अनवर चौहान
आतंकवाद के नाम पर मौत बांटने वाले इस्लाम के नाम की धज्जियां उड़ा रहे हैं। पूरी दुनिया में जिस तरह इस्लाम के नाम पर मज़लूम, बे-बस, बुजुर्गों, औरतों और बच्चों को मौत बांटने वाले इस्लाम से खारिज हैं। उलेमाओं ने साफ कर दिया है कि अबू-बकर-अल बग़दादी हो या फिर हाफिज़ सईद समेत दर्जनों आतंकियों का क़तल वाजिब है। ये फतवा जारी करने वाले मुफ्ती, मौलवी और हाफिज़ सय्य्द मुशर्रफ क़ासिमी हैं। जिनकी पढ़ाई लिखाई दारुल उलूम देवबंद में हुई है। इस वक़्त वो दिल्ली की अक़सा मस्जिद के इमाम हैं।
सय्यद मुफ्ती मुशर्रफ
दरअसल फतवा क्या है लोगों को ये समझाना बेहद ज़रूरी है। नंबर 1 फतवा सिर्फ और सिर्फ मुफ्ती दे सकता है। मौलवी या हाफिज़ नहीं। दिल्ली की शाही मस्जिद के इमाम अहमद बुख़ारी जैसे लोगों को फतवा देने का कोई अधिकार नहीं हैं। चूंकि ये मुफ्ती नहीं हैं। अकसर देखा गया है कि जुमे के दिन वो जो तक़रीर करते हैं मीडिया उसी को फतवे का नाम दे देता हैं। जो सऱासर ग़लत है। मुफ्ती मुशर्रफ के मुताबिक अल्लाह के नबी (हज़रत मोहम्मद स.) ने अपनी ज़िदगी में 24 या 25 जंग लड़ी हैं। आपने किसी भी जंग में अपनी तरफ से हमले की पहल नहीं की। सामने वाले के हमला करने पर जवाबी हमला किया।
सय्यद मुफ्ती मुशर्रफ
एक जंग में नबी करीम स. के सगे चचा अमीर हमज़ा शहीद हुए। हिंदा नाम की एक महिला ने उनकी लाश का कलेजा निकाला कच्चा चबाया। ऐसा उसने अपने गुस्से का इज़हार किया। इसके दूसरी तरफ सारे सहाबियों को नबी का फरमान था कि किसी भी लाश के साथ क्रूरता न बर्ती जाए। लेकिन आतंकी ठीक इसका उल्टा कर रहे हैं। खास्तौर से ISIS के आतंकी भयानक क्रूरता के साथ लोगों को मौत बाट रहे हैं। मुफ्ती साहब का कहना है कि बिना किसी दलील के ये लोग ईमान से खारिज हैं। और इनका क़त्ल करना वाजिब हो गया है। नबी के दौरान किसी भी जंग में कोई क़त्ल क्रूरता से नहीं किया गया। जो लोग जंग लड़ते थे वो आमने-सामने होती थी। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ की जंग का बदला किसी की औलाद, रिश्तेदार और नाते दार से लिया गया हो। बे-गुनाहों के साथ जुल्म करने की इजाज़त कभी इस्लाम ने नहीं दी।
हाफिज़ मोहम्मद सईद
अबूबकर अल-बग़दादी
अल्लाह के नबीं ने जो जंग के तौर-तरीके बताए थे, आतंकी ठीक इसका उल्टा कर रहे हैं। नबी के ज़माने में एक और जंग हुई। इस जंग में वो महिला हिंदा जिसने आपके चचा के कलेजे को चबया था वो शरीक ती।एक सहाबी हैं अबू दुजाना जंग के दौरान हिंदा अबू दुजाना की तलवार के नीचे आ गई। लेकिन दुजाना ने उसे क़त्ल नहीं किया। चूंकि अल्लाह के नबीं का फरमान था कि जंग में बच्चों और औरतों का क़त्ल न किया जाए। हिंदा ने बाद में अपनी मर्ज़ी से इसलाम धर्म कबूल कर लिया। कुल मिला कर ये है कि आतंकी जो भी कुछ कर रहे हैं। वो सारा का सारा इस्लाम के खिलाफ है।
मुफ्ती साहब ने साफ कर दिया कि इस्लाम के नाम पर जंग लड़ने वाले सारे के सारे ईमान से खारिज हैं। और इनका क़त्ल वाजिब है। हैरत की बात ये है कि पाकिस्तान एक मुस्लिम देश है। शरियत जिनको वाजिबुल क़त्ल क़रार दे रहा है पाकिस्तान उन्हें पनाह दे रहा है। इसका मतलब है कि पाकिस्तान ने शरिअत को उठाकर ताक़ में रख दिया है और वो, वो कर रहा है जो आतंकी चाहते हैं। जगह-जगह आतंकवादियों की ट्रैनिग के अड्डे चल रहे हैं। इस्लाम की ग़लत शिक्षा देकर उनकी ज़िदगियों के साथ खिलवाड़ किया जा रह है।
नौजवान को जन्नत का सब्ज़बाग़ दिखाकर गुमराह किया जा रहा है। जिन बच्चों के हाथ में मकतब की किताब होनी चाहिए थी वहीं उनके हाथों में हथियार सौंपे जा रहे हैं। जबकि इस्लाम इसकी कतन इजाज़त नहीं देता। इस वक्त पाकिस्तान दुनिया के तमाम आतंकियों की पनाह-गाह है। एक बात बताना ज़रूरी है कि मुफ्ती साहब से हुई बात-चीत क़ुरान और हदीस की रोशनी में हुई है।
हम जानते हैं कि हमें ये तस्वीरें नहीं दिखानी चाहिए। मगर इन्हें दिखाना भी ज़रूरी है...चूंकि सच तभी सामने आ सकता था।