इंद्र वशिष्ठ
इंस्पेक्टर को पीटने के आरोपी डीसीपी मधुर वर्मा के खिलाफ आज़ तक कोई कार्रवाई नहीं हुई हैं।
इस मामले में डीसीपी के खिलाफ कार्रवाई की संभावना भी नहीं लग रही हैं इसलिए नहीं कि इंस्पेक्टर कर्मवीर मलिक के आरोप झूठे हैं
बल्कि इस लिए कि आईपीएस आईपीएस को बचाने के लिए एक जुट हो जाते हैं।आईपीएस आईपीएस के खिलाफ आसानी से कार्रवाई करते ही नहीं हैं। इसलिए बेचारे मातहत पुलिस कर्मियों को इंसाफ नहीं मिलता। लेकिन इस तरह दोषी आईपीएस को बचाने से ही ऐसे आईपीएस निरंकुश हो जाते हैं। इसके लिए पूरी तरह पुलिस कमिश्नर जिम्मेदार हैं।
इंस्पेक्टर द्वारा डीसीपी पर पीटने का संगीन आरोप लगाने का मामला सामने आने पर सर्तकता विभाग को जांच सौंप कर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की गई हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दस मार्च को हुई इस वारदात के इतने दिनों बाद अभी तक यह नहीं बताया गया कि जांच में कौन दोषी पाया गया हैं। दोषी के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। डीसीपी ने इंस्पेक्टर को पीटा था या नहीं?
पुलिस कमिश्नर में अगर यह खुलासा करने का दम है तो कृपया बताएं कि इस मामले में डीसीपी के आरोप झूठे हैं या इंस्पेक्टर के।
दूसरी ओर पता चला है कि अभी तक शिकायतकर्ता इंस्पेक्टर के बयान तक नहीं लिए गए हैं। डीसीपी ने भी सिर्फ मीडिया में इंस्पेक्टर पर बदतमीजी करने का आरोप लगाया है। सतर्कता विभाग को डीसीपी ने अगर लिखित में इंस्पेक्टर के खिलाफ दिया होता तो भी इंस्पेक्टर को बुलाया जाता हैं। लेकिन इंस्पेक्टर को शिकायतकर्ता या आरोपी यानी किसी भी रूप में आज़ तक नहीं बुलाया गया। इससे जांच करने वाले आईपीएस अफसरों की भूमिका और जांच की रफ्तार का पता चलता है।
वैसे इस मामले में शुरू से ही इंस्पेक्टर के आरोपों में दम नजर आया है।
इसलिए डीसीपी को बचाने के लिए एक रास्ता यह निकाला जा सकता है कि इंस्पेक्टर के सामने डीसीपी माफी मांग लें। इसके बाद इंस्पेक्टर अपनी शिकायत पर कार्रवाई के लिए कोई कोशिश नहीं करेगा। यानी अपनी शिकायत की पैरवी ही नहीं करेगा।
यह भी हो सकता है कि इंस्पेक्टर से यह बयान दिलवाया जाए कि हमने आपस में मामला सुलझा लिया है इसलिए वह कोई कार्रवाई नहीं चाहता। इसके बाद मामला बंद हो जाएगा। वैसे इस तरीके से मामला बंद किया गया तो पुलिस कमिश्नर की भूमिका पर ही सवालिया निशान लग जाएगा।
इंस्पेक्टर तो मान लो अफसरों के दबाव या प्रभाव में आकर ऐसा बयान दे दें। लेकिन इससे एक बात बिल्कुल सही साबित हो जाएगी कि इंस्पेक्टर के आरोप सही हैं और डीसीपी ने इंस्पेक्टर पर मीडिया में झूठे आरोप लगाए ।
एक आईपीएस द्वारा इंस्पेक्टर को पीटना और उस पर ही झूठे आरोप लगाना गंभीर मामला है। इसके बावजूद डीसीपी के खिलाफ कार्रवाई न किए जाने से पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक की ही भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
पुलिस कमिश्नर कर्त्तव्य पालन में ईमानदार/ निष्पक्ष/ काबिल है तो क्या वह यह बता सकते हैं कि इस पूरे मामले में डीसीपी दोषी पाया गया या इंस्पेक्टर। वर्ना पुलिस कमिश्नर की चुप्पी से तो यही लगता है कि डीसीपी ही दोषी पाया गया है क्योंकि इंस्पेक्टर दोषी होता तो उसके खिलाफ कार्रवाई कर बता भी दिया जाता।
कोई काबिल पुलिस कमिश्नर होता तो एक घंटे में यह सच्चाई सामने आ जाती हैं कि इंस्पेक्टर के आरोपों में सच्चाई है या नहीं।
अब तो हालत यह है 15 दिन से ज्यादा हो गए।
