इंद्र वशिष्ठ
महिला डीसीपी असलम खान के बारे में आपत्तिजनक/ अपमानजनक टिप्पणी करने वाले हवलदार देवेंद्र सिंह के खिलाफ पुलिस कमिश्नर ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। देवेंद्र सिंह पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के दफ्तर में तैनात हैं । निरंकुश हवलदार ने महिला डीसीपी के बारे में फेसबुक पर जो आपत्तिजनक टिप्पणी की वह पुलिस कमिश्नर को कई दिन पहले ही दी जा चुकी हैं। इसके बावजूद हवलदार के खिलाफ कार्रवाई नहीं किए जाने से पुलिस कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान लग गया है। महिला डीसीपी की शिकायत पर ही अब तक कार्रवाई नहीं किए जाने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम महिला की शिकायत की तो पुलिस कमिश्नर बिल्कुल परवाह ही नहीं करते होंगे। महिला डीसीपी का सम्मान ही सुरक्षित नही है तो आम महिला कहां सुरक्षित होगी।
माडल टाउन थाना इलाके में 26 मार्च को भूषण गुप्ता बोरिंग करा रहा था। पुलिस ने काम बंद करा दिया। इस सिलसिले में भूषण भतीजे सीए हर्षित गोयल के साथ थाने गया था। सबको मालूम है कि बोरिंग से पुलिस को मोटी कमाई होती है। भूषण पुलिस वालों से थाने के अंदर बात कर रहा था । हर्षित ने बताया कि वह बाहर फोन पर बात कर रहा था तभी पुलिस वालों ने उसके साथ बदतमीजी की.। जिसका विरोध करने पर कई पुलिस वालों ने उसकी पिटाई की। इस बात का पता चलने पर उसके पिता भी पहुंच गए। पुलिस वालों ने उसके पिता के साथ भी मारपीट की। मदद के लिए हर्षित ने 100 नंबर पर भी फोन किया। पुलिस सूत्रों ने बताया कि इसके बाद
एस एच ओ सतीश ने उसको झूठे मामले में फंसाने की कोशिश की।
उत्तर पश्चिमी जिला की पुलिस उपायुक्त असलम खान की जानकारी में यह मामला आया। दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद उन्होंने मामले की जांच विजिलेंस को करने को कहा है।
डीसीपी ने बोरिंग करने वाले के खिलाफ क़लंदरा भी बनवाया।
डीसीपी के समय रहते सही कार्रवाई के कारण एस एच ओ हर्षित को झूठे मामले में फंसाने में सफल नहीं हो पाया।
साफ छवि की असलम खान बेईमान आईपीएस अफसरों की भी अांख की किरकरी बनी हुई है। पुरूषवादी मानसिकता वाले बेईमान अफसरों ने तो पूरी कोशिश की थी कि असलम खान को जिला पुलिस उपायुक्त का पद न मिले।
अब देखिए थाने वालों के सीपी दफ्तर में कनेक्शन।
इसके बाद देवेन्द्र सिंह नामक व्यक्ति ने 26 मार्च को ही फेसबुक पर अपने साथी माडल टाउन थाने के पुलिस वालों को बचाने के लिए डीसीपी के खिलाफ ही आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी।अपने साथियों को बचाने के लिए अनुशासनहीनता की भी हद पार कर दी। उसने फेसबुक पर लिखा कि रईसजादे की शिकायत पर डीसीपी ने पुलिस वालों के खिलाफ ही जांच के आदेश दे दिए।डीसीपी ने उसे चाय भी पिलाई।
अब कोई हवलदार से पूछे कि उसको कैसे पता चला कि शिकायतकर्ता रईस है या उसे चाय पिलाई गई। जाहिर सी बात है कि शिकायतकर्ता के बारे में देवेंद्र को उन पुलिस वालों ने ही बताया होगा। जिनके ग़लत मंसूबों पर डीसीपी ने पानी फेर दिया।
इस पोस्ट पर अजय कुमार छोकर ने भी देवेंद्र के कमेंट का समर्थन किया है।
छानबीन में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई कि देवेंद्र सिंह हवलदार है और पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के कार्यालय में तैनात हैं अजय कुमार छोकर अपराध शाखा में तैनात हैं।
देवेंद्र ने बाद में पोस्ट हटा दी और फिर फेसबुक खाता ही बंद कर दिया।
