मोहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान में क़ायदे-आज़म और बाबा-ए-क़ौम कहकर पुकारते हैं। मगर, हिंदुस्तान के लोग जिन्ना से नफ़रत करते हैं. जिन्ना का नाम हिकारत से लिया जाता है. क्योंकि, उन्हें देश के बंटवारे के लिए ज़िम्मेदार माना जाता था.देश का बंटवारा हिंदुस्तान और पाकिस्तान के लिए क़यामत जैसा था. उस दौरान भड़की हिंसा में लाखों लोग मारे गए. एक करोड़ से ज़्यादा लोग बेघर हो गए. बंटवारे के वो ज़ख़्म अब तक नहीं भरे हैं. 1947 में बंटवारे के बाद मुहम्मद अली जिन्ना अपने बनाए मुल्क़ पाकिस्तान चले गए. वो वहां के पहले गवर्नर जनरल थे.
मगर, जिन्ना की एक ख़ास चीज़ यहीं रह गई. ये थी मुंबई में जिन्ना की कोठी. हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच एक झगड़ा इस कोठी को लेकर भी है, जो पिछले सत्तर सालों से चला आ रहा है. पाकिस्तान, जिन्ना की इस कोठी पर अपना वाजिब हक़ मानता है. पाकिस्तान के आम शहरी की नज़र में जिन्ना की ये कोठी एक तीर्थ है. इसी में रहते हुए जिन्ना ने पाकिस्तान की नींव डाली थी. उसके लिए लड़ाई लड़ी थी. इसीलिए पाकिस्तान इस पर दावा ठोकता है. लेकिन मुंबई में मुहम्मद अली जिन्ना की ये कोठी, हिंदुस्तान की आंखों को खटकती है. इसे मुल्क के बंटवारे की साज़िश का अड्डा माना जाता है. भारत ने मुंबई मे जिन्ना के बंगले को `एनिमी प्रॉपर्टी` यानी दुश्मन की संपत्ति घोषित कर रखा है. फिलहाल ये इमारत वीरान पड़ी है. सरकार का इस पर क़ब्ज़ा है.
एक स्थानीय राजनेता जो रियल एस्टेट का धंधा भी करते हैं, वो जिन्ना की कोठी को गिराने की मुहिम छेड़े हुए हैं. उनका मानना है, "ये दुश्मन की संपत्ति है. इसे बंटवारे के लिए ज़िम्मेदार मुहम्मद अली जिन्ना ने बनवाया था. बंटवारे के चलते काफ़ी ख़ून-ख़राबा हुआ. ये इमारत उस तकलीफ़ की याद दिलाती है. इसीलिए इसे गिरा देना चाहिए. इसकी जगह एक सांस्कृतिक केंद्र बनाया जाना चाहिए." जिन्ना को मुंबई शहर से बहुत प्यार था. इंग्लैंड से लौटकर वो यहीं बस गए थे. अपनी रिहाइश के लिए उन्होंने ये शानदार इमारत बनवाई थी. जिन्ना ने ये कोठी, उस दौर के यूरोपीय बंगलों की तर्ज पर बनवाई थी. इस बंगले का नाम साउथ कोर्ट है.
ये बंगला दक्षिण मुंबई के मालाबार हिल्स इलाक़े में है. समंदर को निहारती ये इमारत बनाने में जिन्ना ने तीस के दशक में क़रीब दो लाख रुपए ख़र्च किए थे. इसका डिज़ाइन मशहूर आर्किटेक्ट क्लॉड बैटले ने तैयार किया था. इसमें इटैलियन मार्बल लगे हैं. साथ ही लकड़ी का काम भी बहुत अच्छा हुआ है. इस कोठी को जिन्ना ने अपने ख़्वाब की इमारत के तौर पर बनवाया था. इसे बनाने के लिए ख़ास तौर से इटली से कारीगर बुलाए गए थे. उस वक़्त बैरिस्टर रहे जिन्ना ने जितने जतन और लगन से ये बंगला बनवाया था, उससे साफ़ था कि उनका इरादा मुंबई में ही रहने का था. मगर बाद में वो वक़ालत से ज़्यादा राजनीति में उलझ गए और आख़िर में मुसलमानों के लिए अलग मुल्क, पाकिस्तान बनवाया. फिर वो अपने बनाए वतन में रहने चले गए. जिन्ना को लगता था कि बंटवारे के बाद भारत और पाकिस्तान के ताल्लुक़ इतने अच्छे होंगे कि वो मन होने पर मुंबई आकर कुछ दिन अपने घर में रह सकेंगे.
लेकिन, दोनों देशों के बीच सरहद खिंचते ही, दिलों की खाई आसमान से भी ऊंची और समंदर से भी गहरी हो गई थी. जिन्ना का वापस अपने सपनों के बंगले में आने का ख़्वाब अधूरा ही रह गया. बंटवारे के बाद जब जिन्ना पाकिस्तान गए, तो वो चाहते थे कि उनके बंगले को किसी यूरोपीय को किराए पर दे दिया जाए. नेहरू इसके लिए राज़ी भी हो गए. लेकिन जब तक इस अहद पर दस्तख़त होते, जिन्ना का इंतकाल हो गया. तब से ही इस शानदार कोठी को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच खींचतान जारी है. जिन्ना की बेटी दीना वाडिया ने भी इस पर अपना मालिकाना हक़ जताया था. फिलहाल इस पर भारत सरकार का क़ब्ज़ा है. मुंबई में मुख्यमंत्री के बंगले के ठीक सामने खड़ी ये इमारत, भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की अधूरी विरासतों में से एक है.