इंद्र वशिष्ठ
सावधान- घर और बाहर हर जगह चौकन्ना रहे क्योंकि दिल्ली में लाखों अपराधी खुले घूम रहे हैं। अपनी सुरक्षा का इंतजाम खुद कर लें पुलिस के भरोसे मत रहे। क्योंकि इन अपराधियों को पकड़ना पुलिस की प्राथमिकता में नहीं है और न ही उसकी नीयत हैं। पुलिसिंग के अपने मूल काम को छोड़ कर पुलिस बाकी सब कुछ करने में व्यस्त हैं। पुलिस कमिश्नर झाड़ू लगाने और युवाओं को हुनरमंद बनाने में व्यस्त हैं। डीसीपी क्रिकेट मैच खेलने में व्यस्त हैं। एस एच ओ अपने अफसरों के इन सब कामों को पूरा करने में ही जुटे रहते हैं। यही नहीं कमिश्नर की पत्नी की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रमों में सारे इंतजाम की जिम्मेदारी भी डीसीपी/एस एच ओ इतनी प्राथमिकता और शिद्दत से निभाते हैं कि अपराधियों को पकड़ने की फुर्सत ही नहीं है। कमिश्नर मंत्री को, डीसीपी कमिश्नर को और एस एच ओ इन सब अफसरों को इस तरह के कामों से ही खुश करने में लगे हुए हैं। जाहिर सी बात है एस एच ओ सब इंतजाम अपनी जेब से तो करते नहीं है। यही वजह है कि दिल्ली पुलिस में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। भ्रष्टाचार और अपराध कम न होने के लिए आईपीएस अफसर ही मूल रूप से जिम्मेदार हैं।
पुलिस के गैर जिम्मेदाराना रवैए के कारण लाखों अपराधी खुले घूम रहे हैं ऐसे अपराधी ही बाद में बड़े अपराधी बन जाते हैं।
इस लिए सतर्क/जागरुक रह कर खुद ही अपनी जान माल की हिफाज़त करने की कोशिश करें।
दिल्ली पुलिस हर साल अपराध के 60 से 75 फीसदी तक मामलों को सुलझा ही नहीं पा रही हैं। यानी पुलिस अपराध में शामिल लाखों अपराधियों का पता तक भी नहीं लगा पा रही हैं। इनमें हत्या, लूट/झपटमारी ,अपहरण, महिलाओं की इज्जत से खिलवाड़/छेड़छाड़ और चोरी आदि करने वाले अपराधी शामिल हैं। यह खतरनाक/गंभीर स्थिति है कि लाखों अपराधी खुले घूम रहे हैं। इस लिए लोगों की जान माल पर हमेशा खतरा बना हुआ है। यही वजह है कि अपराध दिनों-दिन बढ़ रहे हैं। ज्यादातर अपराधी पकड़े ही नहीं जा रहे तो अपराध भला कम कैसे होगा ।
दिल्ली पुलिस की सालाना रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 में अपराध के 63 फीसदी मामलों को दिल्ली पुलिस सुलझा नहीं पाई। साल 2018 में भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध के 236476 मामले दर्ज किए गए। इनमें से सिर्फ 36.53 फीसदी मामले पुलिस ने सुलझाए है।
साल 2017 में दर्ज अपराध के 223077 मामलों में से 34.60 फीसदी और साल 2016 में दर्ज 199107 मामलों में से सिर्फ 26.64 फीसदी मामलों को ही पुलिस सुलझा पाई है। इस तरह तीन साल में अपराध के साढ़े 6 लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। लेकिन अपराध के लाखों मामलों को सुलझाने में पुलिस नाकाम रही हैं।
इन आंकड़ों से पता चलता है कि पुलिस की अपराध सुलझाने और अपराधियों को पकड़ने की दर बहुत ही कम है। इससे पुलिस की तफ्तीश की काबिलियत और कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो जाते हैं।
दोस्त/रिश्तेदार/जानकार ने किए बलात्कार-- साल 2018 में बलात्कार के 2043 मामले दर्ज हुए। बलात्कार के आरोपियों में 97 फीसदी से ज्यादा आरोपी महिलाओं के दोस्त/पारिवारिक दोस्त/रिश्तेदार/पड़ोसी/अन्य जानकार आदि थे। सिर्फ 2.5 फीसदी आरोपी ही महिलाओं से अनजान/अजनबी थे। बलात्कार के करीब 95 फीसदी मामलों में आरोपी पकड़े गए।
दुश्मनी के कारण सबसे ज्यादा हत्या--- साल 2018 में हत्या की 477 वारदात हुई । इसमें से 38 फीसदी हत्याएं दुश्मनी/विवाद के कारण हुई। 21 फीसदी हत्याएं मामूली सी बात पर अचानक तैश में आकर आपा खोने के कारण की गई। 11 फीसदी जुनून ( पैशन रिलेटेड) हत्याएं हुई । सिर्फ 11 फीसदी मामलों में अपराध के लिए हत्या की गई। पुलिस ने हत्या के 86.16 फीसदी मामलों को सुलझाने का दावा किया है।
