अनवर चौहान

बात उन दिनों की है जब देवानंद भारतीय किशोरियों के दिल पर राज कर रहे थे.टेलिविजन की शुरुआत नहीं हुई थी. यहाँ तक कि रेडियो में भी कुछ ही घंटों के लिए कार्यक्रम आते थे. एक दिन 15 साल की बच्ची शीला कपूर ने तय किया कि वो प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मिलने उनके `तीनमूर्ति` वाले निवास पर जाएंगी. वो `डूप्ले लेन` के अपने घर से निकली और पैदल ही चलते हुए `तीनमूर्ति भवन` पहुंच गईं.



गेट पर खड़े एकमात्र दरबान ने उनसे पूछा, आप किससे मिलने अंदर जा रही हैं? शीला ने जवाब दिया `पंडितजी से`. उन्हें अंदर जाने दिया गया. उसी समय जवाहरलाल नेहरू अपनी सफ़ेद `एंबेसडर` कार पर सवार हो कर अपने निवास के गेट से बाहर निकल रहे थे. शीला ने उन्हें `वेव` किया. उन्होंने भी हाथ हिला कर उनका जवाब दिया. क्या आप आज के युग में प्रधानमंत्री तो दूर किसी मामूली विधायक के घर पर इस तरह घुसने की जुर्रत कर सकते हैं? शीला कपूर भी कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थीं कि जिस शख़्स ने इतनी गर्मजोशी से उनके अभिवादन का जवाब दिया है, 32 साल बाद वो उसके ही नाती के मंत्रिमंडल की महत्वपूर्ण सदस्य होंगीं.दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास की पढ़ाई करने के दौरान शीला की मुलाकात विनोद दीक्षित से हुई जो उस समय कांग्रेस के बड़े नेता उमाशंकर दीक्षित के इकलौते बेटे थे.


शीला याद करती हैं, "हम इतिहास की `एमए` क्लास में साथ साथ थे. मुझे वो कुछ ज्यादा अच्छे नहीं लगे. मुझे लगा ये पता नहीं वो अपने-आप को क्या समझते हैं. थोड़ा अक्खड़पन था उनके स्वभाव में.``
उन्होंने बताया, "एक बार हमारे कॉमन दोस्तों में आपस में ग़लतफ़हमी हो गई और उन्होंने मामले को सुलझाने के लिए हम-दूसरे के नज़दीक ज़रूर आ गए.`` विनोद अक्सर शीला के साथ बस पर बैठ कर फ़िरोज़शाह रोड जाया करते थे, ताकि वो उनके साथ अधिक से अधिक समय बिता सकें.


शीला बताती हैं, `हम दोनों डीटीसी की 10 नंबर बस में बैठे हुए थे. अचानक चांदनी चौक के सामने विनोद ने मुझसे कहा, मैं अपनी माँ से कहने जा रहा हूँ कि मुझे वो लड़की मिल गई है जिससे मुझे शादी करनी है. मैंने उनसे पूछा, क्या तुमने लड़की से इस बारे में बात की है? विनोद ने जवाब दिया, `नहीं, लेकिन वो लड़की इस समय मेरी बग़ल में बैठी हुई है.` शीला ने कहा, `मैं ये सुनकर अवाक् रह गई. उस समय तो कुछ नहीं बोली, लेकिन घर आ कर खुशी में ख़ूब नाची. मैंने उस समय इस बारे में अपने माँ-बाप को कुछ नहीं बताया, क्योंकि वो ज़रूर पूछते कि लड़का करता क्या है? मैं उनसे क्या बताती कि विनोद तो अभी पढ़ रहे हैं.`

बहरहाल दो साल बाद इन दोनों की शादी हुई. शुरू में विनोद के परिवार में इसका ख़ासा विरोध हुआ, क्योंकि शीला ब्राह्मण नहीं थी. विनोद ने `आईएएस` की परीक्षा दी और पूरे भारत में नौंवा स्थान प्राप्त किया. उन्हें उत्तर प्रदेश काडर मिला. एक दिन लखनऊ से अलीगढ़ आते समय विनोद की ट्रेन छूट गई. उन्होंने शीला से अनुरोध किया कि वो उन्हें ड्राइव कर कानपुर ले चलें ताकि वो वहाँ से अपनी ट्रेन पकड़ लें. शीला बताती हैं, `मैं रात में ही भारी बरसात के बीच विनोद को अपनी कार में बैठा कर 80 किलोमीटर दूर कानपुर ले आई. वो अलीगढ़ वाली ट्रेन पर चढ़ गए. जब मैं स्टेशन के बाहर आई तो मुझे कानपुर की सड़कों का रास्ता नहीं पता था."