क्या अफसर जांच ही पूरी नहीं कर पाए ? इससे यही लगता है कि मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। असल में ईमानदारी से निष्पक्ष जांच की जाती तो इंस्पेक्टर के आरोप सही पाए जाने की पूरी संभावना है। वैसे एक बात तय है कि इंस्पेक्टर के आरोप झूठे होते तो जांच भी तुरंत पूरी की जाती और इंस्पेक्टर को सज़ा भी दी जा चुकी होती।
डीसीपी के आरोप झूठे हैं या इंस्पेक्टर के यह पुलिस कमिश्नर तो बता नहीं रहे लेकिन डीसीपी और इंस्पेक्टर के बयानों से कोई भी सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति अंदाजा लगा सकता है कि कौन झूठा है। यह बात दूसरी है कि जो बात आइने की तरह साफ़ है वह पुलिस कमिश्नर को नज़र नहीं आ रही हैं। सच्चाई यह है पुलिस कमिश्नर और वरिष्ठ आईपीएस अफसरों को मालूम है कि इंस्पेक्टर के आरोपों में दम है। इसलिए धृतराष्ट्र की तरह चुप हैं
डीसीपी मधुर वर्मा का हास्यास्पद बयान--
क्या आप यकीन करेंगे कि एक इंस्पेक्टर पुलिस कमिश्नर के चहेते डीसीपी के साथ बदतमीजी करें और उस इंस्पेक्टर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो। डीसीपी मधुर वर्मा ने मीडिया में यह बयान दिया है कि इंस्पेक्टर कर्मवीर मलिक ने पांडिचेरी नंबर की गाड़ी सवार के साथ बदतमीजी और दो सिपाहियों के साथ मारपीट/ बदतमीजी की। वह इंस्पेक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए थाने गए। वहां पर इंस्पेक्टर ने उनके साथ भी बदतमीजी की। इस बारे में रोजनामचे में भी दर्ज किया गया और इंस्पेक्टर के वरिष्ठ अफसरों को भी बताया गया। मधुर वर्मा ने कहा है कि मैं इंस्पेक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज करता इसके पहले ही ट्रैफिक के डीसीपी का फोन आया और बताया कि इंस्पेक्टर ने अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी है। मधुर वर्मा ने यह भी कहा कि इंस्पेक्टर ने लिखित में माफी मांगी है। लेकिन उन्होंने उसके वरिष्ठ अफसरों को शिकायत की तो इंस्पेक्टर उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाने लगा।
जरा सोचिए जो कमिश्नर एक पूर्व विधायक के परिवार से बदतमीजी करने पर रानी बाग के एसएचओ और राधे मां को अपनी कुर्सी पर बिठाने के मामले में एस एच ओ को तुरंत हटा सकता है। क्या ऐसा हो सकता हैं कि डीसीपी मधुर वर्मा मीडिया में भी ढिंढोरा पीट कर कहें कि इंस्पेक्टर ने उसके साथ बदतमीजी की है इसके बावजूद उस इंस्पेक्टर के खिलाफ कमिश्नर कार्रवाई न करें यह बात किसी को भी हज़म नहीं हो सकती। भले कमिश्नर अपने कसूरवार डीसीपी को बचाने में जी जान लगा दें लेकिन डीसीपी की शिकायत पर इंस्पेक्टर के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने की बहादुरी दिखाने से वह नहीं चूकते।
डीसीपी मधुर वर्मा के मीडिया को दिए बयानों के आधार पर ही जांच हो जाए तो दूध का दूध पानी का पानी सामने आ सकता है। अगर डीसीपी के आरोप सही होते तो इंस्पेक्टर के खिलाफ तो कार्रवाई कब की हो चुकी होती।
ऐसे में अगर डीसीपी के आरोप झूठे हैं तो डीसीपी के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए क्योंकि यह मामला मातहत को पीटने के साथ ही आईपीएस द्वारा मीडिया में सरासर झूठ बोलने का भी है।
अगर ऐसे मामले में भी कार्रवाई नहीं की जाती तो ऐसे आईपीएस को निरंकुश बनाने के लिए पुलिस कमिश्नर जिम्मेदार माने जाएंगे।
डीसीपी ने मीडिया में कहा कि इंस्पेक्टर ने लिखित में माफी मांगी है। अगर लिखित माफीनामा होता तो डीसीपी मीडिया में दिखा कर इंस्पेक्टर को झूठा साबित करने में देर नहीं लगाते।
पहला सवाल पांडिचेरी नंबर की वह कार किसकी है। उसमें कौन व्यक्ति सवार था जिसके साथ इंस्पेक्टर ने बदतमीजी की। गाड़ी सवार द्वारा दी गई शिकायत क्या है। दो सिपाहियों के साथ भी इंस्पेक्टर द्वारा मारपीट/बदतमीजी का आरोप लगाया गया है। डीसीपी द्वारा अपने आपरेटर सिपाही रोहित से निजी कार चलवाना क्या ग़लत नहीं है। इस मामले में क्या कार्रवाई की गई? सिपाहियों द्वारा क्या शिकायत दी गई थी ।
