(अनवर चौहान)   नई दिल्ली,......30   जुलाई......सन 2015  का दिन....इतिहास के पन्नों की इबारत बन गया। एक तरफ इस मुल्क   का सिरमौर...इस मुल्क की आन-बान-शान.....अबुल-कलाम सुपुर्दे ख़ाक किए गए....तो वहीं दूसरी तरफ माथे पर आतंकी होने का कलंक लगवाकर याक़ूब मेनन को भी सुपुर्दे खाक किया गया। लेकिन मंज़र एक दम जुदा था...याक़ूब की ख़बर ने एपीजे अब्दुल कलाम की ख़बर मीडिया में दबकर रह गई......देश का आधा हिस्सा पूरी रात जागा और यक़ूब को दफनाए जाने तक वो मीडिया पर टिक-टिकी लगाए रहा। सरकार के सारे दावे खारिज हो गए....मुंबई पुलिस ने याक़ूब के परिवार वालों को हिदायत दी थी कि  सिर्फ क़रीबी रिश्तेदारों को बुलाकर याकूब की लाश को दफना दिया जाे। मगर पुलिस ऐसा करा न सकी....ड्यूटी पर 35000 हज़ार जवान तैनात किए गए थे.....मगर जब मुंबई का जन-सैलाब उमड़ा तो भीड़ में पुलिस वाले हवा हो गए। याकूब को मरीन लाइंस के बड़ा कब्रिस्‍तान में पिता की कब्र के बगल में दफनाया गया। इससे पहले माहिम दरगाह में उसके जनाजे की नमाज अदा की गई। इसमें हुजूम शामिल था। याकूब को दफन किए जाने के मद्देनजर पूरी मुंबई को हाई अलर्ट पर रखा गया था। याकूब की बॉडी पूरी पुलिस सुरक्षा में ले जाई गई। 20 से भी ज्‍यादा पीसीआर वैन्‍स साथ चल रही थी। मुंबई पुलिस ने 35 हजार से भी ज्‍यादा जवानों को पूरी मुंबई में तैनात कर रखा था। इनमें रैपिड एक्शन, क्‍यूआरटी (26/11 हमले के बाद बनी क्विक रेस्‍पॉन्‍स टीम) और सेंट्रेल फोर्सेज के जवान भी शामिल थे। इससे पहले गुरुवार सुबह 7 बजे याकूब को फांसी के फंदे पर लटकाया गया। पुलिस ने उसके परिवार वालों को हिदायत दी थी कि उसके जनाजे में केवल करीबी रिश्‍तेदार ही जाएंगे। पुलिस ने याकूब की फोटो खींचने की भी मनाही कर दी थी। लेकिन, जब उसकी लाश नागपुर सेंट्रल जेल से माहिम लाई गई तो वहां हजारों लोग जमा हो गए थे। म‍ाहिम में ही बिस्मिल्‍ला बिल्डिंग में याकूब का भाई सुलेमान रहता है। फांसी के वक्त ये थे मौजूद जेल में याकूब को फांसी देते समय कलेक्टर, जेल अधीक्षक, सीनियर जेलर, एसपी, जेल डीआईजी, एडीजी, मेडिकल अस्पताल के डीन व उनके दल समेत 20 उच्च स्तरीय अधिकारी मौजूद थे। फांसी यार्ड में 6 लोग थे। उस वक्त जेल के अंदर की सारी व्यवस्था विशेष कमांडो और क्यूआरटी के कंधों पर थी। 5 बजे आखिरी अर्जी खारिज, 7 बजे फांसी: सुनवाई के लिए आधी रात को खुला सुप्रीम कोर्ट देश के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट रात को खुला। याकूब की फांसी पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई हुई। जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने इस पर सुनवाई करते हुए सुबह पांच बजे इसे खारिज कर दिया। जस्टिस दीपक मिश्रा ने उसकी अर्जी खारिज करते हुए कहा कि याकूब को अपने बचाव के पर्याप्त मौके दिए गए। पांच बजे सुप्रीम कोर्ट का आखिरी फैसला आने के दो घंटे बाद याकूब को नागपुर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। 7.10 बजे डॉक्‍टर ने उसे मरा हुआ घोषित कर दिया। इसके बाद जेल में उसका पोस्‍टमॉर्टम हुआ और बॉडी उसके भाई को सौंप दी गई। नागपुर जेल में हुई 30वीं फांसी करीब 30 वर्ष बाद नागपुर की सेंट्रल जेल में किसी को फांसी दी गई। मुंबई बम धमाके का आरोपी याकूब मेमन देश में फांसी की सजा पाने वाला 57वां दोषी है। जेल की स्थापना वर्ष 1864 में हुई थी। इसमें फांसी की सजा पाने वाला सबसे पहला कैदी नंदाल था। 25 अगस्त, 1950 को उसे फांसी दी गई थी। उसके बाद 22 सितंबर 2950 को नारायण, 20 फरवरी 1951 सिपाराम, 26 जून 1951 सिताराम परव्या, 3 अगस्त 1951 को इमरान, 4 अक्टूबर 1951 भामय्या गोड़ा, 12 जनवरी 1952 को सरदार, 3 अगस्त 1952 में ही नियतो कान्हू, 5 अगस्त 1952 में अब्दुल रहमान, 2 सितंबर 1952 को गणपत सखाराम, 24 सितंबर 1952 सखाराम फाकसू, 19 मार्च 1953 में विन्सा हरी, 19 जून 1953 जागेश्वर मारोती, 4 जुलाई 1953 में प्रेमलाल, 15 सितंबर 1953 में लोटनवाला, 3 फरवरी 1956 में दयाराम बालाजी, 28 अगस्त 1959 में अब्बास खान वजिर खान, 15 फरवरी 1960 बाजीराव तवान्नों, 8 जुलाई 1970 में श्यामराव, 19 जनवरी 1973 में मोतीराम गोदान, और 5 जनवरी 1984 में आखिरी बार वानखेडे बंधुओं को फांसी दी गई है।