफसर रहे हैं जिनकी काबिलियत और दमदार नेतृत्व क्षमता की मिसाल दी जाती है।