अनवर चौहान
नई दिल्ली: पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया में चर्चा चल रही है कि जब मई और जून में गर्मियों की छुट्टियां होती हैं और उस दौरान स्कूल में पढ़ाई नहीं होती और इसीलिए किसी हाईकोर्ट ने इन छुट्टियों के दौरान फीस वसूलने से मना किया है. शायद इसी वजह से दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने एक प्राइवेट स्कूल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, लेकिन सच्चाई ये है कि ऐसा कोई आदेश है ही नहीं और ना कोई कानून है.
दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने एक प्राइवेट स्कूल को नोटिस जारी करके जवाब मांगा, लेकिन सच्चाई ये है कि ऐसा कोई आदेश है ही नहीं और ना कोई कानून है. उत्तर पूर्वी दिल्ली के प्राइवेट स्कूल सिद्धार्थ इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर शशिकांत भारती दिल्ली के शिक्षा विभाग के नोटिस से नाराज़, हैरान और परेशान हैं. शिक्षा निदेशालय ने उनको दफ़्तर बुलाकर नोटिस थमाया और जवाब मांगा कि आखिर जब मई जून में गर्मियों की छुट्टियां होती है और स्कूल बंद होता है तो फिर स्कूल फीस क्यों वसूल रहा है?
दरअसल एक अभिभावक ने ये शिकायत मुख्यमंत्री को भेजी, मुख्यमंत्री ने उपमुख्यमंत्री को भेजी, उपमुख्यमंत्री ने शिक्षा निदेशालय को और शिक्षा निदेशालय ने स्कूल को नोटिस देकर जवाब मांग लिया.
स्कूल के मुताबिक, नोटिस गैर कानूनी है. सिद्धार्थ इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के निदेशक शशिकांत भारती ने कहा कि हमारे एक्ट में ये बात लिखी है कि 12 महीने का स्कूल होता है. 12 महीने की फीस ली जाती है. 12 महीने की सैलरी होती है. सभी खर्च स्कूलों में 12 महीने के होते हैं. ये बात जानते हुए लेटर फॉरवर्ड होकर आ रहा है. सीएम ऑफिस से, डिप्टी सीएम ऑफिस से आता तो बड़े आश्चर्य की बात है.
दरअसल सोशल मीडिया पर पिछले कुछ समय से ये संदेश वायरल हो रहा है कि गर्मियों कि हाईकोर्ट का आदेश है कि जून जुलाई में छुट्टियों के दौरान स्कूल फीस वसूल नहीं सकते. किसी स्कूल ने वसूल ली है तो वापस करे या आगे एडजस्ट करें. स्कूल की मनमानी की शिकायत पुलिस में करें और अगर पुलिस ने सुने तो मुख्यमंत्री को करें. जानकारों के मुताबिक, भारत की किसी कोर्ट ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया, बल्कि पाकिस्तान की कराची की कोर्ट ने यह आदेश दिया है.
सामाजिक कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि कभी ऐसा हमारे नोटिस में नहीं आया कि हमारे देश की किसी अदालत ने ऐसा कोई आदेश दिया हो, जिसके अंदर ये कहा हो पेरेंट्स मई जून की फीस नहीं देंगे. हुआ क्या है कि कराची हाईकोर्ट का आर्डर है 2015 का है जो कराची हाईकोर्ट ने एक स्कूल के बारे में दिया है, जिसमें कहा कि पेरेंट्स मई जून की छुट्टियों के बारे में कहा कि पेरेंट्स पैसे नहीं दें.
दिल्ली सरकार ने कैमरे पर कुछ नहीं कहा लेकिन सूत्रों ने कहा कि स्कूल छुट्टियों के दौरान फ़ीस नहीं ले सकते ऐसा कोई कानून नहीं और दावा किया कि नोटिस जाना एक स्टैंडर्ड प्रक्रिया है, लेकिन सवाल ये है कि जब कोई कानून ही नहीं तो नोटिस क्यों? क्या हर शिकायत पर सरकार ऐसे ही नोटिस देती रहती है?