इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में अब तो पुलिस को गुंडे ही नहीं आईपीएस भी पीटने लगे हैं। गिरेबान पर हाथ डालने वाले नेता को सबक सिखाने के समय तो आईपीएस को सांप सूंघ जाता हैं। आईपीएस की अकड़/ ताकत/ अहंकार/ कर्तव्य पालन सब गायब हो जाता है। दूसरी ओर मातहत इंस्पेक्टर को पीट कर आईपीएस पद को कलंकित कर बहादुरी दिखा रहे हैं।
दिल्ली पुलिस के कमिश्नर के रूप में अमूल्य पटनायक को न केवल सुस्त/ कमजोर/नाकाम बल्कि पुलिस का मनोबल गिराने वाले कमिश्नर के रूप में भी याद किया जाएगा। पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और अराजकता के लिए पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसर जिम्मेदार हैं।
नई दिल्ली जिला के डीसीपी मधुर वर्मा द्वारा इंस्पेक्टर को पीटा गया लेकिन पुलिस कमिश्नर ने कोई कार्रवाई नहीं की। सिर्फ सतर्कता विभाग द्वारा जांच के नाम पर मामला टाल दिया गया। इस घटना से पुलिस बल में जबरदस्त रोष है। पुलिस कर्मियों का कहना है कि आईपीएस अफसर तो अपने आईपीएस अफसर को ही बचाते हैं और इसी वजह से आईपीएस अफसर निरंकुश हो गए।
कमिश्नर की अजीब समझ सवाल को शिकायत समझते हैं। --
पुलिस कमिश्नर या किसी भी अफसर का आकलन उसके कार्य/ कर्तव्य पालन में ईमानदारी और व्यवहार से किया जा सकता है।
पुलिस कमिश्नर किस तरीके से काम कर रहे हैं। उनकी सोच /समझ/ मानसिकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस पत्रकार द्वारा पुलिस कमिश्नर को ई-मेल/एसएमएस भेज कर पूछा गया कि इंस्पेक्टर कर्मवीर ने डीसीपी मधुर वर्मा पर पिटाई और गाली गलौज/ बदसलूकी का गंभीर आरोप लगाया है। आपने इस मामले में क्या कार्रवाई की है। इस बारे में अपना पक्ष बताएं।
पुलिस कमिश्नर का कल शाम को जवाब आया कि आपकी ई मेल ज़रुरी /आवश्यक कार्रवाई के लिए विशेष आयुक्त ट्रैफिक ताज हसन और विशेष आयुक्त कानून एवं व्यवस्था (दक्षिण क्षेत्र ) रणबीर कृष्णियां को भेज दी गई है।
कमिश्नर की काबिलियत पर सवाल ?--
पुलिस कमिश्नर के इस जवाब से अमूल्य पटनायक की काबिलियत/समझ पर सवालिया निशान लग जाता है। क्या पुलिस कमिश्नर को यह नहीं मालूम कि कोई भी पत्रकार अफसर का पक्ष/जानने लेने के लिए संपर्क करता है।
लेकिन ऐसा कोई भी अफसर नहीं करता जैसा पुलिस कमिश्नर ने किया अमूल्य पटनायक ने पक्ष देने की बजाय ई-मेल को आगे अपने जूनियर अफसरों को ऐसे भेज दिया जैसे कोई शिकायत पत्र कार्रवाई के लिए आगे भेज दिया जाता हैं।
इस पत्रकार द्वारा विशेष आयुक्त ट्रैफिक ताज हसन और विशेष आयुक्त कानून व्यवस्था रणबीर कृष्णियां के अलावा आरोपी डीसीपी मधुर वर्मा को भी एसएमएस संदेश भेजे गए हैं। मोबाइल फोन पर संपर्क की कोशिश भी की लेकिन किसी ने भी जवाब नहीं दिया।
अगर पत्रकार संबंधित अफसरों से संपर्क न करें तो फिर यही अफसर कहते कि उनका पक्ष भी लेना/ जानना चाहिए था।
संवेदनहीनता --
इससे यह भी पता चलता है कि संवेदनहीन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के लिए डीसीपी द्वारा इंस्पेक्टर को पीटा जाना गंभीर और महत्वपूर्ण नहीं है। वर्ना वह कम से कम यह तो कहते कि अगर आरोप सही पाए गए तो डीसीपी को बख्शा नहीं जाएगा।
