आज 1.25 अरब भारतीयों को देश की राजधानी नई दिल्ली में आयोजित भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में 10 प्रतिष्ठित अतिथियों यथा आसियान राष्ट्रों के राजनेताओं की मेजबानी करने का गौरव प्राप्‍त होगा। गुरुवार को मुझे आसियान-भारत साझेदारी के 25 वर्षों का जश्‍न मनाने के अवसर पर आयोजित स्मारक शिखर सम्मेलन के लिए आसियान के राजनेताओं की मेजबानी करने का सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ था। हमारे साथ उनकी उपस्थिति आसियान राष्‍ट्रों की ओर से अभूतपूर्व सद्भाव को परिलक्षित करती है। इस सद्भाव पर सौम्‍य प्रतिक्रियास्‍वरूप सर्दियों के इस मौसम में भारत ने आज प्रात: गर्मजोशी भरी मित्रता का परिचय देते हुए उनका सम्‍मानपूर्वक स्‍वागत किया है।
यह कोई सामान्य आयोजन नहीं है। यह उस उल्लेखनीय यात्रा में ऐतिहासिक मील का पत्थर है जिसने भारत और आसियान को अपने 1.9 अरब देशवासियों यानी दुनिया की लगभग एक-चौथाई आबादी के लिए अत्‍यंत अहम वादों से भरी आपसी साझेदारी के एक सूत्र में बांध दिया है। भारत-आसियान साझेदारी भले ही सिर्फ 25 साल पुरानी हो, लेकिन दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत के रिश्‍ते दो सहस्राब्दियों से भी अधिक पुराने हैं। शांति एवं मित्रता, धर्म व संस्कृति, कला एवं वाणिज्य, भाषा और साहित्य के क्षेत्रों में अत्‍यंत प्रगाढ़ हो चुके ये चिरस्थायी रिश्‍ते अब भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया की शानदार विविधता के हर पहलू में मौजूद हैं जिससे हमारे लोगों के बीच सहूलियत और अपनेपन का एक अनूठा आवरण बन गया है।

दो दशक से भी अधिक समय पहले भारत ने व्‍यापक बदलावों के साथ दुनिया के लिए अपने दरवाजे खोल दिए थे और विगत सदियों के दौरान विकसित सहज रुझान से प्रेरित होकर वह स्‍वाभाविक रूप से पूरब की ओर उन्‍मुख हो गया। इस प्रकार पूरब के साथ भारत के एकीकरण की एक नई यात्रा शुरू हुई। भारत की दृष्टि से हमारे ज्‍यादातर प्रमुख साझेदार और बाजार यथा आसियान एवं पूर्वी एशिया से लेकर उत्तरी अमेरिका तक दरअसल पूरब की ओर ही अवस्थित हैं। यही नहीं, भूमि एवं समुद्री मार्गों से जुड़े हमारे पड़ोसी यथा दक्षिण-पूर्व एशिया और आसियान हमारी ‘लुक ईस्ट’ नीति एवं पिछले तीन वर्षों से हमारी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के तहत ऊंची कारोबारी छलांग लगाने में अत्‍यंत मददगार साबित होते रहे हैं।

आसियान और भारत इसके साथ ही संवाद करने वाले साझेदारों के बजाय अब रणनीतिक साझेदार बन गए हैं। हम 30 व्‍यवस्‍थाओं के जरिए व्यापक आधार वाली आपसी साझेदारी को आगे बढ़ा रहे हैं। आसियान के प्रत्येक सदस्‍य देश के साथ हमारी राजनयिक, आर्थिक और सुरक्षा साझेदारी बढ़ रही है। हम अपने समुद्रों को सुरक्षित और निरापद रखने के लिए मिलकर काम करते हैं। हमारा व्यापार और निवेश प्रवाह कई गुना बढ़ गया है। आसियान भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और भारत आसियान का सातवां सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। भारत द्वारा विदेश में किए जाने वाले निवेश का 20 प्रतिशत से भी अधिक हिस्‍सा आसियान के ही खाते में जाता है। सिंगापुर की अगुवाई में आसियान भारत का प्रमुख निवेश स्रोत है। इस क्षेत्र में भारत द्वारा किए गए मुक्त व्यापार समझौते अपनी तरह के सबसे पुराने समझौते हैं और किसी भी अन्‍य क्षेत्र की तुलना में सबसे महत्वाकांक्षी हैं।

