इंद्र वशिष्ठ
देश की राजधानी में एक युवती का चरित्र हनन किया गया, सरेआम एक युवती को लूट लिया गया और खुलेआम एक युवती की इज्जत से खिलवाड़ किया गया। इन तीनों ही मामलों में युवतियों की शिकायत पर दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने तुरंत कार्रवाई नहीं की।
लोगों की नज़र में यह तो पुलिस का आम रवैया हैं और इसमें कुछ भी खास या नई बात नहीं है। लेकिन आगे की बात पढ़ कर आप चौंक जाएंगे और पुलिस के महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने के दावे की असलियत उजागर करने वाली भयानक तस्वीर आपके सामने होगी। तीनों ही मामलों में आरोपी/ अपराधी पुलिस वाले / वर्दी वाले गुंडे हैं।
इन तीनों ही मामलों में सबसे खास बात यह भी है कि तीनों युवतियां आम/लाचार/कमजोर नहीं है । तीनों बहुत ही ख़ास पेशे से जुड़ी हुई ताकतवर युवतियां है। आप को जानकर हैरानी होगी इनमें से एक तो दिल्ली में उत्तर पश्चिमी जिला में तैनात महिला डीसीपी असलम खान हैं।
असलम के मायने महफूज़ होता हैं। लोगों को अपराधियों और निरंकुश पुलिस वालों से महफूज रखने में जुटी इस आईपीएस युवती का "कसूर" सिर्फ इतना ही है कि माडल टाउन थाने की पुलिस बेकसूर सीए हर्षित और उसके पिता की पिटाई करने के बाद उनको झूठे मामले में फंसाने की तैयारी कर रहे थे। निरंकुश पुलिस वालों की इस नापाक साजिश को इस आईपीएस युवती ने विफल कर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन किया।
लेकिन भ्रष्ट पुलिस वाले कितने निरंकुश और दुस्साहसी हो गए कि आप भी जानकार चौंक जाएंगे।
देवेंद्र सिंह नामक व्यक्ति ने फेसबुक पर इस डीसीपी के बारे में ही अपमानजनक टिप्पणी करके डीसीपी का चरित्र हनन की नापाक कोशिश की। छानबीन में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई कि देवेंद्र सिंह हवलदार है और पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के दफ्तर में तैनात हैं। यह पता चलते ही डीसीपी ने
हवलदार द्वारा की गई आपत्तिजनक टिप्पणी की फोटो भी सबूत के रुप में पुलिस कमिश्नर को दी ।
ऐसे में कोई भी संवेदनशील/काबिल पुलिस कमिश्नर हवलदार के खिलाफ कार्रवाई करने में तनिक भी देर नहीं करता । लेकिन पुलिस कमिश्नर ने अनुशासनहीनता की भी हद पार करने वाले हवलदार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। जब इस संवाददाता द्वारा यह मामला उजागर किया गया। इसके बाद पुलिस कमिश्नर ने हवलदार देवेंद्र सिंह को निलंबित किया। हालांकि पुलिस कमिश्नर को हवलदार से पूछताछ और उसके मोबाइल के रिकॉर्ड की जांच करा कर उन पुलिस वालों का भी पता लगाना चाहिए था जो डीसीपी के चरित्र हनन की साज़िश में शामिल हैं। पुलिस कमिश्नर को ऐसी कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए थी जिससे पुलिस बल में संदेश जाता कि ऐसी ग़लत हरकत /अनुशासनहीनता बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
माडल टाउन थाने के एस एच ओ सतीश समेत उन पुलिस वालों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करनी चाहिए थी जिन्होंने हर्षित के साथ मारपीट की और उसे झूठे मामले में फंसाने की कोशिश की थी। लेकिन पुलिस कमिश्नर ने ऐसी कोई कार्रवाई इन पुलिस वालों के खिलाफ नहीं की। जिससे पुलिस कमिश्नर की काबिलियत पर भी सवालिया निशान लग जाता है। संवेदनहीन ,कमजोर पुलिस कमिश्नर के कारण ही भ्रष्ट पुलिस वाले इतने निरंकुश हो गए कि महिला डीसीपी तक का अपमान करने का दुस्साहस करते हैं ऐसे पुलिस वाले ही आम जनता पर अत्याचार कर पुलिस बल की छवि ख़राब करते हैं।
