(अनवर चौहान) पाकिस्तान और अमेरिका के बीच रिश्ते तल्ख हो चुके हैं। दरअसल भारत और अमेरिका की बीच बढ़ती नज़दीकियों के मद्देनज़र पाकिस्तान को चीन से दोस्ती रखने में फायदा नज़र आ रहा है। यहां ये बताना ज़रूरी है कि अमेरिका ने आतंककवाद से से लड़ने के लिए फौज को दी जाने वाली मदद में कटौती की। तो दूसरी तरफ पिछले साल चीन-पाकिस्तान ने 460 करोड़ डॉलर का एनर्जी और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट लॉन्च किया। कुल मिलाकर पाक अफग़ानिस्तान में अमेरिका काफी कुछ बर्बाद कर चुकाहै। मगर अब वो वहांसे निकलना चाहता है। लिहाज़ा फिर वहां तालिबानियों का ही राज कायम होना है। और पाक भी यहील चाहता है।

   

दरअसल हक्कानी नेटवर्क के ख़िलाफ़ कार्रवाई न करने पर पाकिस्तान को दी जाने वाली 30 करोड़ डॉलर की मदद रोक दी गई है। पेंटागॉन के प्रवक्ता के अनुसार डिफेंस मिनिसटर ऐशले कार्टर #2344;े वो सर्टिफ़िकेट जारी करने से मना कर दिया जिससे ये रक़म पाकिस्तान को मिल पाती. कोलिशन सपोर्ट फंड के तहत 2002 से ही अमरीका आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई में पाकिस्तान को आर्थिक मदद देता रहा है.साल 2015 में इस बजट के तहत पाकिस्तान के लिए एक अरब डॉलर की राशि तय हुई थी लेकिन कांग्रेस ने इसे जारी करने से पहले एक शर्त रखी थी. शर्त ये थी कि इसमें से तीस करोड़ डॉलर तभी जारी किए जाएं जब रक्षा मंत्री हक्कानी नेटवर्क के ख़िलाफ़ पाकिस्तान की कार्रवाई से संतुष्ट हों  और उसका सर्टिफ़िकेट दे. डिफेंस मिनिसट्री के अनुसार पाकिस्तान ने उत्तरी वज़ीरिस्तान में कई चरमपंथी गुटों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है लेकिन हक्कानी नेटवर्क और अफ़गान तालिबान दोनों ही पाकिस्तान के कई इलाकों में अभी भी सक्रिय हैं.


ये पहली बार है जब ओबामा प्रशासन ने हक्कानी नेटवर्क की वजह से पाकिस्तान को दी जाने फ़ौजी मदद पर रोक लगाई है. पेंटागॉन के प्रवक्ता के अनुसार 2015 के बजट के तहत एक अरब डॉलर में से सत्तर करोड़ डॉलर पाकिस्तान को दिए जा चुके हैं लेकिन बाकी तीस करोड़ डॉलर अब उपलब्ध नहीं होंगे. ये तो बात रही 2015 की आर्थिक मदद की. ग़ौरतलब है कि 2016 के लिए रक्षा मंत्रालय ने पाकिस्तान के लिए तय कुल बजट को एक अरब  डॉलर से कम करके नब्बे करोड़ डॉलर किया है.


साथ ही कांग्रेस ने इस बार शर्त रखी है कि इसमें से अब 35 करोड़ डॉलर को रोक लिया जाए जब तक कि रक्षा मंत्री ये सर्टिफ़िकेट नहीं दे देते कि हक्कानी नेटवर्क और दूसरे चरमपंथी गुटों के खिलाफ़ वैसी कार्रवाई हुई है, जैसा पाकिस्तान दावा करता रहा है. वॉशिंगटन स्थित पाकिस्तानी दूतावास के प्रवक्ता नदीम होतियाना ने प्रतिक्रिया देते हुए बताया कि ये रकम आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई में पाकिस्तान को  मदद करती है और अमरीका और पाकिस्तान दोनों को इस कार्रवाई से फ़ायदा होता है. उनका कहना था कि पाकिस्तान ने उत्तरी वज़ीरिस्तान में ज़र्ब ए अज़्ब के नाम से एक बड़ी कार्रवाई की है जिसमें चरमपंथियों के ठिकानों को तहस-नहस किया गया है और पाकिस्तान आतंकवाद के ख़िलाफ़ अपनी कार्रवाई जारी रखेगा.


