इंद्र वशिष्ठ
सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज कर सरकार ने निष्पक्ष जांच के लिए अधूरा कदम उठाया हैं। भ्रष्टाचार के आरोप में जब सिपाही या एस एच ओ को निलंबित करके जांच की जाती है। इस मामले में तो सीबीआई डायरेक्टर और स्पेशल डायरेक्टर दोनों पर करोड़ों की रिश्वत के गंभीर आरोप है ऐसे में इन दोनों अफसरों को सरकार को निष्पक्ष जांच के लिए निलंबित करना चाहिए था।
केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी के कहने पर यह क़दम उठाया गया। इस मामले ने सीवीसी की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। कुछ समय पहले ही राकेश अस्थाना ने कैबिनेट सचिव और सीवीसी को आलोक वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप में शिकायत दी थी जिसके जवाब में आलोक वर्मा ने भी राकेश अस्थाना पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। सीवीसी को उसी समय गंभीर आरोपों में घिरे इन दोनों अफसरों को निलंबित कर निष्पक्ष जांच करानी चाहिए थी। सीवीसी अगर उसी समय यह कदम उठाता तो सीबीआई का इतना तमाशा ना बनता ।
खैर देर से ही सही कुछ क़दम तो उठा लिया गया। सीवीसी को दोनों अफसरों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच एक तय समय सीमा में पूरी करानी चाहिए। ताकि जल्द से जल्द यह पता चल पाए कि इनमें कौन भ्रष्ट हैं और किसने गलत नीयत से झूठे आरोप लगाए।
दोषी पाए जाने वाले आईपीएस अफसर के खिलाफ ऐसी कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि आगे से कोई ऐसा करने की हिम्मत भी न करें। सीवीसी और सरकार के पास यह एक अच्छा मौका है जिसमें अगर ईमानदारी से काम किया जाए तो भ्रष्ट आईपीएस अफसरों को सज़ा दिला कर आईपीएस सेवा में मौजूद भ्रष्ट अफसरों को सबक सिखाया जा सकता है। भ्रष्ट आईपीएस अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई से ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है और तभी जांच एजेंसियों पर लोगों का भरोसा भी कायम हो सकता है।
गैंग वार- भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच तो की ही जाएगी। सरकार को इस सारे मामले में शामिल उन अफसरों का भी पता लगा कर उनके खिलाफ भी कार्रवाई करनी चाहिए जो अपने अपने हितों के लिए गुटबाजी कर सरकार की फजीहत करा रहे हैं। आईपीएस अफसरों में चर्चा है कि आलोक वर्मा और उनका गुट नहीं चाहता कि राकेश अस्थाना अगले सीबीआई डायरेक्टर बने।इस लिए यह सब किया गया है। अफसरों का कहना है कि इन अफसरों को डर है राकेश अस्थाना अगर सीबीआई डायरेक्टर बन गए तो उनके कच्चे चिट्ठे खुल जाएंगे। इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय में तैनात विवादास्पद अफसर राजेश्वर सिंह का नाम भी चर्चा में है। राजेश्वर सिंह के खिलाफ रॉ ने सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दी थी कि वह दुबई में मौजूद संदिग्ध व्यक्तियों से संपर्क में रहता है। लेकिन ईडी डायरेक्टर की कृपा से वह इस मामले में बच गया। हालांकि विवादित राजेश्वर सिंह को बचाने के कारण ईडी डायरेक्टर की भूमिका पर भी आईपीएस अधिकारियों में हैरानी और सवालिया निशान लगाया जा रहा है।
चौंकाने वाली बात यह पता चली है कि राजेश्वर सिंह की संदिग्ध गतिविधियों के बारे में सुप्रीम कोर्ट में रॉ के सामंत गोयल ने रिपोर्ट दी थी।
सीबीआई ने कारोबारी सतीश सना की शिकायत पर राकेश अस्थाना और डीएसपी देवेंद्र कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार का जो मामला दर्ज किया है। उसमें आईपीएस सामंत गोयल और परवेज़ हयात का नाम भी लिखा गया है।इन दोनों के इस मामले में शामिल होने के बारे में एफआईआर में कुछ भी नहीं है सतीश सना ने सिर्फ इतना लिखा है बिचौलिए सोमेश ने उसे बताया था कि वह इन अफसरों को भी जानता है। इस मामले में बिना किसी संदर्भ/ भूमिका के इन अफसरों के नाम एफआईआर में शामिल करने से ही इस मामले में साजिश की बू आती है।
आईपीएस अफसरों का कहना है कि सामंत ने राजेश्वर सिंह की संदिग्ध गतिविधियों के बारे में सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दी थी इसलिए इस मामले में जानबूझ कर उसका नाम लिखा गया है। जांच एजेंसी को इस पहलु की भी जांच करनी चाहिए अगर यह सच है कि सामंत गोयल को फंसाने के लिए उसका नाम शामिल किया गया है तो यह बहुत ही खतरनाक साजिश है और इसका खुलासा किया जाना चाहिए और साजिश रचने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए।
सीबीआई सूत्रों के हवाले से मीडिया में यह खबर दी गई कि सोमेश के फोन की रिकॉर्डिंग की गई थी जिसमें पाया कि सामंत गोयल ने सोमेश को भारत आने से मना किया है।अब सवाल उठता है अगर सीबीआई के पास सबूत है कि सामंत ने सोमेश को बचाया है तो सीबीआई को सामंत के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी और मीडिया में अधिकारिक रूप से यह जानकारी देती। लेकिन सीबीआई ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे सीबीआई की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
