इंद्र वशिष्ठ (वरिष्ठ पत्रकार)
मोदी पर मीडिया की आज़ादी पर हमला करने का आरोप लगाने वाले मठाधीश ही मीडिया के पतन के लिए जिम्मेदार है।अपने स्वार्थ के लिए मठाधीश कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के दरबार में मुजरा और राग दरबारी  गाकर ईनाम बटोरने में लगे रहते हैं। मौसेरे भाइयों की तरह यह अपने भ्रष्टों को बचाते हैं। शोषित, पीड़ित, प्रताड़ित   मजीठिया के कारण बेरोजगार होने वाले पत्रकारों या मजीठिया दिलाने के लिए या ईमानदार पत्रकारों के लिए ये मठधीश कभी ऐसे आवाज नहीं उठाते जैसी धोखाधड़ी के आरोपी एनडीटीवी के प्रणय रॉय के लिए उठाई। हालांकि कांग्रेस और नौकरशाहों की गोद में पले बढ़े  बाबू मोशाय की अपने आपराधिक मामले को मीडिया की आज़ादी पर हमले का रुप देने की साज़िश फेल हो गई  थी  और उनकी  वह खाप पंचायत  मोदी का स्यापा बन कर रह गई थी। मठाधीश किसी पत्रकार की हत्या पर भी यह उसकी हैसियत के हिसाब से विरोध प्रर्दशन करते हैं। यह सब भी प्रचार और फोटो सेशन जैसा बन कर रह जाता है। हत्या होते ही नेताओं की तरह यह इतनी ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ जल्दी यह भी बता देते हैं कि हत्या में किसका हाथ है और हत्या का मकसद क्या है। ऐसे जेम्स बांड पत्रकार और बयान बहादुर नेताओं को तो पुलिस को नोटिस देकर तफ्तीश में मदद के लिए  बुलाना चाहिए। अगर ये मदद नहीं करते तो माऩा जाना चाहिए कि ये लोग अपराधी के बारे में सुराग न देकर उसकी मदद कर रहे हैं। इनके साथ वैसा ही सलूक किया जाना चाहिए जैसा अपराधी के ‌बारे सूचना छिपाने वाले  आम आदमी के साथ किया जाता है।
ये ‌मठाधीश सरकारी जमीन‌ कब्जाने, धोखाधड़ी और वसूली, यौन शोषण जैसे संगीन अपराध तक करते हैं। भ्रष्टाचार के मामले में ये मठाधीश सरकार से कभी यह मांग नहीं करते कि वह एक तय समय में पत्रकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप की जांच कराए।ये सिर्फ उसे मीडिया की आज़ादी पर हमले का रुप देने की कोशिश करते हैं।  ईमानदारी से पत्रकारिता करने वाले को ऐसे ही मठाधीशों के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं। मेरे साथ जो हुआ उससे साफ़ है कि मीडिया के मठाधीशों के गुंडे किस स्तर तक गिर जाते हैं। मेरे साथ जो हुआ वह ही असल में मीडिया की आज़ादी , और सम्मान पर हमला है इसके लिए मीडिया के मठाधीश जिम्मेदार है जिन्होंने ऐसे गुंडों को पाला हुआ है। सरकार भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे मठाधीशों के  मामले में कोई कार्रवाई न करें इसलिए कोई मठधीश तलुए चाट कर बच जाता है तो कोई उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, चोरी और सीनाजोरी का तरीका अपना कर धौंस से बचने की कोशिश करता है।
पुलिस के आईपीएस पीआरओ मधुर वर्मा के दफ्तर की साज सज्जा पर लोगों के टैक्स के लाखों रुपए बर्बाद करने को उजागर करना दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को ही नहीं मीडिया के दलालों को भी  बर्दाश्त नहीं हुआ। इसके अलावा आईपीएस पीआरओ द्वारा अशुद्ध हिंदी वाला संदेश टि्वट करने को उजागर करने से भी ये  बौखला गए। इसलिए मीडिया के दलाल गुंडागर्दी तक  पर उतर आए। हाल ही मैंने दिल्ली पुलिस की पोल खोलने वाली अनेक खबरें की है जिनमें प्रमुख हैं(1) पुलिस अपराध के 75 मामले सुलझाने  में विफल रही, फिर भी गृहमंत्री ने संसद में पुलिस को शाबाशी दी।