अनवर चौहान

जम्मू कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री मेहर चंद महाजन ने भारतीय के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को हाथ जोड़ते हुए कहा- “सेना दीजिए, राज्य को लीजिए जो भी आप अधिकार देना चाहते हैं लोकप्रिय पार्टी (शेख अब्दुल्ला की अध्यक्षता वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस) को दे दीजिए। लेकिन, इसी शाम को सेना को फ्लाई करना होगा। नहीं तो, मैं जिन्नाह (मोहम्मद अली) से शर्त के साथ बात करुंगा क्योंकि इस शहर को बचाना जरुरी है।”   
यह 26 अक्टूबर 1947 का दिन था और नेहरू के आवास पर हो रही इस बैठक में जम्मू कश्मीर के भविष्य पर फैसला होना था।
पीएम महाजन की इस धमकी के बाद, नेहरू ने जम्मू कश्मीर के पीएम से कहा- “महाजन, चले जाओ।”
जैसे ही महाजन वहां से जाने के लिए उठे सरदार पटेल ने उन्हें रोका और उनके कान में कहा- “बिल्कुल महाजन, आप पाकिस्तान नहीं जा रहे हैं।”
महाजन की यह धमकी कि वह लाहौर जाकर जिन्ना से डील करेंगे हवा में तैर रही थी कि तभी पीएम महाजन को एक पेपर का टुकड़ा बढ़ाया गया।
महाजन ने याद करते हुए बताया- “शेख अब्दुल्ला जो उस वक्त प्रधानमंत्री के आवास पर मौजूद थे वह इन सभी बातों को सुन रहे थे। इस गंभीर स्थिति को भांपते हुए उन्होंने एक पेपर के टुकड़े को स्लीप बनाकर भेजा। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उसे पढ़ा और कहा कि जो मैं (महाजन) बोल रहे थे वही राय शेख साहिब की भी थी।” उसके बाद नेहरू का रूख पूरी तरह से बदल गया।
  अब्दुल्ला जो राज्य में लोकतांत्रिक सरकार (सिविल गवर्नमेंट) की अगुवाई करना चाहते थे, वह भी जिन्ना के खिलाफ थे और कश्मीर पाकिस्तान को दिए जाने का विरोध किया।
महाजन की ये सभी बातें और भारत को मिले कश्मीर की यह पूरी कहानी उनकी जीवनी (आटोबायाग्राफी) ‘लूकिंग बैक’ जिसे पहले 1963 में प्रकाशित की गई थी और उसे आखिरी बार 1995 में प्रकाशित होने के 23 साल बाद फिर से प्रकाशित की जा रही है।  
हर-आनंद पब्लिकेशंस के चेयरमैन ने बताया- “कश्मीर का अतीत, वर्तमान और भविष्य भारतीय प्रायद्वीप और देश के लिए काफी अहमियत रखता है इसलिए हमने यह फैसला किया है कि इसके अपडेटेड वर्जन की बुक को फिर से प्रकाशित की जाए। अपडेटेड वर्जन में दो नए अध्याय होंगे जो आखिरी बार प्रकाशित होने के दौरान नहीं जोड़े गए थे। नए अध्यायों को खुद महाजन ने लिखा है जिन्हें उनके परिवार की तरफ से हमें दिया गया।”