इंद्र वशिष्ठ
पुलिस अफसरों के साथ उठने बैठने वाले कई लोग अफसरों के रौब/रुतबे आदि से इतने ज्यादा प्रभावित हो जाते हैं कि खुद को भी अफसर समझने का भ्रम पाल लेते हैं। ऐसे लोगों में बिजनेसमैन और पत्रकार भी शामिल हैं। अपने हाव-भाव, चाल-ढाल में वह अफसरों वाली झलक दिखाने की कोशिश करते हैं।
कई लोग तो ट्रैफिक पुलिस के चालान से बचने /रौब दिखाने के लिए कार में आगे डैशबोर्ड पर पुलिस का फाइल कवर /डायरी/टोपी रख लेते हैं। पुलिस की वर्दी तक टांग लेते हैं। कार के शीशे पर पुलिस का लोगो /चिन्ह चिपका लेते हैं। लेकिन एक शख्स ने तो कमाल कर दिया उसने खुद को दिल्ली पुलिस वाला ही घोषित कर दिया। वरिष्ठ अफसरों के दोस्त इस शख्स को शायद यह नहीं मालूम कि ऐसा करना गैर कानूनी/अपराध है।
चौकीदार संजीव वर्मा नामक व्यक्ति ने फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी तो मेरी नज़र पुलिस के झंडे के साथ उसकी फोटो और उसके नीचे लिखे शब्द "सीपी आफिस" यानी पुलिस कमिश्नर दफ्तर और प्रोफाइल में लिखे "दिल्ली पुलिस में कार्यरत " (work`s at Delhi Police) पर अटक गई। फोटो में दाढ़ी वाला यह शख्स पुलिस वाला नहीं लगा। दिल्ली पुलिस के नीचे ही लिखा था कि टेलरिंग हाऊस का मालिक।
एक ओर दिल्ली पुलिस और दूसरी ओर टेलरिंग हाऊस मालिक लिखा होने से शक हुआ इस व्यक्ति की असलियत जानने की कोशिश की तो पाया कि दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर से लेकर अनेक आला अफसर इसके फेसबुक दोस्त हैं।
संजीव ने फेसबुक पर सात मार्च को ही पुलिस मुख्यालय में दिल्ली पुलिस के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त प्रेम नाथ के साथ अपनी एक फोटो भी पोस्ट की हुई हैं। जिसमें उसने यह भी लिखा है कि आज़ प्रेम नाथ के साथ लंच भी किया। अतिरिक्त पुलिस आयुक्त प्रेम नाथ के दफ्तर से मालूम किया तो असलियत पता चली कि संजीव वर्मा चांदनी चौक में "आर्य टेलरिंग हाऊस" का मालिक है। संजीव कुछ दिन पहले प्रेमनाथ से मिलने आया था। संजीव की दुकान पर पुलिस अफसर भी कपड़े /वर्दी सिलवाते हैं। इस वजह से वह अफसरों को जानता है।
पुलिस अफसर यह बात सपने भी नहीं सोच सकते कि उनके साथ फोटो खिंचवाने वाले किस तरह खुद को ही पुलिस वाला तक बताने की हिम्मत कर सकते हैं। पुलिस के झंडे के साथ वाली फोटो एक मार्च को पोस्ट की गई हैं।
चिराग तले अंधेरा--
पुलिस द्वारा फर्जी पुलिस वाले पकड़े जाने के मामले अक्सर सामने आते रहे हैं। लेकिन इस मामले से तो चिराग़ तले अंधेरा वाली कहावत पुलिस अफसरों पर लागू होती हैं। फेसबुक पर इंस्पेक्टर से लेकर वरिष्ठ अफसरों तक के जु़ड़े होने के बावजूद संजीव द्वारा खुद को पुलिस वाला बताना, होली की शुभकामनाओं वाली पोस्ट में दिल्ली पुलिस का चिन्ह इस्तेमाल करना पुलिस अफसरों की काबिलियत/ भूमिका पर सवालिया निशान लगाता है। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं वाली पोस्ट में तो संजीव के पांव के नीचे आईपीएस की टोपी की भी फोटो हैं। इन सब पोस्ट पर उसके कई पुलिस दोस्तों ने भी लाइक और कमेंट किया है। जिससे पता चलता है कि उन्होंने पोस्ट देखी है। इसके बावजूद अफसरों ने आंखें मूंद ली।
फेसबुक पर खुद को खुलेआम दिल्ली पुलिस का बताने वाला दर्जी आला पुलिस अफसरों से मिलता रहता है।
फेसबुक पर उसके साथ जुड़े पुलिस अफसर ही अगर सजग और जिम्मेदार होते तो उसका भांडा पहले ही फूट जाता।
दिलचस्प बात यह है कि इस नक़ली पुलिस वाले ने भाजपा के अभियान के तहत खुद को "चौकीदार "भी घोषित किया है।