सबसे अहम बात डीसीपी ने कहा कि सिपाहियों से बदतमीजी की बात सुनकर वह इंस्पेक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए थाने गए थे और तभी इंस्पेक्टर ने उनके साथ बदतमीजी की। सोचने वाली बात है कि जो डीसीपी सिपाहियों से बदतमीजी पर इंस्पेक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने खुद थाने पहुंच गया। वह अपने साथ बदतमीजी करने वाले इंस्पेक्टर को भला बख्शता ? अगर इंस्पेक्टर ने डीसीपी के साथ ज़रा सी भी बदतमीजी की होती तो एक सेकंड में उसे निलंबित कर दिया जाता।
डीसीपी के आरोप में अगर दम होता तो अब तक इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी होती।
डीसीपी भला बदतमीजी करने वाले इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई कराएं बिना चैन से बैठता।
इंस्पेक्टर ने आरोप लगाया कि थाने पहुंचते ही डीसीपी ने उसका मोबाइल फोन छीन लिया। मधुर वर्मा ने कहा कि ट्रैफिक के डीसीपी ने उन्हें फोन कर कहा कि इंस्पेक्टर ने अपनी व्यवहार के लिए माफी मांग ली हैं।
सवाल यह उठता हैं कि इंस्पेक्टर का फोन तो डीसीपी ने छीन लिया था तो ऐसे में इंस्पेक्टर कर्मवीर ने पुलिस की हिरासत में होने के बावजूद अपने डीसीपी ट्रैफिक से किसके फोन से संपर्क किया होगा। डीसीपी ट्रैफिक के मोबाइल फोन के कॉल रिकॉर्ड से यह बात आसानी से पता लगाई जा सकती हैं कि इंस्पेक्टर ने उसे फोन किया भी था या नहीं।
मोबाइल बोलेंगे राज़ खोलेंगे---
वैसे इस पूरे मामले में शामिल डीसीपी मधुर वर्मा, डीसीपी ट्रैफिक, इंस्पेक्टर कर्मवीर, दोनों सिपाहियों,एस एच ओ तुगलक रोड और पांडिचेरी नंबर की कार सवार उस व्यक्ति के मोबाइल फोन के कॉल रिकॉर्ड की छानबीन से भी इन सब की भूमिका साफ़ पता चल सकती हैं। फोन रिकॉर्ड से ही पता चलेगा कि किसने कब और किसे फोन किया था।
रोजनामचे में क्या दर्ज किया गया है।
डीसीपी मधुर वर्मा तमाम कोशिशों के बाद भी कैमरे पर नहीं आए लेकिन अपनी सफाई में आज़ तक न्यूज़ चैनल में जो कहा है वह यह
डीसीपी मधुर वर्मा ने कहा कि इंस्पेक्टर द्वारा लगाए गए आरोप झूठे हैं। इंस्पेक्टर ने पांडिचेरी नंबर की गाड़ी सवार से बदतमीजी की और अपने जूनियर स्टाफ के साथ मारपीट की। इंस्पेक्टर ने पेश होकर डीसीपी और स्टाफ से माफी भी मांग ली। लेकिन जब उसे लगा कि कि उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई होगा क्योंकि इसकी शिकायत ट्रैफिक पुलिस के अफसरों को की गई है तो इंस्पेक्टर ने झूठी कहानी बना कर आरोप लगाने शुरू कर दिए।
दिलचस्प बात यह है कि जिला पुलिस उपायुक्त के अलावा पुलिस प्रवक्ता जैसे पद पर मौजूद मधुर वर्मा इस मामले में न्यूज़ चैनल के कैमरे के सामने नहीं आया। सच्चाई यह है कि इंस्पेक्टर के आरोप झूठे होते और इंस्पेक्टर ने लिखित में माफी मांगी होती तो यह डीसीपी महाशय मीडिया के सामने आकर माफीनामा दिखा कर खुल कर बोलते और इंस्पेक्टर को झूठा साबित कर उसके खिलाफ कार्रवाई करवाते।
इन सब सवालों और पुलिस कमिश्नर के रवैए से तो यह साफ़ पता लग जाता है कि इंस्पेक्टर के आरोप झूठे नहीं है।
पुलिस कमिश्नर जब अपने मातहत इंस्पेक्टर के साथ इंसाफ नहीं कर सकते तो उनकी निष्पक्षता पारदर्शिता और काबिलियत का अंदाजा लगाया जा सकता हैं। ऐसे पुलिस कमिश्नर के कारण ही मातहत अपने अफसरों के अत्याचारों के खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। इसी वजह से आईपीएस अफसर दिनों दिन निरंकुश हो रहें हैं।