(2)अपराध पीड़ित की रिपोर्ट दर्ज न करके लुटे पिटे पीड़ित को  भी  धोखा देती है पुलिस।  जिसमें  मैंने आंकड़ों से यह साबित भी  किया कि आज तक सिर्फ भीम सेन बस्सी और वीएन सिंह ने ही ईमानदारी से यह कोशिश की थी कि अपराध के मामले में सही एफआईआर दर्ज की जाए।(3)  दिल्ली में मोबाइल फोन छीनने, चोरी, खोने की 11 लाख वारदात में से पुलिस महज़ सात  हजार मोबाइल ही बरामद कर पाई है   इनमें से साढ़े नौ लाख मामले तो पिछले डेढ़ साल के ही हैं। इसके अलावा महिलाएं दिल्ली में भी सुरक्षित नहीं जैसी ख़बर भी की है।सभी खबरें पुलिस के आंकड़ों के साथ की है। ऐसा नहीं है कि मैंने यह सिर्फ अमूल्य पटनायक के कमिश्नर बनने के बाद किया है पिछले करीब तीन दशक से मैं उपरोक्त मुद्दे के साथ पुलिस के अत्याचार के शिकार लोगों की खबर भी प्रमुखता से लिखता रहा हूं। इस बात पर किसी को रती भर भी शक हो तो कृपया मेरे नाम से ही बने मेरे  ब्लॉग को देख लेना। वैसे मैं किस तरह की क्राइम रिपोर्टिंग करता रहा हूं यह आईपीएस अफसर और क्राइम रिपोर्टर रह चुके आज़ के कई संपादक  समेत सभी जानते हैं।  पूर्व कमिश्नर एम बी कौशल, निखिल कुमार, से लेकर आज तक मैंने बेबाकी से लिखा है। आईपीएस दीपक मिश्रा के बम धमाकों के मामले सुलझाने के झूठे दावे की पोल खोलने, सत्येंद्र गर्ग द्वारा महंगी विदेशी पिस्तौल उपहार में लेने  मुक्तेश चंद्र द्वारा बलात्कार पीड़िता विदेशियों की पहचान उजागर करने का मामला, मैक्सवेल परेरा द्वारा वाइन बना कर बेचने का मामला हो या नीरज ठाकुर द्वारा लूट के मामलों को चोरी में दर्ज करने के मामले हो। मेरे द्वारा मामला उजागर करने पर सत्येंद्र गर्ग और मुक्तेश चंद्र को तो जिला डीसीपी के पद से भी हटाया गया। इनमें से सत्येंद्र गर्ग को छोड़ कर सबसे अच्छे संबंध रहे।  बीएस बस्सी द्वारा अपराध की सही एफआईआर दर्ज कराने की ईमानदार कोशिश , नीरज कुमार द्वारा अवैध हथियार पर रोक के लिए कराई  गई स्टडी पर तो मैंने हाल में भी लेख लिखा है। लेकिन  किसी पुलिस अफसर या किसी पत्रकार ने कभी ऐसी गिरी हुई हरकत नहीं की जैसी मीडिया के दलालों और पुलिस अफसरों ने की। जबकि हर अफ़सर के चहेते/चापलूस पत्रकार हमेशा होते हैं।  लेकिन बेशर्मी की हद पार कर अफसरों के सामने चापलूसी के लिए   मीडिया के दलालों ने  मेरे खिलाफ अभ्रदता उस ख़बर को लेकर की जिसे पुलिस प्रवक्ता ने अपने बयान में भी सही माना हैं।


लेकिन मीडिया के मठाधीशों को यह  आजादी पर हमला नहीं लगेगा । मीडिया के मठाधीश सिर्फ एनडीटीवी के खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज धोखाधड़ी के आपराधिक  मामले को मीडिया की आज़ादी पर हमले का रुप देने के लिए प्रेस क्लब में खाप पंचायत कर मोदी को कोसते की राजनीति ही करते हैं।मीडिया को सीढ़ी बना कर सत्ता सुख भोगने वाले अरुण शौरी, कुलदीप नैयर,एच के दुआ और इनकी पंचायत में शामिल और  कानून के तुर्रम खां फली नरीमन समेत इन सब से पूछना चाहता हूं कि  ख़बर से पोल खोलने वाले पत्रकार से अभ्रदता, मानहानि मीडिया की आजादी पर हमला होता है या धोखाधड़ी के आपराधिक मामले के आरोपी प्रणय रॉय के खिलाफ सीबीआई का कार्रवाई करना मीडिया की आज़ादी पर हमला होता है। मोदी पर मीडिया की आज़ादी पर हमले का  आरोप लगाने वाले  मठाधीशों मेरे साथ तो  उस एनडीटीवी के मुकेश सेंगर ने भी अभ्रदता  कि जिसके बाबू मोशाय की  हिमायत में आपने खाप पंचायत की  थी। जुबां पर सच दिल में इंडिया का ढोंग करने वाले कांग्रेस और नौकरशाहों की गोद में पले बढ़े एनडीटीवी के प्रणय रॉय के भक्त मुकेश सेंगर के अनुसार तो मुझे आईपीएस पीआरओ द्वारा साज सज्जा पर सरकारी खजाने से लोगों के टैक्स के लाखों रुपए बर्बाद करने की खबर ही नहीं लिखनी चाहिए थी।