दूसरा सीबीआई की एफआईआर में साफ़ लिखा है सतीश ने एक करोड़ रुपए सोमेश को दुबई में दिए। 1करोड 95 लाख रुपए सोमेश के ससुर सुनील मित्तल को दिल्ली में सतीश के कर्मचारी पुनीत ने दिए थे और इसके बाद 25 लाख रुपए करोलबाग बैंक स्ट्रीट स्थित डायमंड पोलकी पर दिए थे। इनको भी गिरफ्तार नहीं किया गया।इनकी गिरफ्तारी से ही तो यह पता चलता कि रकम अगर राकेश अस्थाना को दी गई तो वह किस तरीके से राकेश अस्थाना तक पहुंचाई गई।
सीबीआई ने डीएसपी देवेंद्र कुमार को डायरेक्टर आलोक वर्मा को फंसाने के लिए सतीश सना का जाली बयान तैयार करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। सीबीआई ने कोर्ट में कहा कि सीबीआई में जांच के नाम पर उगाही का धंधा चल रहा है और देवेंद्र कुमार उस गिरोह का हिस्सा है। सवाल यह उठता है कि सीबीआई ने फिर देवेंद्र को उसके खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार क्यों नहीं किया।
उपरोक्त कुछ बातें हैं जिनके जवाब सीबीआई को देने चाहिए वर्ना इस मामले में उसकी भूमिका संदेहास्पद मानी जाएगी।
आईपीएस अधिकारियों में चर्चा है कि आलोक वर्मा एन एस ए अजीत डोवल और राकेश अस्थाना प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात रिटायर्ड वरिष्ठ नौकरशाह पी के मिश्रा के गुट के माने जाते हैं। दोनों गुटों में वर्चस्व की लड़ाई है। राकेश अस्थाना मामले की जांच करने वाला अजय बस्सी आलोक वर्मा का ख़ास है। इसी तरह अरुण शर्मा भी आलोक वर्मा गुट के माने जाते हैं।
सीवीसी जितनी जल्दी इन आरोपों की जांच कर सच सामने लाएगा उतनी ही जल्दी सीबीआई की बची हुई साख बच पाएगी। पहली नजर में यह तो साफ़ है कि दोनों में से कोई भी दूध का धुला हुआ नहीं है और दोनों को वरिष्ठ नौकरशाह और नेताओं का संरक्षण प्राप्त है। इसके बिना कोई भी ऐसे पदों पर पहुंच ही नहीं सकता। राकेश अस्थाना को मोदी का ख़ास माना जाता है जबकि सच्चाई यह है कि मोदी हो या कोई अन्य नेता सीबीआई डायरेक्टर तो प्रधानमंत्री का चहेता ही बनाया जाता है।
कांग्रेस के राज में सीबीआई डायरेक्टर रहे अमर प्रताप सिंह और रंजीत सिन्हा पर भ्रष्टाचार और कालेधन को सफेद करने के आरोप में सीबीआई और ईडी में मामले दर्ज हैं यह बात दूसरी है कि इन दोनों को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है।
बीजेपी और मोदी विपक्ष में थे तो सीबीआई को कांग्रेस की कठपुतली बताया करते थे और आरोप लगाते थे कि मोदी को फंसाने के लिए कांग्रेस सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है। कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे का तोता कहा था। सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाए हैं उससे साबित हो गया है तोता अब गिद्ध बन गया है। इतने बड़े-बड़े पदों पर पहुंचे अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह अफसर पहले भी दूध के धुले नहीं रहें होंगे।
विपक्ष को आलोक वर्मा में महात्मा नज़र आए--
नेताओं और भ्रष्ट अफसरों के कारण ही भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है।
विपक्ष की भूमिका अफसोसजनक है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी और अन्य नेता जो कल तक यह कहते नहीं थकते थे कि मोदी उनसे बदला लेने के सीबीआई और ईडी का दुरुपयोग कर रहा है। आज़ जब निष्पक्ष जांच के लिए आरोपी सीबीआई अफसरों को हटा दिया गया तो इन नेताओं को आलोक वर्मा में महात्मा/ संत नज़र आ गए। इस लिए वह सरकार
बिना वजह निंदा कर रहे हैं।
कांग्रेस या अन्य नेता अगर ईमानदार होते और भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई कराना चाहते तो सरकार से सिर्फ यह पुरजोर मांग करते कि इन दोनों आईपीएस अफसरों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की जांच एक महीने के अंदर कराई जाए ताकि सीबीआई की बची खुची साख को बचाया जा सके। लेकिन कांग्रेस या किसी अन्य नेता ने भ्रष्टाचार और इन अफसरों के मामले की जांच के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला।
कांग्रेस के राहुल गांधी ने कहा कि आलोक वर्मा ने राफेल से जुड़े दस्तावेज मांगे थे इसलिए उनको हटा दिया गया। राहुल गांधी के ऐसे बयान ही उसे पप्पू बनाते हैं। राहुल गांधी से कोई पूछे कि एक ओर तुम कहते हो कि सीबीआई, ईडी को मोदी और अमित शाह चला रहे हैं। दूसरी ओर कह रहे हो कि आलोक वर्मा राफेल मामले की जांच के आदेश देने वाले थे। विपक्ष में रहते हुए राहुल गांधी का खुफिया तंत्र अगर वाकई इतना मजबूत है कि उनको यह भी पता चल जाता है कि आलोक वर्मा राफेल की जांच के आदेश देने वाले थे तो सत्ता में रहते हुए उनके खुफिया तंत्र को क्या सांप सूंघ गया था। राहुल का खुफिया तंत्र वाकई इतना मजबूत होता तो कांग्रेस को हार का सामना नहीं करना पड़ता।
राहुल गांधी क्या यह बता सकते है कि जब सीबीआई के दोनों बड़े अफसरों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप है तो ऐसे अफसर राफेल तो क्या किसी सामान्य मामले की भी जांच ईमानदारी से कर सकते हैं।