इंद्र वशिष्ठ
लोकनायक जयप्रकाश नारायण में कोरोना पॉजिटिव /गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज बिना इलाज के तड़प रहे हैं। मां-बाप की जान बचाने के लिए उनके छोटे-छोटे बच्चों द्वारा रो रो कर सरकार से गुहार लगाई जा रही है। इलाज न करने या इलाज में आपराधिक लापरवाही बरतने का सिलसिला लगातार जारी है।
मुख्य सचिव ने दिए निर्देश-
दूसरी ओर दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव विजय देव ने प्रिंसिपल सेक्रेटरी हेल्थ राजेश प्रसाद को निर्देश दिए हैं कि यह सुनिश्चित किया जाए कि कोरोना और गंभीर बीमारी से पीड़ित रोगी के इलाज में लापरवाही न बरती जाए। इलाज पर पूरी गंभीरता से ध्यान दिया जाए।
इसके लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएं।
डाक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ को पूरी तरह से सक्षम बनाने,उनकी सुरक्षा और सुविधा के लिए भी सभी आवश्यक कदम उठाए जाएं।
अब देखना है कि अस्पताल प्रशासन, डाक्टर, नर्स आदि इन निर्देशों का पालन करते हैं या नहीं।
बिलखती बेटियां मां-बाप की जान बचाने के लिए लगा रही गुहार- शर्म करो सरकार
बेटियों द्वारा मां-बाप की जान बचाने के लिए अपने चुने हुए मुख्यमंत्री के सामने इलाज के बिलखना, रोना, गिड़गिड़ाना, गुहार लगाना, दर्दनाक और शर्मनाक है। यह मामले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के कोरोना से निपटने के लिए अस्पतालों में किए गए इंतजाम के दावों की पोल ही नहीं खोल रहे बल्कि धज्जियां उड़ाते हैं।
मुख्यमंत्री भी जिम्मेदार -
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बड़े जोर-शोर से मीडिया में दावे करते हैं कि अस्पताल में भर्ती कोरोना के हरेक मरीज़ के मामले की वह खुद निगरानी रख रहे हैं। मुख्यमंत्री क्या यह बता सकते हैं कि अगर वह निगरानी कर रहे हैं तो मरीजों का इलाज/ डायलिसिस आदि क्यों नहीं किया जा रहा है ?
ऐसे में तो मरीजों का इलाज न करने या लापरवाही के लिए अरविंद केजरीवाल भी सीधे तौर पर जिम्मेदार है।
इलाज न करने या इलाज में आपराधिक लापरवाही करने वाले डाक्टरों, अस्पताल प्रशासन के साथ ही मुख्यमंत्री के खिलाफ भी मरीज और उनके परिजन आपराधिक मामले दर्ज करा सकते हैं । कोर्ट में भी मामला ले जा सकते हैं।
दावों का निकला दम-
मुख्यमंत्री दावा कर रहे हैं कि अगर कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ेगी तो उनके इलाज के लिए अस्पतालों में व्यापक व्यवस्था की गई हैं।
लेकिन जो सरकार, अस्पताल और डाक्टर अभी बहुत ही सीमित/कम संख्या में भर्ती मरीजों का ही इलाज करने में है विफल हो गई है। ऐसे में वह मरीजों की बेतहाशा वृद्धि पर क्या ख़ाक इलाज करेगी।
मुख्यमंत्री अगर वाकई मरीजों की निगरानी कर रहे होते तो बच्चों को गुहार नहीं लगानी पड़ती। निगरानी के दौरान मुख्यमंत्री को तो मालूम ही रहा होगा कि किस मरीज को विशेष इलाज, देखभाल या डायलिसिस की जरूरत है। फिर उन्होने डायलिसिस कराने का इंतजाम क्यों नहीं किया ?