यह तो एक मामला है लेकिन न जाने और कितने लोग होंगे जो पुलिस अफसरों से जुड़े होने पर खुद को भी इस तरह पुलिस वाला बताते/ दिखाते होंगे।
पुलिस कमिश्नर/आईपीएस फोटो खिंचवाने में चौकन्ना रहे---
पुलिस के कार्यक्रमों,क्रिकेट मैच आदि में अनजान/ अजनबी व्यक्ति भी पहुंच जाते हैं। कुछ दरबारी पत्रकार भी ऐसे लोगों को साथ लेकर आते हैं वहां पर पुलिस कमिश्नर और अन्य आईपीएस अफसर के साथ ऐसे पत्रकार अजनबी/संदिग्ध शख्स की फोटो अफसरों के साथ खिंचवाने के लिए अपना कैमरे वाला तक लेकर आते हैं।
पुलिस कमिश्नर और ईमानदार अफसरों को ज्यादा चौकन्ना रहना चाहिए ताकि कोई अनजान/ संदिग्ध उनके साथ फोटो खिंचवाने में सफल न हो पाए। अफसरों के साथ खींची गई फोटो का इस्तेमाल ऐसे लोग इलाके में लोगों और पुलिस पर रौब जमाने के लिए करते हैं।
उत्तर पूर्वी जिला पुलिस उपायुक्त अतुल ठाकुर को तो आपराधिक मामलों में शामिल विकास जैन चांदी का ताज पहना कर फोटो खिंचवाने में सफल हो गया था इस फोटो को दिखा कर वह इलाके में डीसीपी को अपना दोस्त बता कर लोगों पर रौब जमाता था।जिसकी वजह से अफसर की किरकरी हुईं।
दर्जी संजीव वर्मा ने भी अफसर के साथ फोटो खिंचवाई और यह ढिंढोरा भी पीट दिया कि अफसर के साथ उसने खाना भी खाया।
संयुक्त पुलिस आयुक्त स्तर के एक अफसर ने बताया कि कुछ दिनों पहले एक दरबारी पत्रकार ने बहुत कोशिश की थी कि वह पूर्वी दिल्ली में एक अनजान व्यापारी के घर आयोजित कार्यक्रम में आ जाएं लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया।
बहुत साल पहले एक एसएचओ ने कहा था कि लोग तो अफसर से हाथ मिलाने के भी पैसे ले लेते हैं यानी किसी बहाने अफसर से हाथ मिलाया और बाहर जाकर यह जता दिया कि एसएचओ से बात हो गई और वह उसका काम करा देगा।
पुलिस अफसरों के साथ उठने बैठने वालों के कारनामे--
अफसर की नकल करते पत्रकार --
कुछ क्राइम रिपोर्टर भी ऐसे हैं जो अपने हाव-भाव, चाल- ढाल में पुलिस अफसरी दिखाने की कोशिश में रहते हैं। हाथ में पुलिस अफसरों वाली डायरी लेकर चलना, थाने, पुलिस मुख्यालय में भी ऐसे अकड़ के चलना ताकि वहां तैनात पुलिस कर्मी अफसर समझ सैल्यूट कर दें। पुलिस कर्मी ने अगर गलतफहमी में सैल्यूट कर दिया तो इनकी आत्मा तृप्त हो जाती हैं।
पुलिस कमिश्नर से मिलने आए आम शिकायतकर्ता को कमिश्नर के दफ्तर के सामने लिफ्ट वाली गैलरी में बिठाया जाता हैं। कमिश्नर से मिलने के इंतजार में कई बार शिकायतकर्ता इस गैलरी से बाहर आकर भी खड़े हो जाते तो वहां तैनात पुलिस कर्मी उनको पीछे कर देते हैं ।
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार के समय तो अक्सर देखा जाता था कि एक क्राइम रिपोर्टर भी हवलदार की तरह उन शिकायतकर्ता को डांट कर पीछे हटाता रहता था। इस बात को लेकर वह अन्य क्राइम रिपोर्टरों में मजाक का पात्र भी बन जाता था।
शिकायतकर्ता से बात कर उसकी समस्या सुन कर खबर देने की बजाय इस तरह हवलदार जैसा व्यवहार करने वाले भी क्राइम रिपोर्टर कहलाते हैं। यही नहीं प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी यदि कोई नया रिपोर्टर अफसरों को असहज करने वाला सवाल पूछे तो ऐसे क्राइम रिपोर्टर ही डीसीपी के जवाब देने से पहले खुद ही उस रिपोर्टर को चुप कराने की कोशिश कर वफादारी दिखाते हैं। हालांकि ऐसा करने पर उनको मुंह तोड जवाब मिलता हैं लेकिन ये बेशर्मी से ऐसी हरकतें करते रहते हैं।
कई अफसरों को भी चापलूस, पैर छूने वाले दरबारी क्राइम रिपोर्टर ही पसंद है।