पुलिस के आंकड़ों से ही पता चलता है कि हत्या हो या बलात्कार ज्यादातर मामलों में आरोपी जानकार या रिश्तेदार थे। मतलब इन जघन्य अपराध को सुलझाने के लिए पुलिस को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी।
जघन्य अपराध- साल 2018 में 5407, साल 2017 मेंं 6125 और साल 2016 में 7911 मामले जघन्य अपराध के दर्ज किए गए। हत्या, बलात्कार, डकैती, लूट, फिरौती के लिए अपहरण, हत्या की कोशिश,दंगा जघन्य अपराध की श्रेणी में आते हैं। पिछले तीन साल में दर्ज अपराध के 658660 मामलों में सिर्फ 19443 मामले जघन्य अपराध के है। यानी दर्ज हुए अपराध के कुल मामलों में जघन्य अपराध के मामले तीन फीसदी ही है। पुलिस जघन्य अपराध के 71 से 91 फीसदी मामलों को सुलझाने में सफल हुई है। पुलिस आसानी से सुलझने वाले जघन्य अपराध के मामले सुलझाने पर तो अपनी पीठ थपथपाती हैं लेकिन दर्ज कुल अपराध के 60 से 75 फीसदी तक मामले सुलझाने में पुलिस विफल रही है। इन अपराधों में शामिल अपराधी पकड़े ही नहीं गए।
पुलिस अगर गंभीरता से इन लाखों मामलों की जांच कर अपराधियों को पकड़ने की कोशिश करें तो अपराधी पकड़ में आ सकते है। तभी अपराध और अपराधी पर अंकुश लग पाएगा। वर्ना यहीं अपराधी बाद में बड़े अपराधी भी बन सकते है।
दिल्ली में चोरी सबसे ज्यादा - राजधानी में लोग सबसे ज्यादा चोरों से त्रस्त है। हर समय नकदी, सामान, गाड़ी आदि चोरी हो जाने का डर बना रहता है। जेब से लेकर घर, दुकान, फैक्ट्री, गोदाम , गाड़ी सब कुछ चोरों के निशाने पर हैं।
साल 2018 में आईपीसी के तहत दर्ज अपराध के कुल 236476 मामलों में से 75 फीसदी मामले चोरी के हैं। यानी चोरी सबसे ज्यादा होने वाला अपराध है इसके बावजूद पुलिस इस अपराध को सुलझाने के लिए गंभीर नहीं दिखाई देती। चोरी के 86 फीसदी मामलों में पुलिस चोरों का पता ही नहीं लगा पाई है।
वाहन चोरी बढ़ी-- साल 2018 में वाहन चोरी बढ़ी । कार/बाइक चोरी के 44158 मामले दर्ज हुए। लेकिन पुलिस सिर्फ 4619 वाहन बरामद कर पाई हैं। यानी सिर्फ 10.46 फीसदी वाहन बरामद हुए हैं।
पिछले तीन साल में चोरी के 415000 मामलों में से सिर्फ 57100 मामले पुलिस ने सुलझाए हैं। चोरी के 14 फीसदी मामलों को ही पुलिस सुलझा पाई है।
मासूम बच्चों को तलाश करना हो या लूट/स्नैचिंग, चोरी के ऐसे मामले जिनमें मेहनत की ज्यादा जरूरत होती है उन मामलों को सुलझाने में पुलिस की रुचि दिखाई ही नहीं देती। पिछले करीब चार साल से दिल्ली से आठ हज़ार बच्चे लापता हैं।
संसद में भी उठा अनसुलझे अपराधों का मामला-
साल 2017 में राज्यसभा में सांसद वकील केटीएस तुलसी ने अपराध के 75 फीसदी से ज्यादा अनसुलझे मामलों पर चिंता प्रकट करते हुए सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया। तुलसी ने कहा कि तथ्यों से पता चलता है कि दिल्ली में क्रिमनल जस्टिस सिस्टम पूरी तरह खत्म हो गया है। जघन्य,गैर जघन्य और गैर आईपीसी समेत तीनों श्रणियों में साल 2016 में दर्ज हुए कुल 216920 मामलों में से कुल 154647 मामले अनसुलझे है ये सभी अनसुलझे मामले संज्ञेय अपराध के है और सभी में तीन साल से ज्यादा की सजा का प्रावधान है।
तुलसी ने कहा कि क्या पुलिस हत्या होने का इंतजार करेगी और तब तक कोई कार्रवाई नहीं करेगी। इससे पता चलता है कि दिल्ली मे पुलिस की क्या स्थिति है। दिल्ली मे पुलिस की कार्य प्रणाली के लिए केंद्र सरकार सीधे तौर पर जिम्मेदार है। जब राजधानी का यह हाल है तो देश में किस प्रकार के क्रिमनल जस्टिस सिस्टम की अपेक्षा कर सकते है।
