अनवर चौहान

पिछले ढ़ाई दशक से पत्रकारिता मे हूं। पेशे में अच्छे और बुरे दिन सब देखे। मानसिक और शारीरिक तकलीफें भी झेली हैं। कई बार जान को क़रीब से गुज़रते भी देखा है। एक बार तो घर के सामने ही गोलियां चली, ज़िंदगी नसीब में लिखी थी बच गया। तब मेरा घर सीलमपुर थाने के तहत आता था। वहां मुकदमा दर्ज हुआ। एक बार सोनिया बिहार थाने के इलाक़े से गुज़र रहा था। वहां जान लेवा हमला हुआ। गर्दन पर नौ टांके लगे। मुकदमा सोनिया बिहार थाने में दर्ज हुआ। मुकदमा दर्ज करने के अलावा कई बार पुलिस को शिकाये दी...पुलिस ने सुरक्षा तो दी लेकिन किसी भी मामले में वो हमलावरों तक नहीं पहुंच पाई। लिहाज़ उन मुकदमों की फाइलें थानों में धूल चाट रही हैं।


बात अब मुद्दे की करते हैं। 2 अप्रैल सन 2017, वक़्त  रात 11 बजे से कुछ आगे या पीछे। प्रेस क्लब से घर के लिए निकला। दिल्ली गेट से मुझे दूसरी बस पकड़नी थी। मैं पैदल लाल बत्ती पार कर चुका था। तभी 4 से 5 लड़कों ने मेरे ऊपर हमला कर दिया। मुंह के बल नीचे गिरा दिया। लात घूंसो सा मारा...इसी दौरान उन में एक कह रहा था कि ISIS के खिलाफ तू बड़ी ख़बरें लिखता है। आज के बाद सोशल मीडिया पर ISIS के खिलाफ नज़र न आ जाए। ये सब कुछ 5 मिनट में हो गया। लड़के भाग गए मैं दरियागंज थाने पहंचा, अपना परिचय दिया। वारदात के दौरान 30150 मेरी जेब में थे। वो निकाले गए या गिर गए।ये नहीं मालूम। दअसल मैं ग़रीब बच्चों को पत्रकारिता सिखाता हूं। इनमें नासिर अलवी ने 30000 रूपये चंदे के थे। दरिया गंज थाने में  मुझे पूरी रात हो गई। दरअसल केस की जांच करने वाले SI उस्मान अपनी मर्ज़ी का बयान कराना चाहते थे। मैं ने उनसे हाथ जोड़ कर कहा कि मैं मुकदमा नहीं चाहता सुरक्षा चाहता हूं। चूंकि मैं पिछले मुकदमों का हाल देख चुका हूं।