इंद्र वशिष्ठ
बारूदी सुरंग रोधक वाहनों की कमी के कारण सुरक्षा बलों के जवान खतरनाक हालात में काम करते हुए जान गंवा रहे हैं। अरसा पहले इन वाहनों की जरूरत का न सिर्फ अंदाजा लगाया गया था बल्कि इनकी खरीद किए जाने पर सहमति और मंजूरी भी हो चुकी है। जो वाहन है भी वह ज्यादा शक्तिशाली बारूद के धमाके से बचाने में नाकाम है। जैसा हाल ही में छत्तीस गढ़ मेे हुआ, जिसमें नक्सलियों ने बारूदी सुरंग धमाके में भारी मात्रा में बारूद इस्तेमाल कर बारूदी सुरंग रोधक वाहन को ही उड़ा दिया। जवान शहीद हो गए।
इन माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल्स (एमपीवी) की कमी का सबसे ज्यादा नुकसान यदि किसी अर्ध सैनिक बल को हो रहा है तो वो है सीआरपीएफ, जो आतंकवाद प्रभावित राज्यों के अलावा माओवादियों के गढ़ में भी काम कर रही है। सीआरपीएफ के लिए 668 एमपीवी खरीदे जाने का प्रस्ताव मंजूर हुआ था लेकिन इस बल के पास महज 126 ऐसे वाहन हैं।
राज्यसभा में गृह राज्यमंत्री हंसराज गंगा राम अहीर ने बताया कि असम राइफल्स के लिए 92 की मंजूरी है लेकिन उसके पास सिर्फ 28 हैं। सीमा सुरक्षा बल(बीएसएफ) को 224 की जरूरत है जबकि इसके पास सिर्फ 24 एमपीवी है। वहीं भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के लिए 40 वाहन मंजूर हैं लेकिन अभी तक सिर्फ 50% यानि 20 ही हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के लिए 16 और सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के लिए 7 एमपीवी मंजूर किए गए हैं लेकिन अभी इनके पास तो एमपीवी है ही नहीं।
एक तरफ इन वाहनों की कमी है तो दूसरी तरफ माओवादी बारूदी सुरंग धमाकों की आक्रामकता बढाते जा रहे हैं। हालत यह है कि बारूदी सुरंग बिछे होने का अंदाजा होने के बावजूद सुरक्षा बलों को जोखिम उठाकर उन सड़कों से गुजरना पड़ता है। ये जवान साधारण वाहनों का इस्तेमाल करते हैं। कई बार तो ये अपनी बुलेटप्रूफ जैकेट ही वाहन के फर्श पर बिछा देते हैं ताकि धमाका होने की स्थिति में उसके असर को कम किया जा सके।
एमपीवी का महत्व सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह जाने भर का नहीं है। ऐसे वाहन का इस्तेमाल एम्बुलेंस और सुरक्षित बंकर के रूप में भी होता है।