इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस के कमिश्नर राकेश अस्थाना ने पुलिस अफसरों/ पुलिसकर्मियों के खिलाफ बिना नाम पते यानी गुमनाम शिकायतों पर कार्रवाई न करने का आदेश दिया है।पुलिस कमिश्नर द्वारा जारी सर्कुलर में कहा गया है कि जिस शिकायत पर नाम, पता न हो यानी गुमनाम हो। शिकायत पर नाम पता हो, लेकिन वह वैरीफाई न हो। शिकायतकर्ता नोटिस दिए जाने के बाद भी जांच में शामिल न हो। शिकायत में अनर्गल आरोप हो तो उस पर कार्रवाई न की जाए।कमिश्नर द्वारा 27 अक्टूबर 2021 को जारी इस सर्कुलर में केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा इस सिलसिले में जारी आदेश का हवाला दिया गया है। कमिश्नर ने अफसरों से आदेश पर सख्ती से अमल करने को कहा है।
गुमनाम पर कार्रवाई से भ्रष्टाचार रुकेगा-
सच्चाई यह है कि लोग डर के मारे अपने नाम से भ्रष्टाचार की शिकायत नहीं करते हैं। शिकायत गुमनाम है या शिकायतकर्ता का नाम फर्जी है, इस चक्कर में न पड़ कर पुलिस अफसरों को गुमनाम शिकायत में लगाए गए आरोपों/ तथ्यों की सत्यता का पता लगाना चाहिए और उसके आधार पर कार्रवाई करनी चाहिए।गुमनाम शिकायत पर कार्रवाई न करने से तो भ्रष्टाचार करने वाले बेखौफ हो जाते हैं। गुमनाम शिकायत के आधार पर कार्रवाई किए जाने से ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकता है और भ्रष्टाचारी डरेंगे।
भ्रष्टाचार का बोलबाला-
अपराध को दर्ज न करना,अपराधियों को संरक्षण देना सबसे बड़ी समस्या है। अवैध शराब का धंधा, सट्टेबाजी, अवैध पार्किंग, अवैध निर्माण, विवादित संपत्ति ,पैसे के लेन देन के विवाद के मामले आदि भी पुलिस की कमाई का सबसे बड़ा जरिया माने जाते हैं। इसी वजह से पुलिस में भ्रष्टाचार का बोलबाला है।कमिश्नर अगर वाकई पुलिस में कोई सुधार करना चाहते हैं तो उन्हें इस जड़ पर ही वार करना चाहिए।
आंकड़ों की बाजीगरी बंद हो-
अपराध को कम दिखाने के लिए मामलों को दर्ज न करना या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा को बंद करना चाहिए। अपराध के सभी मामलों को सही तरह दर्ज किए जाने से ही अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। लेकिन अपराध को दर्ज न करना एसएचओ से लेकर कमिश्नर/आईपीएस अफसर तक सभी के अनुकूल है। आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा कर वह खुद को सफल अफसर दिखाते हैं। जबकि अपराध को दर्ज न करके पुलिस एक तरह से अपराधी की मदद करने का गुनाह ही करती है। अपराध सही दर्ज होने पर ही अपराध और अपराधियों की सही तस्वीर सामने आएगी। तभी अपराध और अपराधियों से निपटने की कोई भी योजना सफल हो सकती है। अभी तो आलम यह है कि मान लो कोई लुटेरा पकड़े जाने पर सौ वारदात करना कबूल कर लेता है लेकिन उसमें से दर्ज तो दस ही पाई जाएगी । अगर सभी सौ वारदात दर्ज की जाती तो लुटेरे को उन सभी मामलों में जमानत कराने में ही बहुत समय और पैसा लगाना पड़ता। लुटेरा ज्यादा समय तक जेल में रहता। इस तरह अपराध और अपराधी पर काबू किया जा सकता है।
अफसरों पर दबाव जरूरी-
अपराध के सभी मामले दर्ज होंगे तो तभी एसएचओ,एसीपी और डीसीपी पर अपराधियों को पकड़ने का दबाव बनेगा। एसएचओ पर जब मामले दर्ज करने और अपराधियों को पकड़ने का पुलिस का मूल काम करने का दबाव होगा, तो ऐसे में वह ही एसएचओ लगेगा जो वाकई मूल पुलिसिंग के काबिल होगा।
मूल काम ही नहीं करती पुलिस-
अभी तो आलम यह है कि लूट,स्नैचिंग, मोबाइल /पर्स चोरी आदि के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं किए जाते। पुलिस चोरी गए वाहन को तलाश करने की कोई कोशिश नहीं करती। आलम तो यह है कि वाहन चोरी की सूचना पर पुलिस मौके पर भी नहीं जाती।आईपीएस भी यह कह कर पल्ला झाड़ लेते है कि वाहन मालिक को बीमा की रकम तो मिल ही जाती है।आईपीएस अफसरों के ऐसे कुतर्क से उनकी काबिलियत पर सवालिया निशान लग जाता। पुलिस का काम अपराधियों को पकड़ना होता है। लेकिन पुलिस अपना मूल काम ही नहीं करती। इसीलिए लुटेरे और वाहन चोर बेखौफ हो कर अपराध कर रहे है।
पुलिस क्या सिर्फ वसूली के लिए है?-
पुलिस अगर अपराध ही सही दर्ज न करे या अपराधियों को पकड़ने की कोशिश ही न करें तो क्या पुलिस सिर्फ़ अवैध वसूली,भ्रष्टाचार और लोगों से बदसलूकी करने के लिए ही है। ऐसे में तो अब एसएचओ की नौकरी आराम से वसूली करने और अपने आकाओं की फटीक करने की ही रह गई लगती है।
राकेश अस्थाना के पास मौका है-
पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने कहा कि बेसिक पुलिसिंग उनकी प्राथमिकता है। राकेश अस्थाना की विवादों और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण एक अलग छवि बनी हुई थी। लेकिन अब राकेश अस्थाना के पास अपनी पेशेवर काबिलियत की छाप छोड़ने का मौका है। उल्लेखनीय है कि डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम द्वारा डेरे में लड़कियों से बलात्कार का मामला गुमनाम शिकायत के कारण ही उजागर हुआ था। जिसके परिणाम स्वरूप राम रहीम जेल में सजा भुगत रहा है।