हवाई संपर्कों का अत्‍यंत तेजी से विस्तार हुआ है और हम नई अत्यावश्यकता एवं प्राथमिकता के साथ महाद्वीपीय दक्षिण-पूर्व एशिया में काफी दूर तक राजमार्गों का विस्तार कर रहे हैं। बढ़ती कनेक्टिविटी के परिणामस्‍वरूप आपसी सान्निध्य और ज्‍यादा बढ़ गया है। यही नहीं, इसके परिणामस्‍वरूप दक्षिण-पूर्व एशिया में पर्यटन के सबसे तेजी से बढ़ते स्रोतों में अब भारत भी शामिल हो गया है। इस क्षेत्र में रहने वाले 6 मिलियन से भी अधिक प्रवासी भारतीय, जो विविधता में निहित और गतिशीलता से ओत-प्रोत हैं, हमारे लोगों के बीच आपसी मानवीय जुड़ाव बढ़ाने की दृष्टि से अद्भुत हैं।  

प्रधानमंत्री ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान के प्रत्‍येक देश के बारे में अपने विचार इस प्रकार साझा किये हैं।

थाईलैंड

थाईलैंड आसियान देशों में से एक महत्‍वपूर्ण व्‍यापारिक साझेदार के रूप में उभर कर सामने आया है और भारत में निवेश करने वाले महत्‍वपूर्ण देशों में से एक है। भारत और थाईलैंड के बीच द्विपक्षीय व्‍यापार पिछले दशक में बढ़कर दुगने से अधिक हो गया है। दोनों देशों के संबंध कई क्षेत्रों में विस्‍तृत रूप से फैले हुए हैं। हम दक्षिण और दक्षिण-पूर्व को जोड़ने वाले महत्‍वपूर्ण क्षेत्रीय साझेदार हैं। हम आसियान, पूर्वी एशिया शिखर सम्‍मेलन और बिमस्‍टेक (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी के देशों के संगठन) में घनिष्‍ठ सहयोगी तो हैं ही, मीकांग-गंगा सहयोग, एशिया सहयोग वार्ता और हिन्‍द महासागर के तटवर्ती देशों के संगठन में भी साझेदार हैं। 2016 में थाईलैंड के प्रधानमंत्री की भारत की राजकीय यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों में दीर्घकालीन असर पड़ा।   

थाईलैंड के महान और जनप्रिय नरेश भूमिबोल अदुल्‍यदेज के देहांत पर पूरा भारत थाईलैंड के अपने भाई-बहनों के साथ शोकमग्‍न हो गया था। अपने थाई मित्रों के साथ भारत के लोगों ने भी नये नरेश महामहिम महा वाजिरालोंगकोर्न बोदी‍न्द्रदेबायावारांगकुन के खुशहाल और शांतिपूर्ण शासन के लिए प्रार्थना की।

वियतनाम

भारत के वियतनाम के साथ परम्‍परागत रूप से घनिष्‍ठ और सद्भावपूर्ण संबंधों की जड़ें विदेशी शासन से मुक्ति के लिए एक जैसे संघर्ष और राष्‍ट्रीय स्‍वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हैं। महात्‍मा गांधी और राष्‍ट्रपति हो चि मिन्‍ह जैसे महान नेताओं ने उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई में देशवासियों को ऐतिहासिक नेतृत्‍व प्रदान किया। 2007 में वियतनाम के प्रधानमंत्री एंगुयेन तान डुंग की भारत यात्रा के दौरान हमने सामरिक साझेदारी समझौते पर दस्‍तखत किये। 2016 में मेरी वियतनाम यात्रा से इस सामरिक साझेदारी ने समग्र सामरिक साझेदारी का रूप ले लिया।

वियतनाम के साथ भारत के संबंध बढ़ते हुए आर्थिक और वाणिज्यिक संपर्कों को रेखांकित करते हैं। भारत और वियतनाम के बीच द्विपक्षीय व्‍यापार दस वर्षों में करीब 10 गुना बढ़ गया है। रक्षा सहयोग भारत और वियतनाम के बीच सामरिक साझेदारी के महत्‍वपूर्ण आधार स्‍तंभ के रूप में उभर कर सामने आया है। विज्ञान और टेक्‍नोलाजी दोनों देशों के बीच सहयोग का एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण क्षेत्र है।

म्‍यांमार

भारत और म्‍यांमार के बीच 1600 किलोमीटर से ज्यादा लंबी साझा जमीनी और समुद्री सीमा है। हमारे बीच मित्रता की जड़ें धार्मिक और सांस्‍कृतिक परम्‍पराओं में निहित हैं और हमारी साझा बौद्ध बिरासत हमें उतने ही घनिष्‍ठ रूप से बांधे हुए है जितना पुराना हमारा ऐतिहासिक अतीत है। भला इस मित्रता को श्‍वेडगोन पगोडा की लगमगाती मीनार से अधिक भव्‍य तरीके से कौन उजागर कर सकता है। भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण की मदद से बेगान के आनंद मंदिर का जीर्णोद्धार भी मित्रता की इस साझी बिरासत का द्योतक है।

