अनवर चौहान
आतंकवादी संगठन ISIS का गठन अप्रैल वर्ष 2013 में हुआ और गठन के शुरूआत में ही यह कहा जाने लगा कि यह अक्तूबर वर्ष 2006 में गठित होने वाली अलक़ायदा की शाखा “दौलतुल इराक़ अलइस्लामिया” और सीरिया में सक्रिय सशस्त्र तकफ़ीरी गुट नुस्रा फ़्रंट को मिलाकर बनाया गया। इसके दो महीने बाद अलक़ायदा के सरग़ना अयमन अज़्ज़वाहिरी के आदेश पर इस विलय को समाप्त कर दिया गया किन्तु तब तक अबू बक्र बग़दादी विलय की प्रक्रिया को पूरा कर चुका था और इराक़ और सीरिया में आतंक फैलाने वाला और लोगों का जनसंहार करने वाला सबसे बड़ा संगठन आईएसआईएस दाइश अस्तित्व में आ चुका था।  आईएसआईएस या दाइश, इस्लामिक स्टेट आफ़ इराक़ एंड लिवेंट का संक्षेप है जबकि इराक़ और सीरिया में जिन क्षेत्रों पर इनका नियंत्रण है वहां के स्थानीय लोग इशारों में संगठन को “दौलत” या सरकार कहते हैं। यह सशस्त्र तकफ़ीरी सलफ़ी और जेहादी संगठन है जिसका घोषित उद्देश्य इस्लामी शासन व्यवस्था और इस्लामी क़ानून को लागू करना है।  इस आतंकवादी संगठन के गठन, इसके अस्तित्व में आने, इसकी गतिविधियों, लक्ष्यों और कौन से देशों से इसके संपर्क है, इस बारे में विरोधाभासी बातें बयान की जाती हैं। इस विषय पर चर्चा और टीका टिप्पणी, इस संगठन के गठन से लेकर आज तक जारी है। चर्चा और टीका टिप्पणी इतनी अधिक हो गयी कि इस चरमपंथी संगठन की सही पहचान, इसके लक्ष्य और उद्देश्य भुला दिये गये हैं।कुछ लोगों का कहना है कि यह सीरिया में अलक़ायदा की एक शाखा है जबकि दूसरों का कहना है कि यह एक स्वतंत्र संगठन है जो इस्लामी सरकार के गठन का प्रयास कर रहा है, तीसरे गुट का कहना है कि सीरिया सरकार के विरोधियों को विभाजित करने के लिए सीरिया की सरकार ने इस संगठन का गठन किया, इधर उधर, यहां वहां के बीच मन में यह प्रश्न उठता है कि आईएसआईएस क्या है?


हालांकि यह संगठन सीरिया में अस्तित्व में आया किन्तु यह कोई नया संगठन नहीं है बल्कि क्षेत्र विशेषकर सीरिया में संघर्षरत सभी सशस्त्र गुटों से सबसे पुराना संगठन है। इस संगठन के गठन का इतिहास वर्ष 2004 की ओर पलटता है जब ख़ूंख़ार आतंकवादी अबू मुस्सअब ज़रक़ावी ने जमातुत्तवहीद व अलजेहाद नामक संगठन का गठन किया और ओसामा बिन लादेन के नेतृत्व में आतंकवादी संगठन अलक़ायदा के आज्ञापालन का प्रण लिया और इस प्रकार से वह क्षेत्र में अलक़ायदा का प्रतिनिधि हो गया। इस संगठन ने इराक़ पर अमरीकी सैन्य चढ़ाई के बाद से अपनी गतिविधियां आरंभ की। इस संगठन ने अमरीकी सैनिकों के विरुद्ध जेहाद की घोषणा कर दी और यही कारण था कि देश के कोने कोने से युवा अमरीकी सैनिकों के विरुद्ध लड़ने के लिए इस संगठन से जुड़ते रहे और बहुत तेज़ी से इस संगठन ने इराक़ी युवाओं में पैठ बना लिया और इसके परिणाम स्वरूप यह इराक़ का सबसे शक्तिशाली छापामार गुट बन गया। वर्ष 2006 में अबू मुस्सअब ज़रक़ावी ने एक वीडियो संदेश में अब्दुल्लाह रशीद अलबग़दादी के नेतृत्व में मुजाहेदीन परिषद का गठन किया। इसी महीने ज़रक़ावी मारा गया और उसके बाद अबू हमज़ा अल मुहाजिर को इराक़ में अलक़ायदा का मुखिया बना दिया गया।


