सफदर रिज़वी
किडनी रोग बहुत ही घातक रोग हैै। इस रोग को लेकर अगर कोई लापरवाही बरतता है तो पूरी जिंदगी पछताना पड़ सकता है कि काश उसने समय रहते अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान दिया होता। इस रोग के पीड़ितों को अस्पतालों में देखा जा सकता है जिन्हें तरह- तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है और पूरी जिंदगी परहेज के बंधन में रहना पड़ता है। इसके अलावा किड़नी प्रत्यारोपड़ या समय≤ पर डायलेसिस कराने के लिए अपने को तैयार रखना पड़ता है।किडनी के 95 फीसदी रोगी प्रत्यारोपड़ करा पाने में असफल रहते हैं। उनके सामने अपनी जिंदगी बचाने के लिए एकमात्र उपाय डायलेसिस रहता है जिससे उनके खून के अंदर की गंदगी को साफ किया जा सकता है लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि रोगियों को डायलेसिस के लिए भी ठोकरे खाने के अलावा खासा पैसा खर्च करना पड़ता है। डायलेसिस नहीं करा पाने के कारण ढेरों मरीज इस दुनिया को छोड़ कर भगवान के पास चले जाते है। जिन मरीजों की निरंतर डायलेसिस होती है उन्हें मार्गदर्शक के रुप में एक अच्छे डाकटर की जरुरत होती है जो उन्हें लापरवाही करने से बचाता रहे। ऐसे डाकटर कम ही मिलते हैं जो मरीजों पर पूरी नजर रखे और उन्हें समझा बुझा कर परहेज करने के लिए मजबूर कर दें ताकि वे लंबे समय तक जी सकें। ऐसे ही एक डाकटर एलएनजेपी अस्पताल के डीसीडीसी डायलेसिस सेंटर में मिले। उनका नाम है डाकटर मोहम्मद शुएब। उन्होंने यूक्रेन से एमबीबीएस किया है और पिछले तीन साल से इस सेंटर में है। शांत स्वभाव के डाकटर शुएब से किडनी रोग को लेकर बातचीत हुई, पेश है उसके कुछ अशं-
सवाल- ज्यादातर मरीजों को तब पता चलता है जब उनकी किडनी खराब हो चुकी होती हैं, क्या यह संभव नहीं है कि शुरुआत में ही पता चल जाए कि किडनी खराब होने वाली है?
डाक्टर का जवाब-संभव है। लेकिन सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए जो अपने स्वास्थ्य को लेकर लापरवाह नहीं है । इसके लिए जरुरी है कि तीन या छह महीने में खून की जांच कराते रहना चाहिए। सीबीसी, केएफटी और एलएफटी की जांच से यह पता चल जाता है कि किडनी सही है या उसमें खराबी आ रही है। यह जांच हर एक को कराते रहना चाहिए। खासकर उन लोगों को तो यह जांच जरुर कराना चाहिए जिन्हें अचानक से पेशाब आना कम हो जाए या भूख लगना कम ही जाए और शरीर पर सूजन आ जाए या उल्टियां व उबकाई आती हो।
सवाल- किडनी रोग होने की मुख्य वजह क्या-कया है? क्या शुरुआत में इस पर कैसे काबू पाया जा सकता है?
डाक्टर का जवाब-आमतौर पर यही देखने में आता है कि उन लोगों की किडनियां खराब हो जाती है जिन्हें ब्लड प्रेशर या शूगर की शिकायत होती है या ऐसे लोग जो ज्यादा पावर की दवा खा लेते हैं। इससे किडनी पर असर पड़ता है। शुरु की तीन दशाओं में दवा से ठीक किया जा सकता है लेकिन इसके बाद डायलेसिस कराना जरुरी हो जाता है। किडनी प्रत्यारोपड़ होने के बाद डायलेसिस की जरुरत नहीं पड़ती लेकिन जो लोग ऐसा नहीं करवा पाते उन्हें पूरी जिंदगी भर हफते में दो या तीन बार डायलेसिस कराना पड़ता है। इसके अलावा सख्त परहेज बहुत जरुरी है। परहेज नहीं करने पर तरह- तरह के इंफेक्शन हो जाते हैं जिसके बाद रोगी की मौत भी हो सकती है लेकिन जो लोग सख्त परहेज कर लेते हैं वे डायलेसिस के जरिए भी लंबे समय तक जिदंगी जी सकते हं।
सवाल-किस तरह का परहेज करना चाहिए?