जब एक महिला डीसीपी की शिकायत पर ही बड़ी मुश्किल से आधी अधूरी कार्रवाई की जाती है तो हर्षित गोयल जैसे आम आदमी की शिकायत पर पुलिस कमिश्नर द्वारा पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की उम्मीद रखना बेकार है।
अब जाने अन्य दो युवतियों के बारे में ये दोनों लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ यानी मीडिया से जुड़ी हुई है। दोनो बड़े अखबार समूह की है इनमें से एक युवती फोटो पत्रकार हैं। यह दोनों 23 मार्च को एक प्रदर्शन की कवरेज करने गई थी। फोटो पत्रकार युवती पर पुलिस वालों के झुंड ने हमला किया और उसका कैमरा लूट लिया । उसने इसकी शिकायत पुलिस में की लेकिन हमला करने वाले पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर पुलिस ने कई दिन तक एफआईआर तक दर्ज नहीं की। दूसरी पत्रकार ने आरोप लगाया कि दिल्ली कैंट थाने के एसएचओ विद्या धर ने सरेआम उसका यौन उत्पीडन/ इज्जत पर हमला किया। इस मामले में एक वीडियो भी सामने आया जिसमें एस एच ओ की हिमायत में एडिशनल डीसीपी कुमार ज्ञानेश यह कोशिश करते दिखाई देते हैं कि युवती शिकायत ही दर्ज न करें। लेकिन शिकायत देने के बाद भी पुलिस ने एफआईआर दर्ज नही की।
महिला पत्रकारों के मामले में एफआईआर दर्ज कराने के लिए पत्रकारों को पुलिस मुख्यालय से लेकर संसद भवन तक प्रदर्शन करना पड़ा। गृहमंत्री तक से गुहार लगाई गई। तब जाकर कई दिन बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। फोटो पत्रकार के मामले में कार्रवाई के नाम पर एक महिला पुलिस कर्मी और एक पुरुष हवलदार को निलंबित कर खानापूर्ति की गई। एक पुलिस वाले के पास से लूटा गया कैमरा बरामद किया गया। लेकिन उसके खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। जबकि लूट या चोरी का माल जिससे बरामद किया जाता है उसे गिरफ्तार किया जाता है।
महिला पत्रकार के यौन उत्पीडन मामले में पुलिस की भूमिका-- पुलिस ने इस मामले में भी वारदात के चार दिन बाद 26 मार्च को एफआईआर तो दर्ज कर ली लेकिन इतने संगीन आरोप होने के बावजूद एस एच ओ विद्या धर को सिर्फ लाइन हाजिर किया गया। पुलिस ने इन दोनों मामलों में पहले विजिलेंस जांच कराई। जिसके आधार पर एफआईआर दर्ज की गई। इसके बावजूद यौन उत्पीडन ( धारा 354 ए) के आरोपी एस एच ओ विद्या धर और हमला कर कैमरा लूटने वाले पुलिस वालों को गिरफ्तार नहीं किया गया।
इन मामलों से यह सवाल भी उठता है कि क्या पुलिस यौन उत्पीडन और लूट की हर शिकायत पर पहले भी विजिलेंस जांच करा कर ही एफआईआर दर्ज करती थी ? या अब आगे से ऐसा करना शुरू करेगी ?
सीआरपीसी की धारा 154 में स्पष्ट है कि किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना/ शिकायत मिलते ही पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी चाहिए।
कुछ साल पहले ही आईपीसी में संशोधन कर धारा 166 ए(सी) जोड़ी गई है जिसके अनुसार संज्ञेय अपराध खासकर महिला के खिलाफ होने वाले अपराध की रिपोर्ट दर्ज न करना भी दंडनीय अपराध है ऐसा करने वाले पुलिस वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी। इस अपराध के लिए क़ैद और जुर्माने की सज़ा है।
इन तीनों ही मामलों से अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि जब ऐसी ताकतवर युवतियों की शिकायत पर भी पुलिस तुरंत एफआईआर और सही/ठोस कार्रवाई तक नहीं करती है तो लाचार और कमजोर महिलाओं की शिकायत पर अफसरों के कान पर जूं तक नहीं रेंगने वाली।
पुलिस महिलाओं की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील होने का ढिंढोरा तो बहुत पीटती है लेकिन हक़ीक़त यह है कि पुलिस कमिश्नर महिला डीसीपी तक की शिकायत को भी संवेदनशीलता/गंभीरता से नहीं लेते हैं। आम महिला की शिकायत पर पुलिस कितनी संवेदनशील होगी इन मामलों से साफ़ पता चल जाता है।