 मानहानि और मीडिया की आज़ादी पर हमला करने वाले भांड--- सुमित सिंह डीएनए,  अतुल भाटिया, जितेंद्र शर्मा इंडिया टीवी , मुकेश सेंगर एनडीटीवी, रुमान उल्ला खान न्यूज़ नेशन, वरुण जैन, मोहित ओम इंडिया न्यूज़,प्रियांक त्रिपाठी टाइम्स नाउ, प्रमोद शर्मा जी न्यूज़, राहुल शुक्ला,विनय सिंह न्यूज़ 24, रवि जलहोत्रा, राकेश सिंह दैनिक जागरण आदि। यह भी स्पष्ट बता दूं कि इनमें कई को तो मैं पहचानता भी नहीं और बाकी को सिर्फ पहचानता हूं। ऐसे में मेरा इनसे कोई निजी बैर होने का तो सवाल ही नहीं उठता। इनमें से एक ने तो यहां तक  कहा कि ख़बर लिखने की बजाय पीआरओ से मिल कर गलती सही करानी चाहिए थी। पुलिस के तलुए चाटने में इन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी।जब मैंने इन सब पर गौर किया तो कड़ियां जुड़ती गई और पूरी साजिश समझ में आ गई। यह वही मुकेश सेंगर है जिसके मालिक प्रणय रॉय के खिलाफ बैंक से 48 करोड़ की धोखाधड़ी के आरोप में सीबीआई ने मामला दर्ज किया हुआ है।प्रणय रॉय ने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को मीडिया की आज़ादी पर हमला बता कर मोदी पर आरोप लगाने की असफल कोशिश की थी। उस समय मैंने मीडिया मठाधीशों प्रणय रॉय , जबरन वसूली के आरोपी सांसद सुभाष चंद्र गोयल, सुधीर चौधरी, सुब्रत राय सहारा,रजत शर्मा, चंदन मित्रा, सरकारी जमीन कब्जाने वाले पंजाब केसरी के भाजपा सांसद  अश्विनी कुमार मिन्ना, यौन शोषण के आरोपी तरुण तेजपाल, फौजियों से मारपीट के आरोपी दीपक चौरसिया, राज़दीप सरदेसाई , शेखर गुप्ता,अर्णब गोस्वामी के अलावा  एच के दुआ, अरुण शौरी और कुलदीप नैयर जैसे राजसुख भोगने वालों को आईना दिखाना वाले कई लेख लिखें थे। इसके बाद टाइम्स आफ इंडिया के  संपादक दिवाकर और अरुण जेटली के नापाक गठजोड़ पर भी लिखा था। एनडीटीवी के बारे में तो जगजाहिर है कि वह तो ब्यूरोक्रेट और कांग्रेस की गोदी में पला-बढ़ा है।  प्रणय रॉय के खिलाफ तो 1998 में भी दूरदर्शन से जालसाजी धोखाधड़ी का मामला दर्ज हुआ था  लेकिन कांग्रेस के संरक्षण के कारण प्रणय रॉय का कुछ नहीं बिगड़ा। सीबीआई में रहे एक आईपीएस अफसर ने बताया कि  सरकार के दबाव के कारण सीबीआई ने प्रणय रॉय के खिलाफ केस  बंद करने के लिए  कोर्ट में कई बार रिपोर्ट दी। लेकिन इस मामले में इतने सबूत प्रणय आदि के खिलाफ थे कि जज ने हर बार सीबीआई की केस क्लोज करने की रिपोर्ट को नहीं माना और सीबीआई को सही तरीके से तफ्तीश करने को कहा। मोदी सरकार को इस मामले में कांग्रेस के समय में  क्या क्या हुआ और सीबीआई ने किसके इशारे पर यह केस रफा दफा किया  यह असलियत उजागर करनी चाहिए। यह भी बताना चाहिए सीबीआई में कुल कितने केस आज़ तक प्रणय रॉय के खिलाफ दर्ज हुए थे और उनमें क्या कार्रवाई हुई।