वैसे पुलिस कमिश्नर में अगर ज़रा भी इंसानियत होती तो पुलिस बल के मुखिया/अभिभावक के नाते कम से कम इंस्पेक्टर को बुला कर उसके साथ न्याय करने का भरोसा तो देते और डीसीपी की करतूत पर माफी मांग कर बड़प्पन भी दिखा सकते थे। लेकिन डीसीपी द्वारा मारे गए थप्पड़ों से आहत बुजुर्ग इंस्पेक्टर की पीड़ा कोई संवेदनशील व्यक्ति ही महसूस कर सकता है।
एक घंटे में असलियत पता चल जाती---
कोई भी काबिल कमिश्नर होता तो किसी भी काबिल ईमानदार अफसर से जांच करा कर एक घंटे में ही पता लगा सकता था कि इंस्पेक्टर के आरोप सही हैं या नहीं।
वैसे सच्चाई यह है कि अगर इंस्पेक्टर ने डीसीपी को पलट कर गाली भी दी होती तो यही कमिश्नर इंस्पेक्टर को निलंबित करने में एक सेकंड नहीं लगाते। इंस्पेक्टर ने अगर आत्मरक्षा में कही पलट कर डीसीपी को थप्पड़ जड़ दिया होता तो तुंरत उसे गिरफ्तार कर लिया जाता।
लेकिन अब आरोपी डीसीपी हैं तो आलम यह है कि घटना के पांच दिन बाद भी जांच जारी रहने की बात कही जा रही हैं।
अगर यह तरीका सही है तो पुलिस कमिश्नर को थानों में आदेश जारी करना चाहिए कि अब से मारपीट के सभी मामले पहले कई दिनों तक जांच करने के बाद ही दर्ज किए जाएंगे।
कुत्ते वाले डीसीपी के मामले में भी कमिश्नर की बोलती बंद----
दक्षिण जिला के तत्कालीन डीसीपी रोमिला बानिया ने अपने निजी कुत्तों के लिए दफ्तर की सरकारी जमीन पर कमरे बनाए कूलर लगाए और मातहतों को कुत्तों की सेवा में लगाया।
पुलिस कमिश्नर से ईमेल द्वारा पूछा गया कि कृपया बताएं कि कमरे बनाने में लगा धन सरकारी/ भ्रष्टाचार में से कौन सा है? सरकारी खजाने के दुरुपयोग/ भ्रष्टाचार के लिए रोमिल बानिया के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? निजी शौक़ के लिए दफ्तर की सरकारी जमीन पर निजी कुत्तों के लिए कमरे बनाने और कुत्तों की सेवा की सेवा में मातहतों को इस्तेमाल करने के लिए रोमिल बानिया ने क्या आपसे यानी कमिश्नर से मंजूरी ली थी?
इस बारे में भी कमिश्नर ने सवालों के जवाब नहीं दिए। सिर्फ यह जवाब दिया कि आपकी ई मेल ज़रुरी /आवश्यक कार्रवाई के लिए सतर्कता विभाग के विशेष आयुक्त को भेज दी गई हैं।
महिला डीसीपी की शिकायत पर भी कमिश्नर संवेदनहीन ---
उत्तर पश्चिमी जिला की तत्कालीन महिला डीसीपी असलम खान के बारे में हवलदार देवेंद्र सिंह ने फेसबुक पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।असलम खान ने पुलिस कमिश्नर को सबूत के साथ शिकायत की। लेकिन कमिश्नर ने हवलदार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की क्योंकि हवलदार कमिश्नर के दफ्तर में ही तैनात था। इस पत्रकार ने यह मामला कई दिन तक उठाया तब जाकर हवलदार को निलंबित किया गया। पुलिस अफसरों में चर्चा है कि कमिश्नर डीसीपी को पसंद नहीं करते थे इसलिए उसकी शिकायत पर पहले तवज्जो नहीं दी गई।
डीसीपी का नेता ने गिरेबान पकड़ा कमिश्नर ने कार्रवाई नहीं की।----
सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन समारोह में भाजपा के मनोज तिवारी ने डीसीपी अतुल ठाकुर की गिरेबान पकडी/हाथापाई की गई। अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त राजेंद्र प्रसाद मीणा को मनोज तिवारी द्वारा धमकी देने का मामला मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया ने देखा। इस मामले में भी अमूल्य पटनायक ने मनोज तिवारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। हालांकि इस मामले में अतुल ठाकुर और मीणा को पुलिस कमिश्नर पर निर्भर