इंद्र वशिष्ठ
वरिष्ठ पत्रकार
दिल्ली में रोजाना तीन हजार से ज्यादा मोबाइल फोन चोरी होते हैं या खोए जाते है । इस साल 30 जून तक ही 5,88,237 मोबाइल चोरी या खो जाने के मामले दर्ज हुए है। यह चौकाने वाला खुलासा है क्योंकि पिछले साल 30 जून तक करीब 25 हजार मोबाइल फोन ही चोरी या खो जाने के मामले दर्ज हुए थे । साढ़े तीन साल में मोबाइल चोरी या खोने के लगभग 11 लाख मामले दर्ज हुए है । इनमें से करीब साढ़े 9 लाख मामले तो पिछले डेढ़ साल के ही है। एक फोन की औसत कीमत कम से कम अगर 3 हजार रूपए भी मान लें तो 11 लाख फोन की कीमत 330 करोड़ रूपए है । गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक की मौजूदगी में ही मोबाइल फोन की बिल्कुल ही कम बरामदगी पर पूछे गए सवाल को हंसी में उड़ा दिया ।
इसके पहले गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने तो राज्यसभा में यह तक कह दिया था कि छोटे मामले सुलझाने में पुलिस को तकलीफ होती है। कुल अपराध के 75 फीसदी मामलों को सुलझाने में विफल पुलिस को फटकार की बजाए संसद में गृह मंत्री राजनाथ शाबशी देंगे तो पुलिस भला मेहनत वाली तफ्तीश क्यों करेंगी । यही नेता विपक्ष में हो तो ऐसे मामलों पर खूब हल्ला मचाते है । सचाई यह है मोबाइल फोन खोने में दर्ज हुए अधिकांश मामले चोरी और झपटमारी के ही होते है। झपटमारी ,चोरी में एफआईआर दर्ज करनी पड़ेगी और अपराध के आंकड़े से अपराध की वृद्धि उजागर हो जाएगी। इस लिए पुलिस में यह परंपरा है कि झपटमारी, जेबकटने या मोबाइल चोरी के अधिकांश मामलों में एफआईआर दर्ज न की जाए। झपटमारी, जेबकटने या मोबाइल चोरी की रिपोर्ट कराने पहुंचे व्यकित को पुलिस कह देती है रिकवरी के चांस तो है नहीं और तुम्हारा काम तो खोने की पुलिस रिपोर्ट से भी चल जाएगा । पहले ऐसे मामलों में पुलिस एनसीआर दर्ज करके या कागज पर लिखी शिकायत पर थाने की मोहर लगा देती थी । अब यह काम ऑन लाइन लॉस्ट रिपोर्ट से हो जाता है । पुलिस अगर ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करे तो उस पर झपटमारों, चोरों को पकड़ने का दवाब बनेगा है । पुलिस को तफ्तीश में मेहनत करनी पड़ेगी। जो वह करना नहीं चाहती । इसलिए अपराध को दर्ज न करना एसएचओ,डीसीपी और पुलिस कमिश्नर से लेकर गृह मंत्री तक के अनुकूल है । लेकिन ऐसा करके ये अपराधियों की मदद कर रहे है । अपराधी को मालूम है कि अगर पकड़ा भी गया तो उसके खिलाफ दर्ज मामले तो बहुत ही कम मिलेंगे । पुलिस लुटेरों को गिरफ्तार करके कई बार सैकड़ों केस सुलझाने के दावे करती है लेकिन कभी भी उन सैकड़ों केसों की सूची नहीं देती । सचाई यह है अपराधी द्बारा की गई सभी वारदात पुलिस ने दर्ज ही नहीं कर रखी होती । इसलिए पुलिस प्रचार पाने के लिए तो दावा कर देती है लेकिन सूची नहीं दे सकती । क्राइम रिपोर्टर भी पुलिस के दावे पर ही निर्भर रहते है और खुद पड़ताल कर य़ह सचाई मालूम करने कोशिश ही नहीं करते कि पुलिस ने जितने केस सुलझाने का दावा किया है असल में उसमें से कितने केस दर्ज है।
30 जून 2017 तक मोबाइल फोन खो जाने के 5,69,824 और 15 जून 2017 तक फोन चोरी के 18413 मामले दर्ज हुए है । जबकि पिछले साल दिल्ली पुलिस ने 30 जून 2016 तक मोबाइल फोन चोरी या खो जाने के 24482 मामले दर्ज किए । इनमें से सिर्फ 1068 मोबाइल फोन ही जून 2016 तक पुलिस बरामद कर पाई थी । साल 2017 में मई तक मोबाइल झपटने के 2409 मामले दर्ज किए गए है इनमें से 903 मामले सुलझाने का पुलिस ने दावा किया है। साढ़े तीन साल में लगभग 11 लाख फोन चोरी/खोए- साल 2014 से 30 जून 2017 तक 1,068,839 फोन चोरी /खो जाने के मामले दर्ज हुए है। करोड़ों रूपए के फोन चोरी / खो गए है लेकिन पुलिस की फोन बरामद करने में बिल्कुल रूचि नहीं होती है। इसकी पुष्टि नीचे दिए आंकड़ों से भी होती है। पुलिस की रिकवरी दर शर्मनाक है इस लिए 2016 में और 30 जून 2017 तक कितने फोन बरामद हुए यह जानकारी पुलिस ने नहीं दी । दिल्ली पुलिस के पीआरओ की ओर से इंस्पेक्टर (प्रेस )संजीव ने बताया कि फोन रिकवरी का डाटा नहीं होता है । साल 2016 में 3,32,818 मोबाइल फोन खोने और 18687 फोन चोरी के मामले दर्ज हुए। साल 2015 में मोबाइल चोरी या खोने के 62373 और साल 2014 में 66724 मामले दर्ज हुए थे । पुलिस साल 2015 में 3415 और साल 2014 में 2237 मोबाइल फोन ही बरामद कर पाई है। साल 2014 ,2015 और 30 जून 2016 तक मोबाइल चोरी या खो जाने के 153579 मामलों में पुलिस सिर्फ 6720 मोबाइल फोन ही बरामद कर पाई है । चोरी या खोए मोबाइल फोन का पता लगाने के लिए साल 2014 में 47310, साल 2015 में 47976 और साल 2016 में 19698 फोन को निगरानी/ सर्विलांस पर रखा गया । पुलिस ने 6632 फोन उनके मालिकों को सौंप दिए है । राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने यह जानकारी दी । दिल्ली में मोबाइल फोन चोरी के बारे में सांसद राम कुमार कश्यप और हिशे लाचुंगपा ने सरकार से सवाल पूछे थे।
उल्लेखनीय है कि मोबाइल फोन का आई.एम.ई.आई. नंबर पुलिस को दिए जाने और सर्विलांस पर रखे जाने के बावजूद मोबाइल मालिक को न तो कोई सूचना दी जाती है और न ही मोबाइल खोजा जाता है। पुलिस द्वारा मोबाइल फोन की बरामदगी के आंकड़ों से ही यह बात साबित होती है कि पुलिस की फोन खोजने में कोई रूचि नहीं होती । पुलिस का कहना है कि चोरी हुए मोबाइल फोन का पता लगाने और उसे बरामद करने के लिए जांच अघिकारी द्वारा सभी प्रकार के प्रयास किए जाते है । इन मामलों की जांच को बंद करने तक चोरी हुए मोबाइल के मालिकों को समय समय पर मामले की जांच की प्रगति की जानकारी दी जाती है ।