उस वक़्त रात के डेढ़ बजे थे. शीला ने कुछ लोगों से लखनऊ जाने का रास्ता पूछा, लेकिन कुछ पता नहीं चल पाया. सड़क पर खड़े कुछ मनचले उन्हें देख कर किशोर कुमार का वो मशहूर गाना गाने लगे, ` एक लड़की भीगी भीगी सी.` तभी वहां कॉन्स्टेबल आ गया. वो उन्हें थाने ले गया. वहाँ से शीला ने एसपी को फ़ोन किया, जो उन्हें जानते थे. उन्होंने तुरंत दो पुलिस वालों को  शीला के साथ कर दिया. शीला ने उन पुलिस वालों को कार की पिछली सीट पर बैठाया और खुद ड्राइव करती हुई सुबह 5 बजे वापस  लखनऊ पहुंची. शीला दीक्षित ने राजनीति के गुर सीखे अपने ससुर उमाशंकर दीक्षित से, जो इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में गृह मंत्री हुआ करते थे और बाद में कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल भी बने.
एक दिन उमाशंकर दीक्षित ने इंदिरा गांधी को खाने पर बुलाया और शीला ने उन्हें भोजन के बाद गर्मागर्म जलेबियों के साथ वनीला आइस क्रीम सर्व की.


शीला बताती है, "इंदिराजी को ये प्रयोग बहुत पसंद आया. अगले ही दिन उन्होंने अपने रसोइए को इसकी विधि जानने के लिए हमारे यहाँ भेजा. उसके बाद कई बार हमने खाने के बाद मीठे में यही सर्व किया. लेकिन इंदिरा गाँधी के देहांत के बाद मैंने वो सर्व करना बंद कर दिया.`` इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद कोलकाता से जिस विमान से राजीव गाँधी दिल्ली आए थे, उस में बाद में भारत के राष्ट्रपति बने प्रणब मुखर्जी के  साथ साथ शीला दीक्षित भी सवार थी.
शीला बताती हैं, "इंदिराजी की हत्या की सबसे पहले ख़बर मेरे ससुर उमा शंकर दीक्षित को मिली थी, जो उस समय पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे. जैसे ही विंसेंट जार्ज के एक फ़ोन से उन्हें इसका पता चला, उन्होंने मुझे एक बाथरूम में ले जा कर दरवाज़ा बंद किया और कहा कि मैं किसी को इसके बारे में न बताऊँ.`` जब शीला दिल्ली जाने वाले जहाज़ में बैठीं तो राजीव गाँधी को भी इसके बारे में पता नहीं था. ढाई बजे वो कॉकपिट में गए और बाहर आकर बोले कि इंदिराजी नहीं रहीं.`


शीला दीक्षित आगे बताती हैं, ``हम सब लोग विमान के पिछले हिस्से में चले गए. राजीव ने पूछा कि ऐसी परिस्थितियों में क्या करने का प्रावधान है? प्रणब मुखर्जी ने जवाब दिया, पहले भी ऐसे हालात हुए हैं. तब वरिष्ठतम मंत्री को अंतरिम प्रधानमंत्री बना कर बाद में प्रधानमंत्री का विधिवत चुनाव हुआ है.` उन्होंने जवाब दिया, ``प्रणब ही उस समय सबसे वरिष्ठ मंत्री थे. हो सकता है उनकी इस सलाह के ये माने लगाए गए कि वो खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. जब राजीव चुनाव जीत कर आए तो उन्होंने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया और बाद में उन्हें पार्टी तक से निकाल दिया गया."
जब राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने शीला दीक्षित को अपने मंत्रिमंडल में लिया पहले संसदीय कार्य मंत्री के रूप में और बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री के रूप में. 1998 में सोनिया गाँधी ने उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया. वो न सिर्फ़ चुनाव जीतीं बल्कि लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं. ये पूछे जाने पर कि 15 साल के उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है, शीला दीक्षित कहती हैं, ` पहला `मेट्रो`, दूसरा `सीएनजी` और तीसरा दिल्ली की हरियाली, स्कूलों और अस्पतालों के लिए काम करना. उन्होंने कहा, ``इन सबने दिल्ली के लोगों की निजी ज़िंदगी पर बहुत असर डाला. मैंने पहली बार लड़कियों को स्कूल में लाने के लिए उन्हें `सेनेटरी नैपकिन` बंटवाए. मैंने दिल्ली में कई विश्वविद्यालय बनवाए और `ट्रिपिल आईआईटी` भी खोली.``
दिलचस्प बात ये है तीन बार चुनाव जीतने के बावजूद कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने उनका विरोध करना जारी रखा. नौबत यहाँ तक आई कि दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष रामबाबू गुप्त ने, जो दिल्ली नगर निगम के सभासद भी थे, उनके निज़ामुद्दीन ईस्ट वाले फ़्लैट की जाँच के आदेश दे दिए कि कहीं उसमें भवन निर्माण कानूनों का उल्लंघन तो नहीं हुआ है.