2006 के अंत तक विभिन्न संगठनों को मिलाकर एक संगठन बनाया गया जिसका लक्ष्य उसके नाम से साफ़ तौर पर स्पष्ट होता है, दौलतुल इस्लामिया फ़िल इराक़ वश्शाम। अर्थात इराक़ और सीरिया में इस्लामी संगठन । इस संगठन का मुखिया अबू उमर अबग़दादी था। 19 अप्रैल वर्ष 2010 में, अमरीकी सैनिकों ने सरसार क्षेत्र में एक घर पर हमला किया जिसमें अबू उमर अलबग़दादी और अबू हमज़ा अल मुहाजिर मौजूद थे। हमले के बाद दोनों ओर से ज़बरदस्त फ़ायरिंग होने लगी जिसके बाद अमरीकी सैनिकों ने हेलीकाप्टर की मदद ली और अमरीकी सैन्य हेलीकाप्टर ने उस घर पर भीषण बमबारी कर दी जिसमें दोनों मारे गये। एक सप्ताह के बाद संगठन ने इन्टरनेट पर एक बयान जारी करके अपने दोनों सरग़नाओं के मारे जाने की पुष्टि की । इस घटना के दस दिन के बाद मुजाहेदीन परिषद की बैठक बुलाई गयी ताकि अबू बक्र अलबग़दादी को संगठन का मुखिया चुना जाए। अब प्रश्न यह उठता है कि इस संगठन का मुखिया अबू बक्र बग़दादी कौन है। अबू बक्र अल बग़दादी का जन्म इराक़ के सामर्रा नगर में वर्ष 1971 में हुआ था। संगठन की ओर उसे कई नामों से पुकारा जाता था जैसे अली बदरी सामर्राई, अबू दुआ, डाक्टर इब्राहीम, अल कर्रार और अबू बक्र अलबग़दादी। उसने बग़दाद विश्वविद्यालय से इस्लामी विषय से ग्रेजुएशन की डिग्री ली और फिर अपनी शिक्षा जारी रखते हुए पीएचडी करने के बाद धर्म प्रचारक और शिक्षक बन गया।

 उसका जन्म सलफ़ी तकफ़ीरी आस्था रखने वाले परिवार में हुआ और उसके पिता अलबू बदरी क़बीले के गणमान्य लोगों में थे। इसी प्रकार उसके चाचा, तकफ़ीरी विचारधारा के प्रचारकों में थे। अबू बक्र बग़दादी ने धर्म के प्रचार और प्रशिक्षण से अपना काम आरंभ किया किन्तु वह जेहादी विचारधारा की ओर अधिक झुकाव रखता था। इस प्रकार से वह इराक़ के दियाला और सामर्रा में जेहादी पृष्ठिभूमि के केन्द्रों में से एक केन्द्र में परिवर्तित हो गया। उसने सबसे पहले अपनी गतिविधियां इमाम अहमद बिन हंबल नामक मस्जिद से आरंभ की और क्षेत्र के कुछ युवाओं को मिलाकर एक सशस्त्र गुट बनाया और उसके बाद उसके गुट ने कई आतंकवादी कार्यवाहियां अंजाम दीं। उसके बाद अबू बक्र बग़दादी ने जैशे अहले सुन्नत व अल जमाअत नामक संगठन का गठन किया जिसने इराक़ के बग़दाद, सामर्रा और दियाला में कई आतंकवादी कार्यवाहियां अंजाम दी। उसके बाद उसने अपने संगठन को मुजाहिद परिषद में विलय कर दिया और उसके बाद एक शरिया अदालत की स्थापना की और दौलतुल इराक़ अल इस्लामिया नामक संगठन के गठन तक उसका सदस्य बना रहा।