औपनिवेशिक युग में हमारे नेताओं के बीच राजनीतिक संबंध बने थे और उन्‍होंने आजादी की साझा लड़ाई में बड़ी उम्‍मीदों और एकता का प्रदर्शन किया। गांधीजी ने कई बार यांगून का दौरा किया था। बालगंगाधर तिलक को तो कई साल के लिए यांगून भेजकर देश निकाला दे दिया गया था। भारत की आजादी के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान ने म्‍यांमार में बहुत से लोगों को उद्वेलित कर दिया था।   

पिछले दशक में हमारा व्‍यापार दुगने से भी ज्‍यादा बढ़ गया है। हमारे निवेश संबंध भी काफी सुदृढ़ हुए हैं। म्‍यांमार के साथ भारत के संबंधों में विकास संबंधी सहयोग की महत्‍वपूर्ण भूमिका है। फिलहाल भारत की ओर से सहायता राशि 1.73 अरब डालर से अधिक है। भारत का पारदर्शी विकास सहयोग म्‍यांमार की राष्‍ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार है जिसका आसियान से जुड़ने के मास्‍टर प्‍लान यानी वृहद योजना के साथ पूरा तालमेल है।  

सिंगापुर

सिंगापुर, इस क्षेत्र के साथ भारत के संबंधों की विरासत के झरोखे, वर्तमान की प्रगति और भविष्‍य की संभावनाओं तरह है। सिंगापुर भारत और आसियान के बीच एक पुल की तरह है।

आज यह पूर्व के साथ हमारे प्रवेश का मुख्‍य मार्ग है, यह हमारा प्रमुख आर्थिक साझेदार है और महत्वपूर्ण सामरिक सहयोगी भी है जिसकी झलक कई क्षेत्रीय और वैश्विक मंचों में हमारी सदस्‍यता से परिलक्षित होती है। सिंगापुर और भारत सामरिक सहयोगी भी हैं।

हमारे राजनीतिक संबंध सद्भाव, सौहार्द और भरोसे पर टिके हुए हैं। हमारे रक्षा संबंध दोनों के सुदृढ़तम रक्षा संबंधों में से हैं।

हमारी आर्थिक साझेदारी में दोनों देशों की प्राथमिकताओं का प्रत्येक क्षेत्र शामिल है। सिंगापुर भारत का प्रमुख गंतव्‍य और निवेश स्रोत है।

हजारों भारतीय कंपनियां सिंगापुर में पंजीकृत हैं।

16 भारतीय शहरों से सिंगापुर के लिए सप्‍ताह में 240 सीधी उड़ानें उपलब्ध हैं। सिंगापुर की यात्रा करने वाले पर्यटकों की संख्‍या की दृष्टि से भारतीय पर्यटक समूह तीसरे स्‍थान पर है।

सिंगापुर की विविधतापूर्ण संस्‍कृति भारत के लिए प्रेरणास्‍पद है। प्रतिभा का सम्‍मान करने की भावना की वजह से वहां भारतीयों की उपस्थिति बड़ी जीवंत और गतिशील है और ये लोग दोनों राष्‍ट्रों की घनिष्‍ठता बढ़ाने में योगदान कर रहे हैं।     

फिलीपींस

करीब दो महीने पहले अपनी फिलीपींस यात्रा करने पर मुझे बड़ा संतोष हुआ था। आसियान-भारत, ईएएस और इनसे संबंधित शिखर सम्‍मेलनों में भाग लेने के अलावा मुझे राष्‍ट्रपति दुतेर्ते से मुलाकात का सुअवसर मिला और हमने अपने घनिष्‍ठ और समस्‍यामुक्‍त संबंधों को आगे बढ़ाने पर चर्चा की। दोनों देश सेवा के क्षेत्र में मजबूत हैं और हम सबसे ऊंची विकासदर वाले दुनिया के प्रमुख देशों में शामिल हैं। व्‍यापार और कारोबार की हमारी क्षमताओं की वजह से हमारे सामने अनेक संभावनाएं हैं।