डाक्टर का जवाब-जिसका बीपी हाई रहता है उसे नमक बिलकुल नहीं खाना चाहिए। सुबह- शाम बीपी चेक करते रहना चाहिए और कम व ज्यादा होने पर डाकटर को बताना चाहिए ताकि दवाओं की डोज को घटाया और बढ़ाया जा सके। शूगर या मधुमेह के रोगियों को मीठी चीज़े नहीं खाना चाहिए। चिकनाई, मसाले और बादी चीजो से परहेज करना चाहिए। हरे पत्ते की सब्जियां , दालें, खटटी चीजे नहीं खानी चाहिए। डाकटर से मिल कर चार्ट बनवा लेना चाहिए कि वे क्या खाएं और क्या पिएं।
आम, तरबूज, खरबूज, हरे पत्ते वाली सब्जियों में पोटेशियम ज्यादा होता है, इसलिए इसे नहीं खाना चाहिए। यह बाहर नहीं निकल पाता और मरीज को संास लेने में दिक्कत होती है, उल्टियां आने लगती है। भूख खत्म हो जाती है। डेरी के प्रोडक्ट में फासफोरस होता है। इसके बढ़ने पर खुजली होने लगती है। इसलिए टोंड दूध ही इस्तेमाल करना चाहिए। मिर्च मसाला इसलिए कम खाना चाहिए क्योकि इससे गैस बनती है और लीवर पर बुरा असर डालता है। खटाई, नीबू, चटनी बिलकुल नहीं खाना चाहिए सिटरिक एसिड और पोटेशियम बढ़ जाता है। मुर्गा, मछली, अंडा, पनीर, सोयाबीन हफते में दो दिन खाया जा सकता है लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि चिकनाई कम से कम रहे। इसमें प्रोटीन होती है। इस बात का ख्याल रहे कि पानी कम से कम पीना है ताकि शरीर में पानी नहीं बढ़े।
सवाल-आमतौर पर देखा जाता है कि मरीज और मरीज के रिश्तेदार डाकटर के कहने के बाद भी डायलेसिस कराने से परहेज करते है और दूसरे इलाज के लिए भटकते रहते हैं क्या ऐसा करना सही है, ऐसे समय मरीज के रिश्तेदार को क्या करना चाहिए?
डाक्टर का जवाब- डाक्टर मरीज से डायलेसिस कराने के लिए तभी कहता है जब इसकी जरुरत होती है। फौरन डायलेसिस कराई जाए तो इससे मरीज को फायदा होगा। ऐसा भी हो सकता है कि हफते में एक बार डाएलेसिस हो और वह कुछ दिनों बाद दस दिन में एक बार हो जाए और अगर डाकटर की बात पर ध्यान नहीं दिया गया तो कुछ दिनों बाद मरीज की हालत ज्यादा खराब हो सकती है फिर हफते में तीन या इससे ज्यादा डायलेसिस की जरुरत पड़ सकती है। वैध या देशी दवाओं के चक्कर में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। आमतौर पर यही देखा गया है कि इससे फायदे की जगह नुकसान उठाना पड़ता है। अगर कुछ समय के लिए फायदा हो भी जाए तो बाद में रोग बढ़ जाता है और मरीज को जान से हाथ धोना पड़ सकता है। हम मरीज को देशी दवाओं के लिए मना करते हैं।
सवाल-डायलेसिस क कुछ मरीजों का कहना है कि वे डायलेसिस से पहले बदपरहेजी कर मनपसंद की चीजें खा लेते हैं क्यांेकि डायलेसिस के बाद गंदगी साफ हो जाती है, क्या मरीजों का ऐसा सोचना सही है?
डाक्टर का जवाब- ऐसा सोचना बिलकुल गलत है। खून में गंदगी पहले से ही रहती है, उसकी सफाई के लिए डायलेसिस की जाती है। अगर और गंदगी बढ़ जाएगी तो पूरी तरह खून की सफाई नहीं हो पाएगी, इससे मरीज की तकलीफ बढ़ सकती है। इसलिए यह सोचकर बदपरहेजी करना गलत है कि डायलेसिस से पूरी सफाई हो जाती है।
सवाल-डायलेसिस कराने वाले मरीज को किस तरह जीवन बिताना चाहिए, क्या पूरी तरह आराम करना चाहिए?
डाक्टर का जवाब-डायलेसिस कराने वाले मरीज को पूरी तरह आराम करना चाहिए, कोई भी डाक्टर यह सलाह नहीं देता। अगर उसकी तबियत सही है तो वह अपनी सीमा में रह कर काम कर सकता है। बहुत सारे मरीज डायलेसिस भी करा रहे हैं और नौकरी भी कर रहे हंै। बस इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि ऐसा काम नहीं करे जिससे उसके शरीर पर बुरा असर पड़े। जैसे फिसटुला बंद न हो इसके लिए वजन नहीं उठाना चाहिए और जिसके लिए डाकटर ने मना किया है उसे नहीं करना चाहिए। डायलेसिस का मतलब है जो काम किडनी को करना चाहिए वह मशीन कर रही है। किडनी 24 घंटे काम करती है लेकिन डायलेसिस हफते में दो या तीन बार। इससे खून में जमा हुई गंदगी को साफ किया जाता है। इसके बाद की हालत में सुधार आ जाता है।
सवाल- क्या किडनी के मरीज व्यायाम कर सकते है?
डाक्टर का जवाब- इसमें कोई बुराई नहीं है। उन्हंे हल्की- फुल्की एकसरसाइज जरुर करना चाहिए। इससे शरीर को फायदा होगा। सवेरे अगर टहल सकते हैं तो अच्छा रहेगा। आप ये समझ लें कि उन्हें बीमार की तरह बिस्तर पर पड़े नहीं रहना चाहिए। व्यायाम से पाचनतंत्र में सुधार आता है।