(अनवर चौहान)  नई दिल्ली । आईबी के स्पेशल डायरेक्टर और रॉ के चीफ रह चुके एएस दुल्लत ने याकूब मेनन की फांसी पर बे-बाक बात की। उन्होंने कहा कि ‘याकूब मेमन और अफजल गुरू दोनों की ही फांसी सुरक्षा के नजरिए से हमारे किसी काम की नहीं। इससे देश को कोई फायदा नहीं होगा। इससे हमें कुछ हासिल नहीं हुआ। बल्कि इससे कुछ लोगों (माइनॉरिटी) का दिल जरूर दुखा है। इससे कश्मीर में भी बुरा असर पड़ सकता है। वहां के लोगों की साइकी पर असर पड़ेगा। इसका ये मतलब क़तई नहीं है कि वहां कोई गोलियां चल जाएंगी यहा उपद्रव होगा लेकिन ये बात उनके दिल में घर कर सकती है।’एएस दुल्लत वीरवार को अपनी किताब ‘कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स’ की लॉन्चिग के लिए चंडीगढ़ पहुंचे थे। याकूब के मामले में पूछने पर बेबाक होकगर बाेले। कहा-‘मैं मानता हूं कि ट्रायल फेयर रहा होगा। ज्यूडिशियरी भी फेयर है। लेकिन बात अगर उसकी फांसी की है तो दैट इज ए वेस्ट। हमारे किसी काम की नहीं। अगर सीबीआई चीफ कहते हैं कि कोई डील नहीं हुई तो मानना चाहिए कि नहीं हुई होगी।’ सवाल उठता है कि जब कोई आपकी मदद कर रहा है तो बदले में आपको भी उसके बारे में सोचना चाहिए या नहीं। इसी वजह से बी.रमन ने अपने लेख में लिखा होगा कि याकूब को फांसी नहीं होनी चाहिए क्योंकि उसने इस केस में हमारी मदद की है। मुझे अफसोस इस बात का है कि अगर वे याकूब के बारे में अपने विचार लिख गए थे तो उनका सम्मान किया जाना चाहिए था। यही हिम्मत उन्होंने 2007 में इसे सार्वजनिक करने में भी दिखाई होती तो बात कुछ और होती। CRIMEINDIA ने ये बात कल ही लिख दिया था कि याक़ूब की फांसी से देश को कोई फायदा नहीं बल्कि नुक़सान होगा...कल हमने लिखा था...... क्या याक़ूब को फांसी देने का मक़सद आतंकियों को संदेश देना या आतंकियों को भयभीत करना मक़सद था....यदि ऐसा तो मैं इसे मूर्खता कहुंगा। 90 फीसदी आतंकी हथेली पर जान लेकर चलता है। वो मरने की बाद की ज़िंदगी पर भरोसा रखता है। उसका ब्रेन पूरी तरह साफ कर दिया जाता है... कि जिहाद करते हुए मरना.....सीधा जन्नती है....वो कामयाब और नाकामयाबी की परवाह नहीं करता....उसे सिर्फ मरने के बाद जन्नत दिखाई देती है। इसी लिए वो सुसाइड-बम भी बन जाता है। अब तक का इतिहास उठाकर देख लीजिए, जो भी आतंकी हमला करने आए वो पूरी तरह से ये मन बनाकर आए की उनको मरना है। उन्हें मौत से ज़्यादा जन्नतप्यारी है।