डीसीपी को इस कमेंट का पता चल गया है यह जानकारी जाहिर सी बात है हवलदार को उसके दोस्त थाने वालों ने दी । जिसके बाद उसने वह पोस्ट हटा दी और फेसबुक पेज बंद कर दिया।
इस सारे मामले से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भ्रष्ट पुलिस वालों की आपस में इतनी सांठगांठ है कि डीसीपी ने फेसबुक कमेंट देख लिया इसकी जानकारी भी हवलदार को देकर सबूत मिटाने की कोशिश की गई।
लेकिन पोस्ट हटाए जाने से पहले ही उस कमेंट का फोटो ले कर सबूत सुरक्षित किया जा चुका था। यह सबूत पुलिस कमिश्नर को कई दिन पहले दे दिया गया।
इस कमेंट को देख कर कोई भी काबिल कमिश्नर हवलदार के खिलाफ कार्रवाई करने में तनिक भी देर नहीं लगाता। पुलिस कमिश्नर को तो तुरंत
हवलदार से पूछताछ और उसके मोबाइल फोन के रिकार्ड की जांच करा यह पता लगाना चाहिए था किस किस भ्रष्ट पुलिस वाले से हवलदार की सांठगांठ हैं। तभी यह भी पता चलता कि डीसीपी को बदनाम/ अपमानित करने की साज़िश में कौन-कौन पुलिस वाले शामिल हैं। लेकिन पुलिस कमिश्नर ने ऐसा कुछ भी नहीं किया।
कई दिन बाद भी हवलदार और एस एच ओ के खिलाफ कार्रवाई नहीं करना पुलिस कमिश्नर की काबिलियत और भूमिका पर सवालिया निशान लगाता है।
पुलिस मुख्यालय के सूत्रों ने बताया कि माडल टाउन एसएचओ सतीश के खिलाफ कार्रवाई के लिए पुलिस मुख्यालय को पहले भी लिखा गया था लेकिन उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई ।
ईमानदार आईपीएस अफसरों को इस मामले में एकजुट होकर कमिश्नर से एसएचओ समेत ऐसे पुलिस कर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करनी चाहिए। वर्ना एक दिन ऐसा आएगा कि भ्रष्ट पुलिस वाले इतने निरंकुश हो जाएंगे कि उनके साथ खुलेआम भी बदतमीजी करेंगे। ऐसे पुलिस वाले ही आम लोगों का भी जीना हराम करते हैं।
पुलिस कमिश्नर कमजोर, एस एच और हवलदार तक निरंकुश।
पुलिस कमिश्नर के कार्यालय में किस तरह के लोग तैनात हैं इससे अंदाजा लगाया जा सकता है। कई पुलिसवाले तो कई सालों से वहां तैनात हैं।
आईपीएस अफसरों ने पुलिस के पीआरओ ब्रांच का भी बंटाधार कर दिया।
पुलिस के पीआरओ ब्रांच में भी सालों से जमे पुलिस वाले निरंकुश हो गए हैं। ऐसा ही एक इंस्पेक्टर संजीव है जो पुलिस की प्रेस रिलीज के साथ ब्रह्मा कुमारी नामक निजी संस्था की बेवसाइट का लिंक भेज कर संस्था का सालों से प्रचार कर रहा था इस पत्रकार द्वारा पिछले साल यह मामला उजागर किया गया था। इस तरह से पुलिस कमिश्नर की नाक के नीचे निजी संस्था के प्रचार के लिए पद और पुलिस के संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है। निरंकुशता का आलम यह है कि किसी भी पत्रकार का नाम बिना वजह पुलिस के व्हाटस ऐप ग्रुप या ईमेल लिस्ट से हटा दिया जाता है। हाल ही में पत्रकार फरहान के भी साथ ऐसा किया गया है। पीआरओ विभाग द्वारा
पुलिस और मीडिया के रिश्तों को बेहतर बनाने की बजाय बिगाड़ने का काम किया जा रहा है।
पुलिस में पेशेवर पीआरओ के न होने के कारण ही दीपेंद्र पाठक और मधुर वर्मा ने अपने चहेते पत्रकारों के लिए अलग व्हाटस ऐप ग्रुप बना कर मीडिया से भेदभाव किया है। कोई भी काबिल और पेशेवर अफ़सर इस तरह मीडिया को बांटने की हरकत नहीं करता है। ऐसे अफसरों के कारण ही पीआरओ ब्रांच में तैनात पुलिस वाले निरंकुश हो गए।
इंस्पेक्टर संजीव हो या हवलदार देवेंद्र यह सब ऐसा दुस्साहस तभी कर पाते हैं जब अमूल्य पटनायक जैसे कमजोर पुलिस कमिश्नर होते हैं। पुलिस कमिश्नर दमदार होता तो दीपेंद्र पाठक और मधुर वर्मा भी मीडिया से इस तरह भेदभाव की हिम्मत नहीं कर सकते थे