मुख्यमंत्री को तो मालूम है-
खुद डायबिटीज के मरीज अरविंद केजरीवाल को तो मालूम ही होगा कि इलाज़/ दवा न मिलने या भूखा रखने से शुगर का स्तर गड़बड़ा जाने से जान भी जा सकती है।
मुख्यमंत्री का मुख्य और एकमात्र लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ मरीजों के इलाज की व्यवस्था करना होना चाहिए जिसमें वह अभी तक बुरी तरह फेल हो गए हैं।
मां की जान बचाने के लिए बेटी गिड़गिड़ा रही-
केशव पुरम की पूजा गुप्ता को एक मई को लोकनायक अस्पताल में भर्ती किया गया। पूजा की दोनों किडनी पूरी तरह ख़राब है। वह घर से अपनी जो दवाई और कपड़े ले गई अस्पताल में वह भी चोरी हो गए। इलाज करना तो बहुत दूर खाना और पानी भी समय पर नहीं मिल रहा है। तीन मई को पूजा की बेटी ने अपनी मां की जान बचाने के लिए वीडियो वायरल कर गुहार लगाई।
फौजी की मौत डाक्टरों पर आरोप-
एक अन्य वीडियो में डायबिटीज़ के मरीज रिटायर्ड फौजी की मौत के लिए उसके बेटे ने डाक्टरों पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है।
पिता की जान बचाने के लिए बेटी ने लगाई गुहार-
इसके पहले जहांगीर पुरी के अरविंद गुप्ता की जान बचाने के लिए उसकी बेटी और पत्नी को वीडियो वायरल कर गुहार लगानी पड़ी थी। कोरोना पीड़ित अरविंद गुप्ता पहले से डायबिटीज और हाइपरटेंशन के मरीज हैं। भर्ती किए जाने के बाद डाक्टरों ने उनको देखा तक नहीं। शुगर के मरीज अरविंद को भूखा रख कर उसकी जान से खिलवाड़ किया गया।
बिलखती रानी ने लगाई गुहार अम्मी मुझे बचा लो-
इसके अलावा बल्लीमारान की रानी ख़ान और पुरानी दिल्ली के फैजान आदि के वीडियो वायरल हुए। कोरोना पीड़ित इन मरीजों की डायलिसिस न करके जानबूझकर इन सबकी जान को ख़तरे में डाल दिया गया।
मरीजों और परिवार में भरोसा कायम करें सरकार-
इन मामलों से तो यह आशंका पैदा हो रही है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मरीजों की गंभीर बीमारी का इलाज न होने से मरीजों की मौत हो जाए और सरकार उसे भी कोरोना से हुई मौत मान ले।
सरकार को अस्पताल में भर्ती उपचाराधीन मरीज और मरने वाले हर मरीज की बीमारी और इलाज का पूरा ब्यौरा मरीज़ के परिवार को देना चाहिए/ सार्वजनिक करना चाहिए जिससे साफ़ पता चल जाएगा कि हार्ट, शुगर किडनी, कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज को किस दिन क्या दवा दी गई और डायलिसिस आदि कब की गई।
सरकार के दावों की पोल-
अभी तो हालात यह हैं कि जिस कोरोना पीड़ित को सरकार खुद अस्पताल में भर्ती करती है उसका इलाज कराने और परिवार के अन्य सदस्यों के टेस्ट कराने के लिए भी लोगों को गिड़गिड़ाना पड़ रहा है।
दूसरी ओर ऐसे कोरोना पॉजिटिव मरीजों के मामले भी सामने आ रहे हैं कि जिसमें वह खुद अस्पताल में भर्ती होने जाते हैं तो उनको भर्ती करने से इंकार कर दिया जाता है।
हाल ही में मौजपुर के ऐसे ही एक मरीज़ को भर्ती होने के लिए पूरा दिन अस्पताल के धक्के खाने का मामला भी उजागर हुआ।
बच्चे की जान बचाने के लिए मौसी की गुहार-
28 अप्रैल को एक महिला ने वीडियो वायरल किया जिसमें बताया कि कोरोना पीड़ित चौदह साल के उसके भांजे को लोकनायक, राममनोहर लोहिया अस्पताल के अलावा गंगा राम और मैक्स जैसे प्राइवेट अस्पताल ने भी भर्ती करने से इंकार कर दिया।
यह हकीकत मुख्यमंत्री के कोरोना से निपटने के लिए किए गए इंतजाम के दावों की पोल खोलने के लिए काफी है।
इन सब मामलों से पता चलता है कि उप-राज्यपाल/ मुख्यमंत्री/ सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। इसलिए यह सिलसिला जारी है और कोई सुधार नहीं हो रहा है।
मुख्यमंत्री बताएं क्या कार्रवाई की-
मुख्यमंत्री बताएं कि इलाज़ न करने या लापरवाही बरतने वाले कितने डाक्टर, नर्स के खिलाफ उन्होंने कार्रवाई की।
मुख्यमंत्री को यह सब जानकारी जनता को देनी चाहिए।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कोरोना के बारे में अभी जो जानकारी या आंकड़े आदि देते हैं वह काम तो सरकार या अस्पताल का कोई अदना सा प्रवक्ता भी कर सकता है।
सेवा भाव सबसे जरुरी-
मुख्यमंत्री का काम होता है लोगों की परेशानी को सुन कर उनके इलाज के लिए उचित व्यवस्था करना। डाक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की सुरक्षा के लिए पीपीई समेत सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराना।
सुरक्षा उपाय /उपकरण/ सुविधा/ व्यवस्था के बावजूद भी अगर कोई डाक्टर या नर्स संक्रमण के भय या किसी अन्य कारण से कोरोना मरीजों का इलाज करने में अनिच्छा दिखाता है तो उसे जबरन उस काम में न लगाया जाए। क्योंकि बिना सेवा भाव वाले लोगों के कारण ही मरीजों की जान को खतरा पैदा हो सकता है।