अनवर चौहान

नई दिल्ली, चीन के नए सिल्क रूट योजना में भारत का पड़ोसी देश नेपाल भी शामिल हो गया है. नेपाल ने  इस समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. चीन अब बहुत पॉवरफुल देश बन जाएगा। उसने भारत की भी घेराबंदी शुरू कर दी है। पूरी दुनिया में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए एशिया, यूरोप और अफ़्रीका के 65 देशों को जोड़ने की चीन की इस परियोजना को `वन बेल्ट वन रोड` परियोजना का नाम दिया गया, जिसे `न्यू सिल्क रूट` के नाम से भी जाना जाता है. ऐसे भारत को `घेर रहा है` चीन इस परियोजना को लेकर बीजिंग में 28 देशों के प्रमुखों की बैठक होने जा रही है. पाकिस्तान पहले ही इस परियोजना में शामिल होने की रज़ामंदी दे चुका है और अब नेपाल भी इसमें शामिल हो गया है.


कुल व्यापार का 90 फ़ीसदी हिस्सा समुद्री रास्तों से होकर जाता है और इस तरह मालवाहक पोत एक देश से दूसरे देश को जाते हैं.उदाहरण के लिए मध्य पूर्व से चीन तक तेल ले जाने वाला पोत पारंपरिक समुद्री रास्तों का इस्तेमाल करता है. कौन सेर, कौन सवा सेरः चीन या भारत अफ़गान-तालिबान के बीच मध्यस्थता को चीन तैयार यह एक द्विपक्षीय आदान प्रदान होता है जिसमें बहुत कम ही ऐसा होता है कि रास्ते में आने वाले किसी तीसरे देश को फ़ायदा या नुक़सान पहुंचे. चीन ने एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट शुरू किया है, जो अगर सफल हुआ तो यह दुनिया में होने वाले वैश्विक व्यापार की तस्वीर बदल देगा. यह परियोजना समुद्री रास्तों पर निर्भरता को भी कम कर सकती है, जिस पर अभी अमरीका का दबदबा है.

इस परियोजना का नाम है `वन बेल्ट वन रोड` (ओबीओआर), जो कि प्राचीन सिल्क रोड का 21वीं सदी वाला संस्करण है. ओबीओआर का मक़सद है व्यापार के लिए समुद्री और ज़मीनी, दोनों तरह के रास्तों का विकास करना. असल में ओबीओआर एक पारिभाषिक शब्दावली है जिसका आशय सिल्क रोड के आर्थिक क्षेत्र और 21वीं सदी के समुद्री सिल्क रोड, दो महंगी ट्रेड प्रोमोशन और बुनियादी विकास परियोजनाओं से है. अफगानिस्तान के सिल्क रोड की खोज यह उस ऐतिहासिक सिल्क रोड से प्रेरित है जिसने चीन को बाहरी दुनिया से जोड़ा था. ओबीओआर व्यापारिक रास्तों के समानांतर बंदरगाहों, रेलवे और सड़कों का व्यापक नेटवर्क तैयार करने की संभावनाओं को खोलता है. चीन व्यापक पैमाने पर अफ़्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में रेल और सड़क नेटवर्कों का निर्माण कर रहा है. इस परियोजना का प्रमुख उद्देश्य चीन को अफ़्रीका, मध्य एशिया और रूस से होते हुए यूरोप से जोड़ना है.


इससे होगा यह कि चीन को जाने वाला तेल सबसे पहले पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर या म्यांमार के क्याउकफियू बंदरगाह पर उतरेगा. ये दोनों बंदरगाह चीन ने विकसित किए हैं. इसके बाद यहां से यह तेल टैंकरों, पाइपलाइन या रेल नेटवर्क के मार्फ़त पश्चिमी चीन पहुंचेगा. भारत-चीन-जापान का पेचीदा `लव ट्राएंगल` इस तरह से इस रास्ते में आने वाली उस आबादी के समृद्ध होने की संभावना खुलेगी, जो सदियों से पिछड़ेपन की शिकार है. सवाल यह है कि कई अरब डालर वाले इस प्रोजेक्ट से चीन क्या हासिल कर रहा है?  इस प्रोजेक्ट का एक आर्थिक पक्ष है, लेकिन इससे जुड़ी राजनीतिक महत्वाकांक्षा से इनकार नहीं किया जा सकता.अमरीकी प्रभुत्व का प्रमुख आधार है डॉलर का दबदबा और समंदरों पर इसका नियंत्रण. चीन इस दबदबे को ख़त्म करना चाहता है.



आर्थिक मोर्चे पर, चीनी इस मुक़ाम पर पहुंच गए हैं जहां पश्चिमी देशों के एक बड़े हिस्से ने, चीन द्वारा बनाई गई अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था, एशियन इंफ़्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी), में शामिल होने के लिए अमरीका को भी दरकिनार कर दिया है. हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्रों में चीन अमरीका की नाराज़गी मोल लेने को लेकर निश्चिंत नहीं है.  इसलिए ओबीओआर चीन को एक वैकल्पिक रूट और बिना विवाद वाला नज़रिया अपनाने की छूट देता है.सबसे अहम यह है कि चीनी समुद्री रास्ते के मुक़ाबले ज़मीनी रास्ते को विकसित करने पर ज़्यादा ज़ोर देते हैं, जोकि एशिया में पश्चिमी दबदबे को ख़त्म करने के लिए बनाया गया है. वैश्विक व्यापार को नियंत्रित करने के लिए सिर्फ़ मैन्युफ़ैक्चरिंग और वित्त पर ही दबदबा पर्याप्त नहीं है. इसके लिए उन रास्तों पर नियंत्रण करना भी उतना ही अहम है जिनसे होकर व्यापार होता है.


ज़मीनी मार्गों पर वरीयता एक ऐसा लक्ष्य है जिसे चीन, रूस और जर्मनी जैसी महाद्वीपीय शक्तियां हासिल करना चाहती हैं. क्योंकि जापान और अमरीका जैसी समुद्री क्षेत्र की महाशक्तियां को सीमित करने और बहुध्रुवीय वैश्विक राजनीति को सुनिश्चित करने का यह उनके लिए एक बेहतरीन मौक़ा है. लेकिन अगर चीन वैश्विक व्यापार मार्गों में विविधता ला रहा है तो इस प्रक्रिया में कई पक्षों को शामिल करने से इसके संकट का शिकार होने की संभावना भी बढ़ रही है. अमरीका निर्जन समुद्रों को नियंत्रित कर दुनिया पर राज नहीं कर सकता, जबकि ओबीओआर रूट में आने वाले कई देशों और उसकी जनता से भी चीन को सामना करना पड़ेगा. और यही कारण है जो ज़मीनी मार्गों पर चीन के दबदबे की संभावना को कम करता है.