हैदराबाद. शिया धर्मगुरु और इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वाइस प्रेसिडेंट कल्बे सादिक ने रविवार को कहा था कि अगर अयोध्या में विवादत जमीन का फैसला मुस्ल्मों के पक्ष में आता है तो यह जमीन हिंदुओं को दे देनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर फैसला मुस्लिमों के हक में नहीं आया तो उन्हें शांति से उसे मंजूर कर लेना चाहिए। इसके फौरन बाद एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि मस्जिदों का मालिक खुदा होता है, इन्हें कोई किसी को नहीं दे सकता। उनका यह बयान ट्वीट के जरिए दिया है। ओवैसी ने कहा, "मस्जिदों को संभालने का काम शिया, सुन्नी, बरेलवी, सूफी, देवबंदी, सलाफी, बोहरी की ओर से हो सकता है, लेकिन वे मालिक नहीं हैं। सबका मालिक अल्लाह है।"
उन्होंने कहा, "मस्जिदों को सिर्फ इसलिए नहीं दे दिया जा सकता है, क्योंकि किसी एक मौलाना ने ऐसा कहा है। एक बार जो मस्जिद है, वह हमेशा रहती है। यहां तक की ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी किसी मस्जिद को नहीं सौंप सकता है।" शिया बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में दिया था हलफनामा सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा- सादिक उन्होंने कहा, "हमें देश की सर्वोच्च अदालत पर पूरा भरोसा है। अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुस्लिमों के पक्ष में आता है तो उन्हें विवादित जमीन पर अपना दावा छोड़ देना चाहिए। फैसला जो भी आए, दोनों ही पक्षों को उसका सम्मान करना चाहिए। जो अपनी सबसे प्यारी चीज दूसरों को देता है, बदले में उसे हजारों चीजें मिलती हैं।" उन्होंने कहा, "विवादित जमीन हिन्दुओं को मिलनी ही चाहिए। मेरा मानना है कि एक मस्जिद चली जाएगी, लेकिन करोड़ों दिल मिल जाएंगे। यह मसला हिन्दू-मुस्लिम का नहीं है, यह देश का मसला है।" कल्बे सादिक के बयान का प्रोग्राम में मौजूद केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन, पुरुषोत्तम रुपाला और बाबा रामदेव ने स्वागत किया। डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा, "मौलाना साहब ने हमारा दिल जीत लिया है। भगवान राम न तो हिंदुओं के हैं, न मुस्लिमों के, भगवान राम भारत की आत्मा हैं।" शिया वक्फ बोर्ड ने और क्या कहा है?
अयोध्या विवाद में 8 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। इस दौरान शिया सेंट्रल बोर्ड ऑफ उत्तर प्रदेश ने अपने एफिडेविट में कहा था- बाबरी मस्जिद का इलाका हमारी प्रॉपर्टी है, वहां राम मंदिर बनाया जाना चाहिए। इस विवाद के हल के लिए दूसरे पक्षों से बातचीत का अधिकार भी बोर्ड को ही है। इस बड़े विवाद के हल के लिए बोर्ड एक कमेटी बनाना चाहता है और इसके लिए उसे वक्त दिया जाए। बता दें कि बोर्ड ने पहली बार सुप्रीम कोर्ट में ही एफिडेविट दायर किया है। बता दें कि 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को राम जन्मभूमि न्यास, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के बीच 3 हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। इसे दी गई चुनौती पर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच 11 अगस्त से सुनवाई शुरू कर चुकी है। फाइनल सुनवाई विवादित ढांचा गिराए जाने की 25वीं बरसे से एक दिन पहले 5 दिसंबर को होगी। 11 अगस्त को सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अभी दस्तावेजों का ट्रांसलेशन नहीं हो पाया है, इसलिए इन्हें पेश नहीं किया जा सकता। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसलेशन के लिए तीन महीने का वक्त दे दिया। इस केस से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेज अरबी, उर्दू, फारसी, पाली और संस्कृत समेत 8 भाषाओं में हैं। एफिडेविट में ये भी दावे उत्तरप्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी की ओर से यह एफिडेविट वकील एमसी ढींगरा ने दायर किया।
इसके मुताबिक, ‘अयोध्या स्थित विवादित ढांचे पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा गलत है। यह मस्जिद मीर बकी ने बनवाई थी। वह शिया था। मस्जिद बनने के बाद से जितने भी मुतवल्ली रहे हैं, सब शिया बोर्ड से ही रहे हैं। यह ऐतिहासिक तथ्य है। बाबर तो कभी अयोध्या गया ही नहीं।’ ‘बाबर पर लिखी गई किताब बाबरनामा में भी ऐसा कोई जिक्र नहीं है। ऐसे में इस मस्जिद पर शियाओं का हक है। इससे जुड़े फैसले भी शिया बोर्ड ही लेगा। सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस में उत्तरप्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को पार्टी बनाना गलत है। अयोध्या विवाद शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए शिया वक्फ बोर्ड तैयार है।’ ‘विवादित जगह पर मंदिर बनवाया जाए। मस्जिद के लिए मुस्लिम बहुल इलाके में कहीं जगह दी जाए। अगर विवादित जमीन पर मंदिर-मस्जिद बनाए गए तो भविष्य में भी विवाद की आशंका रहेगी। विवाद शांति से निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय कमेटी बनाई जाए।’
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी को एतराज बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के जफरयाब जिलानी ने शिया वक्फ बोर्ड को ज्यादा अहमियत देने से इनकार कर दिया है। जिलानी ने कहा था- ये सिर्फ अपील है और इस एफिडेविट का कानून में कोई महत्व नहीं है। वहीं, बीजेपी सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने कहा कि मेरे हिसाब से शिया वक्फ बोर्ड ने एक अच्छा मैसेज दिया है। क्या है विवाद? राम मंदिर मुद्दा 1989 के बाद चर्चा में आया था। इस मुद्दे की वजह से तब देश में सांप्रदायिक तनाव फैला था। देश की राजनीति इस मुद्दे से प्रभावित होती रही है। हिंदू संगठनों का दावा है कि अयोध्या में भगवान राम की जन्मस्थली पर विवादित बाबरी ढांचा बना था। राम मंदिर आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचा गिरा दिया गया था। मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है। इलाहाबाद HC ने क्या दिया था फैसला? इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ भी सुनवाई शुरू की जाएगी। 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था।
बेंच ने तय किया था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए। बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए। कौन हैं 3 पक्ष, क्या था फॉर्मूला? निर्मोही अखाड़ा: विवादित जमीन का एक-तिहाई हिस्सा यानी राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह। रामलला विराजमान: एक-तिहाई हिस्सा यानी रामलला की मूर्ति वाली जगह।
सुन्नी वक्फ बोर्ड: विवादित जमीन का बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा। सुप्रीम कोर्ट में मामला क्यों पहुंचा? हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अयोध्या की विवादित जमीन पर दावा जताते हुए रामलला विराजमान की तरफ से हिन्दू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर की। दूसरी तरफ, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसके बाद कई और पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन्स दायर कर दी। इन सभी पिटीशन्स पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई, 2011 को हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। तब से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।