वो आगे बताती हैं, "जब उन्हें कुछ नहीं मिला तो उन्होंने मेरी बहन से फ़्लैट के कागज़ात मांगे, जो उन्हें उपलब्ध कराए गए और ये तब हुआ जब मैं दिल्ली की मुख्यमंत्री थी. ये बताता है कि राजनीति किस हद तक नीचे जा सकती है." उनके कार्यकाल को दौरान एक चुनौती और आई जब राष्ट्रमंडल खेल गाँव के बग़ल में बने अक्षरधाम मंदिर के स्वामी ने उनसे मांग की कि खेलगाँव में सिर्फ़ शाकाहारी भोजन ही परोसा जाए. शीला याद करती हैं, ``स्वामीनारायण मंदिर के स्वामी को इस बात की अनुमति नहीं है कि वो महिलाओं की तरफ़ देखें. इसलिए जब वो मुझसे मिलने आए तो उन्हें दूसरे कमरे में बैठाया गया. जब भी उन्हें कुछ कहना होता तो एक संदेशवाहक उनका संदेश ले कर आता और फिर मुझे उसका जो उत्तर देना होता, वो भी एक संदेश वाहक ही उनके पास ले कर जाता.``

शीला ने बताया, "मैंने उनकी शाकाहारी भोजन बनवाने की बात इसलिए नहीं मानी कि इससे भारत की बदनामी होगी. मैंने उनको ये आश्वासन  ज़रूर दिया कि खेलगाँव से निकले कूड़े-करकट को बिल्कुल अलग नाले से बाहर निकाला जाएगा." शीला दीक्षित के दो बच्चे हैं. बेटे संदीप दीक्षित लोकसभा में पूर्वी दिल्ली का प्रतिननिधित्व कर चुके हैं. उनकी बेटी लतिका बताती हैं, "जब हम छोटे थे तो अम्मा बहुत `स्ट्रिक्ट` थीं. जब हम लोग कुछ ग़लत करते थे और वो नाराज़ होती थीं तो वो हम दोनों को बाथरूम में बंद कर देती थी. उन्होंने हम पर हाथ कभी नहीं उठाया. पढ़ने लिखने पर वो इतना ज़ोर नहीं देती थीं, जितना तमीज़ और तहज़ीब पर."

शीला दीक्षित को पढ़ने के अलावा फ़िल्में देखने का भी बहुत शौक है. लतिका ने बताया, ``एक ज़माने में वो शाहरूख़ ख़ाँ की बहुत बड़ी फ़ैन थी. उन्होंने `दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे`, इतनी बार देखी थी कि हम लोग परेशान हो गए थे.`` इससे पहले वो दिलीप कुमार और राजेश खन्ना की बड़ी फ़ैन हुआ करती थीं. संगीत की भी वो दीवानी हैं. शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता है जब वो बिना संगीत सुने बिस्तर पर जाती हैं. 15 वर्षों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहने के बाद शीला दीक्षित वर्ष 2013 का विधानसभा चुनाव हार गईं.


जब उनसे पूछा गया कि इसके पीछे वजह क्या थी, शीला दीक्षित का जवाब था,` केजरीवालजी ने जो बहुत सारी चीज़ें कह दीं कि `फ़्री` पानी दे दूंगा, `फ़्री` बिजली दे दूंगा, इसका बहुत असर हुआ. लोग उनकी बातों में आ गए. दूसरा जितनी गंभीरता से हमें उन्हें लेना चाहिए था, उतनी गंभीरता से हमने उन्हें नहीं लिया.`` शीला मानती हैं कि दिल्ली के लोग भी सोचने लगे थे कि इन्हें तीन बार तो इन्हें जितवा दिया, अब इन्हें बदला जाए. निर्भया बलात्कार कांड का भी हम पर बहुत बुरा असर पड़ा. उन्होंने कहा, ``बहुत कम लोगों को पता था कि कानून और व्यवस्था दिल्ली सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं थी, बल्कि केंद्र सरकार की थी. तब तक केंद्र सरकार भी 2जी, 4जी जैसे कई घोटालों का शिकार हो चुकी थी, जिसका ख़ामियाज़ा हमें भी भुगतना पड़ा.``