गुजरात भारत नहीं है लेकिन गुजरात का चुनाव देश की सियासत के लिए महत्वपूर्ण है। सिर्फ इसलिए नहीं की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राज्य है बल्कि इसलिए की यह चुनाव जीएसटी , नोटबदली को लेकर भाजपा के लिए परीक्षा की घड़ी के समान है। गुजरात में भाजपा के बाद कांग्रेस ही नजर आती है। इसलिए इस चुनाव की महत्ता से इंकार नहीं किया जा सकता। याद किजिए नब्बे के दशक का वह दौर जब गुजरात की राजनीति में बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई। भाजपा के सत्ता में आने के बाद कांग्रेस गुजरात में वापसी न कर सकी। जब नरेंद्र मोदी गुजरात की सियासत के सिरमौर बने तब कांगे्रस और हाशिए पर चली गयी। 2001 के बाद तो गुजरात में भाजपा परचम लहराती गयी। कांग्रेस का कुनबा कमजोर होता गया। 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजरी। एक भी सीट नहीं जीत पायी। लेकिन सिर्फ इस आधार पर कांग्रेस को दरकिनार भी नहीं किया जा सकता। चुनावी गणित में 2002 , 2007 और 2012 के चुनाव में कांगे्रस की उपस्थिति ठीक ठाक थी। यही पहलू उसे लड़ाई में शामिल करती है।
अब गुजरात का सियासी घमासान अपने चरम पर है। सीडी कांड समेत अन्य घटनाएं यह बयां करने के लिए काफी है कि लड़ाई आर - पार की है। यह चुनाव अपने साथ कई सवालों को साथ लेकर चल रहा है। मसलन मोदी की लोकप्रियता , केंद्र सरकार के फैसले , पाटीदार समाज का निर्णय और भी बहुत कुछ। राजनीतिक दलों के लिए यह चुनाव 2019 के लिए के लिए एक मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने का भी मौका है।
2014 से पहले 2012 तक कांग्रेस ठीक ठाक हालत में थी। अब 2017 में स्थितियां अलग है। नरेंद्र मोदी अब कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती हैं। कांग्रेस का एक भी लोकसभा सांसद गुजरात में नहीं है। अब देश की राजनीति नरेंद्र मोदी बनाम विपक्ष है। यह स्पष्ट है कि कांग्रेस की राह आसान नहीं है।
फिलहाल कांग्रेस नेतृत्व के संकट से भी जूझ रही है। मोदी के मुकाबले न कोई ऐसा चेहरा है जिसके बलबूते जनता को रिझाया जा सके न ही गुजरात में कोई बड़ा चेहरा है। गुजरात में कांग्रेस की रीढ माने जाने वाले शंकर सिंह बाघेला भी अब कांग्रेस में नहीं हैं। कांग्रेस के लिए मुश्किलें बहूत हैं।
कांग्रेस हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी जैसे चेहरे पर दांव खेल रही है। कांग्रेस को इससे लाभ होगा या नुकसान यह चुनाव परिणाम बतायेगा लेकिन फिलहाल इन चेहरों से बीजेपी भी परेशान दिख रही है। सीडी कांड इसी का परिणाम कहा जा सकता है। पिछले कुछ दिनों के प्रकरणों ने चुनाव मैदान को रणक्षेत्र के रूप् में बदल दिया है।
कांग्रेस के पास चेहरे का आभाव है इसलिए कांग्रेस को संगठन पर विष्वास जताना चाहिए। क्योंकि यदि चुनाव चेहरा पर लड़ा गया तो बीजेपी आगे दिखती है। क्योंकि अमित शाह , नरेंद्र मोदी दोनों गुजरात से हैं और उनका कद काफी बड़ा हो चुका है। भाजपा में विजय रूपानी का भी कोई विरोध नहीं है। चेहरा और संगठन के मामले में बीजेपी बीस है। जहां तक पाटीदार राजनीति की बात है तो बीजेपी के 40 विधायक , 6 सांसद , सात मंत्री पटेल समुदाय से संबंध रखते हैं। पाटीदार राजनीति का भी जवाब बीजेपी के पास तैयार है।
अगर पाटीदार, पटेल, अल्पसंख्यक और दलित सभी कांग्रेस के पक्ष में आते है तभी चुनाव कांटे का होगा। वरना नरेंद्र मोदी और अमित शाह को उन्हीं के घर में घेरना कांग्रेस के लिए फिलहाल मुश्किल प्रतीत होता है। यह चुनाव राहुल गांधी को खुद को साबित करने का भी मौका है। वर्तमान परिस्थितियों के आधार पर यही कहा जा सकता है कि भाजपा की स्थिति मजबूत नजर आ रही है। बाकी वक्त बीतने के साथ स्पष्ट होता चला जायेगा।