अनवर चौहान
भ्रष्टाचार पर नरेंद्र मोदी सरकार सख्त रुख अपनाए हुए हैं। इसी के मद्देनजर सरकार ने केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के 22 अधिकारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया है। जिन 22 अधिकारियों को सेवानिवृत्त किया गया है वह अधीक्षक और एओ रैंक के हैं। इन्हें जनहित के मौलिक नियम 56 (जे) के तहत सेवानिवृत्त किया गया है। सभी पर भ्रष्टाचार और गंभीर अनियमितताओं के आरोप लगे थे। जिसके कारण यह फैसला लिया गया।
इन अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का फैसला ऐसे समय पर लिया गया है जब 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से अपने भाषण में कहा था कि कर प्रशासन में मौजूद कुछ कर्मचारियों ने ईमानदार आकलन करने वालों को निशाना बनाकर या मामूली प्रक्रियात्मक उल्लंघनों के लिए अत्यधिक कार्रवाई करके अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करके करदाताओं को परेशान किया है।
उन्होंने कहा था कि सरकार ने हाल ही में कुछ कर अधिकारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया था और इस तरह के व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इससे पहले जून में सरकार ने जून में 27 वरिष्ठ भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) अधिकारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया था। जिसमें केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के 12 अधिकारी भी शामिल थे।
वैसे यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने कड़ा कदम उठाते हुए सीबीआईसी के वरिष्ठ अधिकारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया है। इससे पहले जून महीने में 15 अधिकारियों को भी सेवानिवृत्त किया गया था। यह अधिकारी सीबीआईसी के प्रधान आयुक्त, आयुक्त, और उपायुक्त रैंक के थे। जिसमें ज्यादातरों पर भ्रष्टाचार, घूसखोरी के आरोप लगे थे। वहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद कर विभाग के 12 वरिष्ठ अधिकारियों को सेवानिवृत्त किया गया था।
क्या है मूल नियम 56
फंडामेंटल राइट (मूल नियम) का प्रयोग ऐसे अधिकारियों के लिए किया जाता है जिनकी उम्र 50 से 55 के बीच होती है और जिन्होंने अपने कार्यकाल के 30 साल पूरे कर लिए होते हैं। सरकार के पास ऐसे अधिकारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्ति देने का अधिकार होता है। यह नियम बहुत पहले से प्रभावी हैं।