इंद्र वशिष्ठ (वरिष्ठ पत्रकार)

कृपया क्या कोई बता सकता है कि मीडिया मालिक/संपादक द्वारा शोषित, पीड़ित, प्रताड़ित, नौकरी से निकाले गए पत्रकारों को न्याय दिलाने, मजीठिया वेतन बोर्ड लागू कराने के लिए या बीमारी से जूझ रहे किसी पत्रकार के लिए प्रेस क्लब और एडिटर गिल्ड ने कभी कोई पहल की है। जैसे धोखाधड़ी और आपराधिक साज़िश के आरोपी प्रणय रॉय के लिए की जा रही है। क्या इंडिया टीवी पर प्रताड़ना का आरोप लगा कर जहर खाने वाली तनु शर्मा को इंसाफ दिलाने के लिए कुछ किया था। 100, करोड़ की वसूली के आरोपी जेल भोगी जी न्यूज के सुधीर चौधरी ने लाइव इंडिया में दिल्ली की टीचर उमा खुराना के बारे फर्जी स्टिंग दिखा कर छात्राओं से वेश्यावृत्ति कराने काआरोप लगा कर उसका जीवन बर्बाद कर दिया। सुधीर की इस हरकत से दरिया गंज जैसे संवेदनशील इलाके में दंगा होने की नौबत आ गई थी। पुलिस ने दंगा होने के डर से चैनल की खबर पर विश्वास करके बिना जांच के ही टीचर को जेल भेज दिया। बाद में जांच में चैनल की खबर फर्जी निकली तो पुलिस को अपनी गलती का अहसास हुआ। उस समय सुधीर किसी तरह बच गया उसके रिपोर्टर को गिरफ्तार किया गया। कहावत है न कि चोर की मां कब तक खैर मनाएगी। सुधीर वसूली के आरोप में जेल पहुंच गया। सह आरोपी जी का मालिक हरियाणे का बानिया सुभाष चन्द्र जेल जाने से बच गया । लेकिन कब तक क्योंकि शिकायत कर्ता भी मामूली आदमी नहीं वो भी हरियाणे​ का ही तगड़ा बानिया नवीन जिंदल है। क्या इन संस्थाओं ने इन मठाधीशों के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत दिखाई है। आरोपी सुभाष चंद्र की किताब का विमोचन प्रधानमंत्री निवास पर करना और सुधीर को पुलिस सुरक्षा देना देख लगा कि मोदी और कांग्रेस में ज्यादा फ़र्क नहीं है।
अब बात बाबू मोशाय प्रणय रॉय की जिनकी आऊट आफ टर्न तरक्की की बुनियाद भी दूरदर्शन के बाबू मोशाय की गोद में रखी गई थी। किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ सीबीआई या पुलिस कार्रवाई करती है तो ये मठाधीश आरोपी को बिल्कुल झूठा साबित करने की होड़ करते हैं पुलिस और सीबीआई को सत्यवादी मान उसका स्तुति गान करते हैं।जैसा कि पत्रकार इफ्तिखार गिलानी के मामले में नीता शर्मा और दीपक चौरसिया ने भी किया था। अब यही बात बाबू मोशाय पर भी तो लागू होनी चाहिए। कहावत है कि अपने लगी तो हित में और दूसरे के लगे तो भित (दीवार ) में। मतलब अपने लगे तो दर्द होता​ हैं। सीधी सी बात है सीबीआई ने धोखाधड़ी और आपराधिक साज़िश का मामला दर्ज किया है और अभी तो जांच चल ही रही। जांच के बाद मामला कोर्ट में जाएगा वहां साफ़ हो ही जाएगा कि सच क्या है। जांच में दखल तो​ कोर्ट भी नही देता। प्रणय से तो बढ़िया नेता हैं जो जेल जाने के बाद भी कह देते हैं कि न्यायालय पर उनको पूरा भरोसा है। शायद बाबू मोशाय को नहीं है या वह खुद अपनी असलियत तो जानते ही है । इसीलिए अपने निजी आपराधिक मामले को मीडिया पर हमला बनाने की कोशिश कर रहे हैं। बाबू मोशाय खुद सामने आने की बजाय अपने जैसों को आगे कर रहे हैं।