अनवर चौहान

दिल्ली नगर चुनाव अब ज़्यादा दूर नहीं हैं। ये पहली बार होगा कि इस सियासी अखाड़े में तीन बड़े पहलवान कुश्ती लड़ते नज़र आऐंगे। अब से पहले भाजपा और कांग्रेस ही चुनावी जंग में नज़र आते थे। लेकिन इस बार आप पार्टी के रूप में एक नया पहलवान भी लगोंट कस अखाड़े में खड़ा है। आप पार्टी ने लगभग अपने सारे उम्मीदवारों की घोषण भी कर दी है। यहां तक कि इस पार्टी में रूठने और मनाने का सिलसिला भी ख़त्म हो चुका है।

जबकि दीगर पार्टियां अपने उम्मीवार भी तय नहीं कर पाई हैं। काग्रेस हो या भाजपा यहां टिकट मांगने वाले अभी कतार में खड़े हैं। हर कोई आस लगाए बैठा है। टिकट कटने की हालत में बहुत सारे उम्मीदवार बाग़ी हो जाते हैं। यही बग़ावत उनकी हार का सबब  बनती हैं।

पिछले चुनाव में खासतौर से बाग़ी उम्मीदवारों ने कांग्रेस को धरातल पर ला दिया। एक नहीं अनेकों सीटें पर कांग्रेस अपने बाग़ियों के कारण हारी। मिसाल के तौर पर जमनापार की कर्दमपुरी सीट कांग्रेस सौ फीसदी जीत रही थी। लेकिन वहां कांग्रेस का बाग़ी फुरक़ान कुरैशी निर्दलीय चुनावी अखाड़े में #2313;तर आया। 6000 से अधिक वोट उसे मिले और कांग्रेस चारों खाने चित हो गई।

इसी तरह बहुत सारी सीटें ऐसी थीं जिन पर काग्रेस जीत सकती थी। मगर उसे हार का मुंह देखना पड़ा। दरअसल निगम का  छूटा चुनाव होने के कारण उम्मीवार का चेहरा भी हार और जीत के लिए माएने रखता है। मगर ख़ासतौर से कांग्रेस इस पहलू को नज़र-अंदाज़ करती हैं। अधिकांश देखा गया है क् कांग्रेस में रसूख वाले लोग टिकट पाने में कामयाब रहते हैं। यही वजह है कि कई बार कांग्रस जीत की दहलीज़ पार नहीं कर पाई।


नाम न छापने की शर्त पर कांग्रस के एक प्रभावशाली नेता ने इस बात को स्वीकारा कि हम से ग़लतियां होती हैं। यदि इसे सुधारा न गया तो आने वाले समय में इसका भारी नुक़सान देखने को मिलेगा।