मैं समावेशी विकास लाने और भ्रष्‍टाचार से संघर्ष के बारे में राष्‍ट्रपति दुते‍र्ते की वचनबद्धता की सराहना करता हूं। ये ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें दोनों देश मिल कर कार्य कर सकते हैं। हमें यूनीवर्सल आईडी कार्ड, वित्‍तीय समावेशन, बैंकिंग को सबकी पहुंच के दायरे में लाने, प्रत्‍यक्ष लाभ अंतरण और नकदी विहीन लेन-देन को बढ़ावा देने के बारे में अपने अनुभवों को फिलीपींस के साथ साझा करने में बड़ी प्रसन्‍नता हो रही है। सभी को वाजिब दामों पर दवाएं उपलबध कराना फिलीपींस सरकार की प्राथमिकता का एक अन्‍य विषय है और हम इसमें योगदान करने को तैयार हैं। मुंबई से मरावी तक आतंकवाद ने किसी को नहीं बख्‍शा है। इस साझा चुनौती से निबटने में हम फिलीपींस के साथ सहयोग बढ़ा रहे हैं।

मलेशिया

भारत और मलेशिया के बीच समसामयिक संबंध काफी विस्‍तृत हैं और कई क्षेत्रों में फैले हुए हैं। मलेशिया और भारत सामरिक साझेदार हैं और कई बहुपक्षीय तथा क्षेत्रीय मंचों में भी सहयोगी हैं। 2017 में मलेशिया के प्रधानमंत्री की भारत की राजकीय यात्रा हमारे द्विपक्षीय संबंधों पर गहरा असर डाला है।

आसियान में मलेशिया भारत के तीसरे सबसे बड़े व्‍यापारिक साझेदार के रूप में उभर कर सामने आया है और भारत में निवेश करने वाला आसियान देशों में से महत्‍वपूर्ण निवेशक है। पिछले दस वर्षों में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्‍यापार दुगने से ज्‍यादा बढ़ गया है। 2011 से भारत और मलेशिया के बीच विस्‍तृत द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग समझौता है। यह समझौता इस अर्थ में अनोखा है कि इसने सामान के व्‍यापार के क्षेत्र में आसियान से कही अधिक वचनबद्धाओं वाला प्रस्‍ताव किया और सेवाओं के विनिमय में डब्‍ल्‍यूटीओ से भी अधिक के प्रस्‍ताव किये। दोनों देशों के बीच दोहरे कराधान को रोकने के संशोधित समझौते पर मई 2012 में दस्‍तखत किये गये और सीमा शुल्‍क के क्षेत्र में सहयोग के लिए 2013 में समझौता हुआ जिसने हमारे व्‍यापार और निवेश सहयोग को और भी सुविधाजनक बना दिया है।     

 

ब्रूनेई

भारत और ब्रूनेई के बीच द्विपक्षीय व्‍यापार पिछले दशक में दुगने से ज्यादा हो गया है। भारत और ब्रूनेई संयुक्‍त राष्‍ट्र, गुट निरपेक्ष आंदोलन (नाम), राष्‍ट्रमंडल, एआरएफ आदि संगठनों के साझा सदस्‍य हैं। विकासशील देशों के रूप में मजबूत पारम्‍परिक और सांस्‍कृतिक संबंधों के साथ प्रमुख अंतर्राष्‍ट्रीय विषयों पर ब्रूनेई और भारत के विचारों में काफी हद तक समानता है। 2008 में ब्रूनेई के सुल्‍तान की भारत यात्रा दोनों देशों के संबंधों में एक मील का पत्‍थर साबित हुई। भारत के उपराष्‍ट्रपति ने फरवरी 2016 में ब्रूनेई का दौरा किया।  

 

लाओ पीडीआर

भारत और लाओ पीडीआर के बीच संबंध व्यापक रूप से कई क्षेत्रों में फैले हुये हैं। भारत लाओ पीडीआर के विद्युत वितरण एवं कृषि क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहा है। आज, भारत और लाओ पीडीआर अनेक बहुपक्षीय और क्षेत्रीय मंचों पर सहयोग करते हैं।

यद्यपि भारत और लाओ पीडीआर के बीच व्यापार संभावनाओं से कम है लेकिन भारत ने लाओ पीडीआर से भारत में निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिये लाओ पीडीआर को ड्यूटी फ्री टैरिफ प्रेफरेंस स्कीम की सुविधा प्रदान की हुई है। हमारे पास सेवा क्षेत्र में अपार संभावनायें जो कि लाओ पीडीआर की अर्थव्यवस्था के निर्माण में काम आती हैं। आसियान-भारत सेवा और निवेश समझौते का लागू होना सेवा क्षेत्र में हमारे व्यापार को बढ़ाने में मदद करेगा।

इंडोनेशिया

हिंद महासागर में केवल 90 समुद्री मील की दूरी पर स्थित भारत और इंडोनेशिया दो