गृहमंत्री ने कहा छोटे मामलों को सुलझाने में पुलिस को तकलीफ होती है। --- 75 फीसदी से ज्यादा अपराध के मामलों को सुलझाने में नाकाम पुलिस को फटकार लगाना तो दूर राज्य सभा में गृह राज्य मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि छोटे मामलों को सुलझाने में पुलिस को तकलीफ होती है। गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने कहा कि जो गैर गंभीर मामले होते है उनमें ज्यादातर घरेलू मामले होते है। ऐसे मामलों में समझौता करा दिया जाता है।छोटी-छोटी चोरियां और मामूली बातों पर झगड़े होते है। ऐसे मामलों को सुलझाने की दर पूरी दुनिया में कम है। चोरी करने के बाद अपराधी को ट्रेस करने में पुलिस को तकलीफ होती है। सबसे ज्यादा गाड़ी चोरी के मामले है। छोटी चोरी के आरोपी नहीं मिलते यह बात भी सही है।
गैर जघन्य अपराध जिनको पुलिस/ सरकार छोटे मामले मानती है-- - स्नैचिंग ,हर्ट ,सेंधमारी ,वाहन चोरी,घर में चोरी ,अन्य चोरी,महिलाओं से छेड़खानी/बदतमीजी, अपहरण ,जानलेवा दुर्घटना ,सामान्य दुर्घटना। साल 2016 में गैर जघन्य अपराध के कुल दर्ज 201281 में से सिर्फ 50423 मामले पुलिस सुलझा पाई । इन मामलों को सुलझानें में ज्यादा मेहनत लगती और पुलिस की तफ्तीश की काबिलियत का पता चलता। लेकिन जब मंत्री ही कह रहे है कि पुलिस को ऐसे मामले सुलझाने में तकलीफ होती है। तो पुलिस क्यों रूचि लेगी ऐसे मामलों को सुलझाने में।
आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम दिखाते हैं---
सच्चाई यह है कि पुलिस के यह आंकड़े हकीकत से कोसों दूर हैं। क्योंकि
अपराध कम दिखाने के लिए अपराध के मामले सही/ पूूूरेे दर्ज ही नहीं करने की परंपरा पुलिस में कायम है। इसके बावजूद इन आंकड़ों से भी अपराध सुलझाने और अपराधियों को पकड़ने में पुलिस की नाकामी उजागर होती हैं। अगर यहीं स्थिति रही तो अपराध दिनों-दिन बढ़ता ही जाएगा। अपराध के मामले पूरे/ सही दर्ज न करना और अपराधियों को पकड़ने में नाकामी के लिए आईपीएस अफसर ही पूरी तरह जिम्मेदार है। आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम दिखा कर ही पुलिस कमिश्नर, डीसीपी,एस एच ओ तक खुद को सफल अफसर दिखाना चाहते हैं। आंकड़ों से अपराध कम दिखाना गृहमंत्री से लेकर पुलिस कमिश्नर, डीसीपी और एसएचओ तक सब के लिए अनुकूल रहता है।
अपराध और अपराधियो पर अंकुश लगाने का सिर्फ और सिर्फ एकमात्र रास्ता यह है कि पुलिस अपराध के सभी मामलों को सही/पूरे दर्ज करें। अपराध सही दर्ज होगा तभी अपराध की सही तस्वीर सामने आएगी और तभी अपराध और अपराधियों से निपटने की कोई भी योजना कामयाब हो सकती हैं। पुलिस अपराध को सुलझाने और अपराधियों को पकड़ने के लिए पूरी ईमानदारी से कोशिश कर अपनी पेशेवर काबिलियत का परिचय दें। आसानी से सुलझने वाले अपराध को सुलझा कर अपनी पीठ थपथपाने की बजाए उन अपराध को भी सुलझाए जिनमें वाकई पुलिस की तफ्तीश की काबिलियत का पता चलता है।
जागो लोगों जागो एफआईआर जरुर दर्ज कराओं----
लोगों को भी जागरुक होना चाहिए लूट, झपटमारी और मोबाइल/ पर्स चोरी के मामले में एफआईआर दर्ज कराने के लिए पुलिस के सामने अड़ना चाहिए। अभी हालत यह है कि पुलिस ऐसे मामलों में लोगों को थाने, कोर्ट के चक्कर काटने और अपराधी को पहचानने के ख़तरे बताने के नाम पर डरा देती हैं। ऐसा पुलिस सिर्फ इसलिए करतीं हैं ताकि एफआईआर दर्ज ना करनी पड़े। क्योंकि एफआईआर दर्ज की तो अपराध में वृद्धि उजागर होगी और पुलिस पर अपराध सुलझाने का दबाव बनेगा। सच्चाई यह है कि पुलिस अपराध को दर्ज ना करके अपराधियों की ही मदद करने का अपराध करतीं हैं।
इसलिए अपराध होने पर लोगों को एफआईआर जरुर दर्ज करानी चाहिए।