धीरे धीरे अबू बक्र अल बग़दादी, अबू उमर अल बग़दादी से निकट होता गया और मामला यहां तक पहुंच गया कि अबू उमर अल बग़दादी ने  अपनी मौत से पहले यह वसीयत की कि उसकी मौत के बाद अबू बक्र अलबग़दादी उसका उतराधिकारी होगा। 16 मार्च वर्ष 2010 को अबू बक्र अलबग़दादी को दौलतुल इस्लामिया फ़िल इराक़ का मुखिया बना दिया गया। इस संगठन ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में कई आतंकवादी कार्यवाहियां और हज़ारों निर्दोष लोगों का जनसंहार किया। इस संगठन ने अलक़ायदा के पूर्व प्रमुख ओसामा बिन लादेन की मौत का बदला लेने के लिए कई आतंकवादी कार्यवाहियां अंजाम दी जिसमें सैकड़ों पुलिसकर्मी, सुरक्षा कर्मी और नागरिक मारे गये हैं। आंकड़ों के अनुसार इस गुट ने ओसामा की मौत का बदला लेने के लिए सौ से अधिक कार्यवाहियां अंजाम दी हैं जिसमें इराक़ के सेन्ट्रल बैंक, न्याय मंत्रालय और अबू ग़ुरैब जेल और कूत की जेल पर हमले का उल्लेख किया जा सकता है।  सीरिया संकट से लाभ उठाते हुए अबू बक्र अलबग़दादी सीरिया युद्ध में कूद पड़ा और अन्य तकफ़ीरी संगठनों के साथ सीरिया की जनसरकार से युद्धरत हो गया। इसी प्रकार से आईएसआईएस को सीरिया से लेकर इराक़ की सीमा तक अपनी गतिविधियां जारी रखने का अवसर मिल गया। सीरिया में अलक़ायदा के लड़ाके नुस्रा फ्रंट के झंठे तले एकत्रित होने लगे जिसका मुखिया अबू मुहम्मद जौलानी है। धीरे धीरे नुस्रा फ़्रंट ने अपनी शक्ति में वृद्धि की और कुछ ही महीनों में सरकार के विरुद्ध लड़ने वाला सबसे बड़ा सशस्त्र गुट बन गया। नुस्रा फ़्रंट द्वारा अयमन ज़वाहिरी के नेतृत्व में अफ़ग़ानिस्तान में अलक़ायदा की आज्ञा पालन की प्रतिबद्धता की घोषणा के साथ ही सूचनाओं के आदान प्रदान सहित कई मामलों में दौलतुल इस्लामिया फ़िल इराक़ के साथ उसके संबंध आगे बढ़ने लगे और नौ फ़रवरी को एक वीडियो फ़ुटेज द्वारा अबू बक्र अलबग़दादी ने नुस्रा फ़्रंट के दौलतुल इस्लामिया फ़िल इराक़ में विलय की घोषणा की और इस प्रकार यह संगठन इस्लामिक स्टेट आफ़ इराक़ एंड सीरिया आईएसआईएस या आईएसआईएल के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

इस घोषणा के थोड़े ही दिन के बाद नुस्रा फ़्रंट के मुखिया अबू मुहम्मद जौलानी ने अपने एक आडियो टेप में दौलतुल इस्लामिया फ़िल इराक़ के साथ अपने संबंधों को स्वीकार किया किन्तु साथ ही विलय की घोषणा के बावजूद उसने मुजाहेदीन परिषद या उसके सदस्यों को मानने से इन्कार कर दिया। उसने यह घोषणा की कि अयमन ज़वाहिरी के नेतृत्व में नुस्रा फ़ंट अफ़ग़ानिस्तान में अलक़ायदा की आज्ञा पालन की प्रतिबद्धता प्रकट  करता है। यहां पर यह बात भी उल्लेखनीय है कि आईएसआईएस और नुस्रा फ़्रंट ने मिलकर कई आतंकवादी कार्यवाही की किन्तु बग़दादी की घोषणा के साथ ही दोनों के मध्य शीतयुद्ध आरंभ हो गया जो अब तक जारी है।  नुस्रा फ़्रंट और आईएसआईएस दोनों की तकफ़ीरी चरमपंथी विचारधारा के स्वामी हैं और दोनों ही सलफ़ी जेहादी विचार धारा के आधार पर सीरिया में इस्लामी सरकार का गठन चाहते हैं किन्तु दोनों संगठनों में ज़मीन आसमान का अंतर है। सीरिया संकट के आरंभिक चरण से ही नुस्रा फ़्रंट ने सीरिया की ज़मीनी वास्तविकता से लाभ उठाया किन्तु आईएसआईएस को सीरिया जनता की सामाजिक स्थिति के बारे में इतना अनुभव नहीं था इसीलिए उन्होंने शक्ति के बल पर उन क्षेत्रों की जनता को अपने आदेश मनवाने पर विवश किया जहां पर उनका नियंत्रण था।

फ़्री सीरियन आर्मी और आईएसआईएस के संबंध, नुस्रा फ़्रंट के साथ दाइश के संबंधों की तुलना में अधिक रक्तरंजित व हिंसक रहे हैं क्योंकि आईएसआईएस ने फ़्री सीरियन आर्मी से जुड़े हर गुट को अधर्मी और काफ़िर घोषित कर दिया था जिसके परिणाम स्वरूप में दोनों पक्षों में ज़बरदस्त हिंसक झड़पें हुईं जिसके दौरान सैकड़ों लोग मारे गये । दाइश ने फ़्री सीरियन आर्मी के विरुद्ध फ़तवा दिया कि यह गुट अधर्मी हो गया है और सीरिया की केन्द्रीय सरकार के साथ संपर्क में है और इस फ़तवे को आधार बनाकर फ़्री सीरियन आर्मी के लड़ाकों पर निरंतर हमले किये गये। टीकाकारों का कहना है कि आईएसआईएस और फ़्री सीरियन आर्मी के मध्य तेल के स्रोतों, अपने नियंत्रण के क्षेत्रों में विस्तार, सीमावर्ती क्षेत्रों पर क़ब्ज़े को लेकर हलब और हसका में भीषण झड़पें हुई। इसी प्रकार दोनों पक्ष हसका में तेल से समृद्ध क्षेत्रों और रक़्क़ह में तेल के कुओं पर नियंत्रण तथा तुर्की से लगी सीमा पर नियंत्रण के लिए भी भीषण झड़पें हुईं। आईएसआईएस ने फ़्री सीरियन आर्मी के विरुद्ध “सरकार का एजेन्ट” बताते हुए युद्ध की घोषणा कर दी और इसके चलते फ़्री सीरियन आर्मी धीरे धीरे कमज़ोर पड़ती गयी क्योंकि आईएसआईएस ने फ़्री सीरियन आर्मी के अंतर्गत काम करने वाले विभिन्न गुटों के ठिकानों पर कई आत्मघाती आक्रमण किए जिसमें फ़्री सीरियन आर्मी के कई वरिष्ठ कमान्डर मारे गये।

