सफदर रिज़वी
रोहिंग्या मुसलमानों का दर्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महसूस किया और उनके हित में आवाज उठाई, हालांकि हुआ कुछ नहीं लेकिन इससे कई सवाल उठ खड़े हो गए। यूं तो भारत भी इनकी घुसपैठ से परेशान है लेकिन इसका हल निकालना बहुत ही मुश्किल है। वैसे तो वेें्रभूख, कुपोषण और रोगों के शिकार हैं, दाने-दाने को मोहताज हैं। इनकी व्यथा को जितना अनुभव किया जाए, उतना कम है। ये दुनिया के सबसे सताए हुए लोग हैं, इस बात को संयुक्त राष्ट्र संघ भी कह चुका है किंतु बर्मा, बांग्लादेश, इण्डोनेशिया, थाईलैण्ड तथा भारत कोई भी देश इन लोगों को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। आखिर क्यों ? मानवाधिकार वादी बुद्धिजीवी चाहे कितना ही प्रलाप क्यों न कर लें किंतु वास्तविकता यह है कि रोहिंग्या मुसलमान अपनी बुरी स्थिति के लिए स्वयं ही जिम्मेदार हैं। ये लोग मूलतः बांग्लादेश के रहने वाले हैं तथा जिस तरह करोड़ों बांग्लादेशी भारत में घुस कर रह रहे हैं, उसी प्रकार ये भी रोजी-रोटी की तलाश में बांग्लादेश छोड़कर बर्मा में घुस गए। 1962 से 2011 तक बर्मा में सैनिक शासन रहा। इस अवधि रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्धों में संघर्षशुरु हो गया। बौद्धों ने संगठित होकर रोहिंग्या मुसलमानों पर हमला कर दिया। इस संघर्ष में लगभग 200 लोग मारे गए जिनमें रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या अधिक थी। तब से दोनों समुदायों के बीच हिंसा का जो क्रम आरम्भ हुआ, वह आज तक नहीं थमा। रोहिंग्या मुसलमानों ने नावों में बैठकर थाइलैण्ड की ओर पलायन किया किंतु थाइलैण्ड ने इन नावों को अपने देश के तटों पर नहीं रुकने दिया। इसके बाद रोहिंग्या मुसलमानों की नावें इण्डोनेशिया की ओर गईं और वहाँ की सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को शरण दी।
रोहिंग्या मुसलमानों ने बर्मा में रोहिंग्या रक्षा सेना का निर्माण करके अक्टूबर 2016 में बर्मा के 9 पुलिस वालों की हत्या कर दी तथा कई पुलिस चैकियों पर हमले किए। इसके बाद से बर्मा की पुलिस रोहिंग्या मुसलमानों को बेरहमी से मारने लगी और उनके घर जलाने लगी इस कारण बर्मा से रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन का नया सिलसिला आरम्भ हुआ। वर्तमान में लगभग 20 हजार रोहिंग्या मुसलमान बर्मा तथा बांग्लादेश की सीमा पर स्थित नाफ नदी के तट पर डेरा डाले हुए हैं। वे भूख से तड़प रहे हैं तथा उन्हें जलीय क्षेत्रों में रह रहे सांप भी बड़ी संख्या में काट रहे हैं। उनमें से अधिकतर बीमार हैं तथा तेजी से मौत के मुंह में जा रहे हैं। बहुत से रोहिंग्या मुसलमानों ने भागकर बांग्लादेश में शरण ली किंतु भुखमरी तथा जनसंख्या विस्फोट से संत्रस्त बांग्लादेश रोहिंग्या मुसलमानों का भार उठाने की स्थिति में नहीं है, इसलिए इन्हें वहाँ भोजन, पानी रोजगार कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ और हजारों रोहिंग्या मुसलमानों ने भारत की राह पकड़ी। भारत का पूर्वी क्षेत्र पहले से ही बांग्लादेश से आए मुस्लिम शरणार्थियों से भरा हुआ है, अतः भारत नई मुस्लिम शरणार्थी प्रजा को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है। तुर्की के राष्ट्रपति रचैब तैयब बांग्लादेश जाकर इस समस्या का समाधान करना चाहते हैं तथा वे अंतर्राष्ट्रीय मंचों के माध्यम से रोहिंग्या मुसलमानों को बर्मा में ही रहने देने के लिए बर्मा की स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची पर दबाव बनाना चाहते हैं। इस बीच अफगानिस्तान की नोबल पुरस्कार विजेता मलाला ने ट्वीट जारी कर सू ची की निंदा करते हुए कहा है कि मैं बर्मा में रोहिंग्या मुसलमानों के उत्पीड़न के समाचारों से दुखी हूँ। सू ची की कठिनाई यह है कि यदि वह रोहिंग्या मुसलमानों का कठोरता से दमन जारी नहीं रखती हैं तो बर्मा में 50 सालों के संघर्ष के बाद आया लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा तथा बर्मा की सेना, लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को कमजोर घोषित करके पुनः सत्ता पर अधिकार जमा लेगी।