इस प्रतिक्रिया में उन्होंने हक्कानी नेटवर्क का ज़िक्र नहीं किया है. माना जा रहा है कि अमरीकी रक्षा मंत्रालय के इस फ़ैसले से दोनों देशों के आपसी रिश्तों में तनाव और बढ़ेगा. इसके पहले अमरीका ने एफ़-16 लड़ाकू विमानों की खरीद में पाकिस्तान को दी जानेवाली आर्थिक मदद पर रोक लगा दी थी. कुछ जानकारों का कहना है कि रक्षा मंत्रालय का ये फ़ैसला पाकिस्तानी फ़ौज के लिए बड़ा धक्का है क्योंकि वो बरसों से इस रकम को अपने बजट का हिस्सा मानकर चलते आए हैं.रक्षा मंत्रालय के अनुसार कोलिशन सपोर्ट फंड के तहत सबसे ज़्यादा मदद अबतक पाकिस्तान को दी गई है और 2002 से अबतक उसे 14 अरब डॉलर दिए जा चुके हैं.



अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली मिलिट्री-इकोनॉमिक मदद में भारी कटौती की है। इसे भारत-यूएस के मजब#2370;त रिश्तों का असर भी कहा जा रहा है। बता दें कि अमेरिका ने 2011 में पाक को 350 करोड़ डॉलर की मदद की थी। 2016 में रह 100 करोड़ डॉलर से भी कम रहेगी। पांच साल में यह मदद 70% तक घट गई। वहीं, 2007 के बाद 100 करोड़ से कम मदद देने का यह पहला मौका होगा। अमेरिका का कहना है कि पाक तालिबान को सपोर्ट कर रहा है। इसी वजह से मदद में कटौती की गई है। 2007 के बाद पहला मौका है जब यूएस ने 100 करोड़ डॉलर से कम की मदद की।



अमेरिकी सरकारी डाटा के मुताबिक, 2011 में अमेरिका ने सबसे ज्यादा 350 करोड़ डॉलर (करीब 2346 करोड़ रु.) की मदद की थी। 2016 में इसके 100 करोड़ डॉलर (करीब 670 करोड़ रु.) से भी कम रहने का अनुमान जताया गया है। 2007 के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को हर साल 100 करोड़ डॉलर कम की मदद नहीं की थी। मदद में कमी की वजह अफगानिस्तान में तालिबान को लगातार सपोर्ट करने को बताया जा रहा है। इसके चलते वहां अमेरिकी और नाटो फौजों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। अमेरिकी थिंक टैंक माने जाने वाले वुडरो विल्सन सेंटर के साउथ एशिया मामलों के एक्सपर्ट माइकल कुगलमैन के मुताबिक, `हमने साउथ एशिया को लेकर बनाई अपनी पॉलिसी में बदलाव किया है। अब हमने अफगानिस्तान-पाकिस्तान से दूरी बनाई है लेकिन भारत से रिलेशन और मजबूत हुए हैं।`पाकिस्तान का लगातार तालिबान को सपोर्ट किया जाना अमेरिकी मिलिट्री और इंटेलिजेंस में फ्रस्ट्रेशन का कारण बना है।

ओबामा एडमिनिस्ट्रेशन ने अफगानिस्तान में और मिलिट्री बढ़ाए जाने को लेकर कोई खास रुचि नहीं दिखाई है।ओबामा ने पिछले महीने कहा था कि वे इस साल के आखिर तक अफगानिस्तान में केवल 8,400 सोल्जर रखेंगे।यूएस अफसरों का कहना है कि अमेरिका-पाक के बिगड़ते रिलेशन का फायदा चीन उठा सकता है।अमेरिका ने कहा- करोड़ों डॉलर लुटाए लेकिन अब नहींएक अमेरिकी अफसर ने कहा, `टेररिज्म के खिलाफ वॉर में हम करोड़ों डॉलर बर्बाद कर चुके हैं। हमने पाकिस्तान को जितना दिया, वो काफी ज्यादा था। उसे अब कई अन्य सोर्स जैसे चीन से मदद मिल रही है।`