सीरिया की उत्तरी सीमा पर क़ब्ज़े के प्रयास में आईएसआईएस के लड़ाके, हसका, क़ामुश्ली और इन्दान क्षेत्रों में कुर्द लड़ाके से भिड़ गये जिसके बाद दोनों पक्षों में भीषण युद्ध हुआ और अंततः आईएसआईएस के लड़ाकों ने इन क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया और अपने दृष्टिगत शरीया क़ानून लागू कर दिया। शरीया क़ानून के लागू होने के बाद आईएसआईएस की मनमानी आरंभ हो गयी और उन्होंने कुर्द नागरिकों का धर्म के विरुद्ध कार्यवाही करने के आरोप में जनसंहार आरंभ कर दिया। आईएसआईएस ने कुर्दों पर भी विदेश से सहयोग और सीरिया की केन्द्रीय सरकार के लिए काम करने का आरोप लगाया। अपने क्षेत्रों को आईएसआईएस के हाथों में जाता देखकर कुर्दों ने ज़बरदस्त मुक़ाबला किया जिसके बाद भीषण झड़पें आरंभ हो गयी और कुर्दों ने पुनः अपने क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया। कुर्द क्षेत्रों पर नियंत्रण के बाद कुर्दों ने क्षेत्र की घेराबंदी कर दी जो अब तक जारी है।

आईएसआईएस के लड़ाकों ने हलब से 120 कुर्दों का अपहरण कर लिया जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। इसके साथ ही उन्होंने कुर्द बाहुल्य क्षेत्रों का घेराव कर लिया और कुर्दियों का भीषण जनसंहार किया। वर्तमान समय में आईएसआईएस के लड़ाके, सीरिया-इराक़ की सीमा, दैरिज़्ज़ूर और रक़्क़ह सहित सीरिया की उत्तरी सीमा पर क़ब्ज़ा जमाए हुए हैं।  कुल मिलाकर आईएसआईएस का इतिहास ख़ून से रंगीन है और वह अपने विरोधियों को किसी भी प्रकार का आरोप लगाकर इस्लाम के नाम पर रास्ते से हटा देते हैं, इसकी साक्षी इराक़ और सीरिया दोनों की ही जनता रही है। अब तक यह समझ में नहीं आया है कि यह लोग कौन सा इस्लाम और कौन सा शरीया क़ानून लागू करना चाहते हैं जबकि इस्लाम धर्म भाई चारे और बंधुत्व का धर्म है। इस्लाम में अल्पसंख्यकों का सम्मान और उनकी धार्मिक परंपराओं का आदर व सत्कार करने का आदेश दिया गया है जबकि यह लोग हर ग़ैर मुस्लिम की हत्या को अनिवार्य समझते हैं। यहां यह बात समझ में आती है कि मुसलमानों के मध्य मतभेद पैदा करने और मुस्लिम देशों को विभाजित करने के लिए साम्राज्यवादी शक्तियों ने आईएसआईएस को अस्तित्व प्रदान किया जैसा कि अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान में अलक़ायदा और जेहादी गुटों को रूसी सेना से जेहाद के लिए तैयार किया था अन्यथा अकेले कोई भी आतंकवादी गुट किसी देश की सेना को ललकारने का क्षमता नहीं रखता। लेकिन जिस प्रकार यह आतंकवादी संगठन उठा और उसने हज़ारो बेगुनाहों का ख़ून बहाया उसी प्रकार इसको समाप्त भी हो जाना है और इसका आरम्भ हो चुका है और आयतुल्लाह सीस्तानी के फ़तवे ने दिखा दिया कि किस प्रकार एक फ़तवा एक शक्तिशाली आतंकवादी संगठन के बढ़ते हुए क़दमों को रोकने के और उनको समाप्त कर देने के लिए काफ़ी है।