अनवर चौहान

बसपा सुप्रीमो मायावती की मां के निधन के बाद प्रियंका गांधी दिल्ली में तीन त्यागराज मार्ग पर उनसे मिलने पहुंचीं। इस दौरान जिस तरीके से प्रियंका गांधी और मायावती की मुलाकात हुई वह निश्चित तौर पर संवेदना व्यक्त करने वाली ही रही। लेकिन चलते वक़्त हुई मायावती और प्रियंका गांधी की बातचीत और बॉडी लैंग्वेज के राजनैतिक गलियारों में मायने निकाले जा रहे हैं।
दरअसल प्रियंका गांधी मायावती की मां के निधन के बाद उनको सांत्वना देने के लिए उनके घर तीन त्यागराज मार्ग पहुचीं थी। इस दौरान  मायावती ने उनके आने के लिए आभार व्यक्त किया तो प्रियंका गांधी ने भी कहा कि वो उनसे मिलने फिर आएंगी। राजनीतिक विश्लेषक एसएन शंखधर कहते हैं अगर आप प्रियंका गांधी और मायावती की मुलाकात का वह कुछ सेकंड का वीडियो देखें तो मायावती की बॉडी लैंग्वेज से लेकर प्रियंका गांधी की हुई बातचीत के मायने निकाल सकते हैं।
उनका कहना है कि मायावती ने जिस तरीके से प्रियंका गांधी की पीठ पर सिर्फ एक बार नहीं बल्कि दो बार अपनत्व के साथ हाथ रखकर उनका सांत्वना देने के लिए अभिवादन व्यक्त किया बल्कि आने के लिए धन्यवाद भी कहा वह शिष्टाचार ही था। प्रियंका गांधी का भी शिष्टाचार के नाते इस कठिन घड़ी में मुलाकात के बाद दोबारा मिलने का वायदा करना शिष्टाचार की श्रेणी में ही आता है। लेकिन शंखधर कहते हैं कि राजनैतिक शख्सियतों की इन मुलाकातों के मायने सिर्फ शिष्टाचार नहीं होते बल्कि उसके पॉलिटिकल मतलब होते ही हैं। खासतौर से तब जब माहौल चुनावी हो।
चुनाव के बाद की रणनीति के संकेत
शंखधर कहते हैं दरअसल उत्तर प्रदेश में जिस तरीके से चुनावी जमीन तैयार की जा रही है उससे एक बात तो स्पष्ट है कि सभी दल मिलकर भारतीय जनता पार्टी को हराना चाहते हैं। ऐसे में राजनैतिक दलों का बगैर गठबंधन के अलग-अलग चुनाव लड़ना एक अलग बात हो सकती है लेकिन बात जब सरकार बनने और बनाने पर आएगी तो ज्यादातर राजनीतिक दल एकजुट होकर भारतीय जनता पार्टी के विरोध में खड़े होंगे।

राजनैतिक विश्लेषक एसएन शुक्ला कहते हैं कि प्रियंका गांधी और मायावती की मुलाकात एक ऐसे माहौल में हुई जिसमें संवेदनाएं और शिष्टाचार ही था। लेकिन राजनीतिक गलियारों में प्रियंका गांधी के इस बात के मायने निकाले जा रहे हैं कि वो मायावती से फिर मिलने आएंगी। शुक्ला के मुताबिक बसपा को कोई भी पार्टी कमतर नहीं आंक सकती है। ऐसे में राजनीतिक परिणामों के बाद संबंध बेहतर रहे और सत्ता के नजदीक पहुंचने के लिए बातचीत का सिलसिला चलता रहे उस मायने में यह मुलाकात और यह बातचीत निश्चित तौर पर बड़ा संदेश देती है।
चुनावी वक्त में हर मुलाकात के सियासी मायने
अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में मायावती ने अभी तक गठबंधन के किसी भी तरीके के पत्ते नहीं खोले हैं। इसलिए कई दल मायावती से मिलकर चुनाव लड़ने के लिए अलग अलग तरीके के प्रयास कर रहे हैं। बसपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि आगामी विधानसभा के चुनाव में किसी पार्टी से गठबंधन होगा या नहीं इसको लेकर अभी पूरी तरीके से रणनीति नहीं बनी है। फिलहाल अभी के हालातों के मुताबिक बसपा अपने दम पर उत्तर प्रदेश के सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।
राजनीतक विश्लेषक शंखधर कहते हैं दरअसल उत्तर प्रदेश चुनाव में चार प्रमुख बड़ी पार्टियों भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस के अलावा कई ऐसे छोटे राजनीतिक दल भी बहुत ज्यादा सक्रिय हैं जिनको साथ लेना राजनीतिक दलों की न सिर्फ मजबूरी होगी बल्कि जरूरत भी होगी। उनके मुताबिक संभव है कि प्रमुख राजनैतिक दल बगैर किसी गठबंधन के चुनाव लड़ें लेकिन बाद में इनका गठबंधन जरूरत के मुताबिक होना तय है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के राजनेताओं की मुलाकातों को सिर्फ सामान्य मुलाकात समझना समझदारी नहीं होगी। वो कहते हैं हर मुलाकात के कोई न कोई राजनैतिक मायने जरूर हैं। भले ही उन मुलाकातों के दरमियान होने वाली बातचीत और करार सिरे चढ़ें या न चढ़ें।