नोटबंदी के बाद आई रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट सालाना की चर्चा हर अख़बार के पहले पन्ने पर है. `इंडियन एक्सप्रेस` ने पहले पन्ने पर लिखा है, "आंकड़े सवाल पैदा करते हैं, क्या इतनी मुश्किलें झेलना ज़रूरी था."`दैनिक भास्कर` ने पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम का बयान छापा है जिसमें उन्होंने कहा है कि सरकार ने 21 हज़ार करोड़ रुपये खर्च कर सिर्फ़ 16 हज़ार करोड़ रुपये बचाए. यानी सिर्फ 16 हज़ार 50 करोड़ रुपये के नोट वापिस बैंक नहीं आए जो कुल रकम का 1 फीसदी ही है.`हिंदुस्तान टाइम्स` ने अरुण जेटली का बयान छापा है जिसमें उन्होंने कहा है कि नोटबंदी पैसों को ज़ब्त करने की कोशिश नहीं थी बल्कि इसका उद्देश्य कैश इकोनोमी कम कर उसे डिजटल का तरफ ले जाना, टैक्स देने वालों की संख्या बढ़ाना और काले धन से लड़ना था.

अख़बार के अऩुसार जेटली का कहना था कि जिन लोगों ने अपने कार्यकाल में कालेधन के ख़िलाफ़ एक भी कदम नहीं उठाया उन्हें नोटबंदी का मकसद समझ नहीं आएगा. `जनसत्ता` ने लिखा कि नोटबंदी के कारण नए नोटों को प्रिंट करने की लागत लगभग दोगुना बढ़ी और अब यह लागत 7,965 करोड़ रुपये हो गई है.