होने की बजाय खुद हिम्मत दिखानी चाहिए थी और वर्दी पर हाथ डालनेवाले वाले गवैया/ भांड को हवालात में बंद कर उसे कानून की ताकत दिखानी चाहिए थी। तभी यह साबित हो सकता था कि कानून/ पुलिस की नजर में सब बराबर हैं। सत्ताधारी नेता के खिलाफ भी कार्रवाई करने से पुलिस बल का मनोबल भी बढ़ता। आईपीएस अफसरों को सोचना चाहिए कि सत्ताधारी के खिलाफ कार्रवाई करने से वह नेता सिर्फ इतना ही करा सकता था कि जिला पुलिस उपायुक्त के पद से हटवा देता। लेकिन सोचों जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर कौन सा पूरी जिंदगी रहना होता हैं। खाकी को ख़ाक में मिलाने की बजाय खाकी वर्दी की शान बनाए रखने के लिए पुलिस बल में हमेशा के लिए मिसाल बन जाते।
चहेतों/ जुगाड़ू का बोलबाला--
पुलिस कमिश्नर के चहेते मधुर वर्मा और मनदीप रंधावा जैसे जिला पुलिस उपायुक्त के पद पर जमे रहते है। दूसरी ओर आईपीएस दम्पति असलम खान और पंकज सिह को छह महीने, एक साल में ही हटा दिया जाता है।
आईपीएस हो या एसीपी/ एसएचओ सिर्फ चहेते/जुगाड़ू ही लंबे समय से महत्वपूर्ण पदों पर जमे हुए हैं।
महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने के दावे की पोल खुली।--
पुलिस से महिला डीसीपी ही नहीं महिला पत्रकार भी सुरक्षित नहीं है। पिछले साल मार्च में प्रदर्शन के दौरान एक महिला पत्रकार से पुलिस वालों ने ही कैमरा लूट लिया उसी दिन एक अन्य महिला पत्रकार ने आरोप लगाया कि दिल्ली छावनी के एसएचओ विधा धर ने उसकी इज्जत से खिलवाड़ किया हैं। इन मामलों में एफआईआर दर्ज कराने के लिए पत्रकारों को प्रदर्शन कर गृहमंत्री से गुहार लगानी पड़ी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम महिला की शिकायतों को पुलिस कितनी गंभीरता से लेती होगी।
पिछले साल की बात है आईपीएस एस एस यादव ने उतरी जिला के मौरिस नगर थाने के सब इंस्पेक्टर राम चंद्र को अपने एक दोस्त के सामने ना केवल गालियां दी बल्कि सब इंस्पेक्टर से उठक बैठक भी लगवाई थी। सब इंस्पेक्टर इतना आहत हुआ कि आत्महत्या की बात करने लगा। यह मामला भी रोजनामचे में दर्ज किया गया।
इन मामलों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दिल्ली पुलिस के मुखिया अमूल्य पटनायक कितने कमजोर/ अयोग्य है।
अमूल्य पटनायक के समय में हवलदार से लेकर आईपीएस तक निरंकुश हो गए हैं।
दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त प्रशासन के पद पर तैनात राजेश मलिक के खिलाफ तो अंडमान में महानिदेशक के पद पर रहते हुए एक बिजनेस मैन से लाखों रुपए ऐंठने की कोशिश के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ था।
पुलिस कमिश्नर ने अपराध शाखा के डीसीपी जैसे महत्वपूर्ण पद पर उस जॉय तिर्की को तैनात किया जिसे कुछ साल पहले दक्षिण पूर्वी जिला पुलिस के अतिरिक्त उपायुक्त पद से हटाया गया था। तिर्की लंबे समय से हवलदार अमित तोमर को अपने साथ रखे हुए थे अमित को वसूली के चक्कर में अपराध शाखा की टीम पर ही गोलियां चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
ऐसे में इंस्पेक्टर को पीटने वाले डीसीपी और भ्रष्टाचार करने वाले आईपीएस/एस एच ओ के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत पुलिस कमिश्नर क्या दिखा पाएंगे?
गुंडों और शराब माफिया द्वारा पुलिस को पीटने के तो अनेक मामले सामने आते रहे है।