बाबू मोशाय कोई गिलानी जैसे कमजोर तो है नहीं कि हलवा समझ कर सरकार खा लेगी। यह तो बकायदा एक शक्तिशाली न्यूज​ मठ के मठाधीश है अरबपति हैं चिदंबरम जैसे नेता,नामी वकील दोस्त ​है। फिर भला पत्रकारों की संस्थाआें की मदद लेने की क्या जरूरत पड़ गई। इससे तो यही लगता है कि बाबू मोशाय को मालूम है इस केस में नहीं तो ईडी के केस में, या किसी अन्य में जेल यात्रा हो सकती हैं। इसलिए मीडिया बनाम सरकार बनाने के लिए एक ही थैली के चट्टे बट्टे मठाधीशों की गिरोह बंदी करने की कोशिश में है। हालांकि एकजुट होने की संभावना कम है क्योंकि सब मठ भले न्यूज सम्प्रदाय के हो लेकिन किसी की आस्था कांग्रेस महामंडलेश्वर में तो किसी की भाजपा भजन में है तो कोई जगत गुरु अंबानी अखाड़े का हैं। यही वजह है कि मठाधीशों का कुछ नहीं बिगड़ता। लेकिन​ कहते हैं कि देेर हैं अंधेेर नहीं। इसलिए जो ईमानदारी से पत्रकारिता कर रहे हैं वह सावधानी बरतें और अपने कंंधे का इस्तेमाल​ इन मठाधीशों को न करने दें। सिर्फ खाटू के श्याम बाबा की तरह साक्षी भाव से युद्ध देखें। ईमानदार पत्रकारों के संकट के समय में ये मठाधीश भी ऐसा ही करते रहे हैं। बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना न बने।
क्या मीडिया की इन संस्थाओं​ ने अपने बीच से इन गंदी मच्छलियों को बाहर करने के लिए कभी कुछ किया है।अगर किया होता तो आज पत्रकारिता का पूरा तालाब गंदा नहीं माना जाता। अब बात साहेब की उनकी साख से ज्यादा सीबीआई की साख दांव पर है।कोर्ट पिंजरे का तोता कह चुका है। मोदी अगर ईमानदार है तो उन सब मठाधीशों पर कार्रवाई करके दिखाए जिन पर CBI ED Policeमें केस दर्ज है। अगर कार्रवाई नहीं की गई तो यह साफ़ हो जाएगा कि कार्रवाई करने की धमकी भरी तलवार लटका कर मीडिया को भोंपू बनाने की नीयत हैं। ED ने 2030 करोड़ के फेमा मामले में प्रणय रॉय को दो साल पहले नोटिस दिया था उसमें आगे क्या कार्रवाई हुई इसका खुलासा करके सरकार सच सामने रखें। 1998में सीबीआई ने दूरदर्शन को चूना लगाने का जो केस दर्ज किया था उसका भी खुलासा सरकार करें। वैसे तो यह साफ-साफ आपराधिक मामला है जिसे प्रणय मीडिया से जबरन जोड़ रहा है। सभी पत्रकारों को गोदी पत्रकार कहने वाले बाबू मोशाय तो अभी तक गोदी में ही है पता नहीं गोद से उतर कर चलना कब सीखेंगे। बाबू मोशाय की बात ही मान लें कि मोदी बदला ले रहा है तो स्वाभाविक है कि बदला वहीं लेगा जिसके साथ अन्याय हुआ हो। यह तो उस समय सोचना चाहिए था बाबू मोशाय जब मठ के चेले चेलियों राजदीप सरदेसाई,बरखा समेत गुजरात दंगों में पत्रकारिता के नाम पर तमाशा किया। इशरत जहां एनकाउंटर केस में इसी सीबीआई को सत्य वादी हरीश चंद्र मान कर मोदी को फांसी चढ़ाना चाहा। बाबू मोशाय बैंक से लेन देन तो तुमने किया , तुम पर बैंक को 48 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाने का आरोप न होता तो भला मोदी कैसे बदला ले सकता था ।अपने अपराध के लिए दूसरे को दोषी मत ठहराओ। बाबू मोशाय तुमने जो बोया वही काटना है। तुम भूल गए जिनके घर शीशे के होते हैं उनको दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए। मनुष्य बलि ना होत है होत समय बलवान भीलन लूटी गोपियां वहीं अर्जुन वहीं बाण।। ईमानदार पत्रकारों उम्मीद है कि मठाधीशों के पाप के घड़े भरने शुरू हो गए।बस फूटने का इंतजार करे। उम्मीद है कि आने वाले समय में पत्रकारिता की पवित्रता और इज्जत दोबारा कायम होगी। अब तो सुब्रत रॉय सहारा ,तरूण तेजपाल, सुधीर, सुभाष चंद्र भी प्रेस क्लब और एडीटर गिल्ड से समर्थन मांगने के हकदार हो गए।वैसे सुब्रत रॉय सहारा को तो ऐसे मठाधीशों के कल्याण के लिए अपना ही क्लब और गिल्ड बना लेना चाहिए।