मानहानि करने वाले गिरोह के सरगना सुमित सिंह , प्रमोद शर्मा तो उस जी न्यूज़ गिरोह के है जिसके सरगना सुभाष चंद्र गोयल और संपादक सुधीर चौधरी पर  नवीन जिंदल से 100 करोड़ की वसूली के आरोप में  दिल्ली पुलिस ने केस दर्ज किया हुआ है सुधीर तो जेल भी जा चुका है।यह वही सुधीर चौधरी हैं जिसने लाइव इंडिया चैनल में  टीचर उमा खुराना पर वेश्यावृत्ति का धंधा कराने की झूठी खबर दिखाई।निकम्मी पुलिस ने भी बिना तफ्तीश के उमा को जेल भेज दिया और बाद में जांच की तो पाया कि ख़बर झूठी थी।इस मामले में पुलिस ने सिर्फ रिपोर्टर को गिरफ्तार कर सुधीर चौधरी को आगे बड़ा अपराध करने का मौका दिया।इस मामले की फाइल देख चुके एक अफ़सर ने भी माना कि सुधीर को उमा मामले में बचाया गया। अब बात अरुण जेटली को ईमानदारी का सर्टिफिकेट देने वाले रजत शर्मा की पिछले दिनों मेडिकल कॉलेज में दाखिला करने की मंत्री से मंजूरी दिलाने के लिए दो करोड़ रिश्वत लेने वाले बाप बेटे को सीबीआई ने गिरफ्तार किया। इन्होंने किसी हेमंत शर्मा नामक दलाल के लिए  यह रकम ली थी। लेकिन सीबीआई ने उसे गिरफ्तार नहीं किया। इसके बाद रजत शर्मा ने  हेमंत शर्मा को चैनल से निकाल कर खुद को ईमानदार दिखाने की कोशिश की। हिंदुस्तान टाइम्स में रजत शर्मा ने कहा कि वह ग़लत काम  को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करता। इस तरह का हास्यास्पद बयान देने वाले रजत शर्मा अगर ईमानदार है तो अपने चैनल पर बताए कि भ्रष्टाचार के मामले के कारण उसे हटाया हैं और अपने मित्रों मोदी और अमित शाह से कहें कि इस मामले में हेमंत को न बख्शा जाए।  प्रताड़ना का आरोप लगा कर ज़हर खाने वाली इंडिया टीवी की तनु शर्मा को इंसाफ दिलाने के लिए मठाधीशों ने ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ आवाज नहीं उठाई। क्या कोई बता सकता है बलात्कारी राम रहीम का पर्दाफाश करने वाले सिरसा के पत्रकार रामचन्द्र छत्रपति के  हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर  दिल्ली के पत्रकारों के संगठनों ने कितने प्रर्दशन किए या उसके परिवार की कोई मदद की हो। किसी ने मोमबत्ती ड्रामा या मानव श्रृंखला बनाई हो या इसका तब फैशन नहीं था।असल में इनकी मोमबत्तियां भी मरने वाले की हैसियत और उस समय  के विपक्ष के इशारे पर ही जलती बुझती है। मेरी इन संगठनों  से  गुज़ारिश है कि अगर मुझे कुछ हो जाएं तो कृपया ऐसा कोई ड्रामा मत करना। वर्ना यह ठीक ऐसे होगा कि जीते जी परिवार वाले पानी की भी ना  पूछें और मरने के बाद लोगों को लड्डू खिलाएं। पत्रकार संगठन कह सकते हैं कि हमें शिकायत मिलती तभी तो हम कुछ कार्रवाई करते। तो भाईयों ग़ौरी लंकेश ने तो आपको न्यौता भेजा होगा और बेचारे राम चंद्र छत्रपति को मालूम नहीं होगा कि न्यौता भेजना होता है। राज्यों में काम करने वाले ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌पत्रकारों को भी मालूम होना चाहिए कि दिल्ली में आवाज़ उसी की उठाई जाती है जो हैसियत वाला या जिसने न्यौता/शिकायत दी  हो।
जुबां पर सच और दिल में इंडिया और सभी को गोदी पत्रकार कहने वाले एनडीटीवी ने सरकारी जमीन कब्जाने वाले भाजपा सांसद पंजाब केसरी के अश्विनी कुमार मिन्ना, जबरन वसूली के आरोपी सुभाष चन्द्र गोयल, सुधीर चौधरी, लंदन में पोस्टिंग कराने का ठेका लेने वाले टाइम्स आफ इंडिया के संपादक दिवाकर और अरुण जेटली के बारे में या इंडिया टीवी के हेमंत शर्मा के बारे में भी अपनी पत्रकारिय प्रतिभा दिखाई होती तो पता चलता कि बाबू मोशाय प्रणय रॉय और ये सब आपस में मौसेरे भाई नहीं है।